नये और पुराने कानून के बीच फंसा अलीगढ़ का जमीन अधिग्रहण
ये आदेश न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ व न्यायमूर्ति आर. भानुमति की पीठ ने भूस्वामी मेघ सिंह के वकील डीके गर्ग की दलीलें सुनने के बाद जारी किये।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। अलीगढ़ का एक जमीन अधिग्रहण नये और पुराने कानून के बीच फंसा है। सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल है कि क्या पुराने कानून में अधिगृहित जमीन का नये कानून के मुताबिक मुआवजा मिलेगा और अगर हां तो उसका तौर तरीका क्या होगा। कोर्ट ने इस सवाल पर अलीगढ़ विकास प्राधिकरण से जवाब मांगा है। मामले पर 23 अगस्त को फिर सुनवाई होगी।
ये आदेश न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ व न्यायमूर्ति आर. भानुमति की पीठ ने भूस्वामी मेघ सिंह के वकील डीके गर्ग की दलीलें सुनने के बाद जारी किये। इससे पहले गर्ग ने भूमि अधिग्रहण के नये कानून से मुआवजा दिलाने की मांग करते हुए कोर्ट के समक्ष भारत सरकार की 26 अक्टूबर 2015 की एक अधिसूचना पेश की। उनका कहना था कि उन्हें नया कानून लागू होने की तिथि पर जो बाजार मूल्य था उस हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए और मुआवजे पर ब्याज की दर धारा 4 के तहत भूमि अधिग्रहण की जारी अधिसूचना की तिथि से तय होनी चाहिए। कोर्ट ने अलीगढ़ विकास प्राधिकरण से इसके लागू होने पर निर्देश लेकर कोर्ट को सूचित करने को कहा है।
नये और पुराने कानून के बीच फंसा भूमि अधिग्रहण का ये मामला अलीगढ़ का है। वर्ष 2004 में सरकार ने नियोजित विकास के लिए अलीगढ़ जिले की कोइल तहसील के किसनपुर गांव में धारा 4 के तहत जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना निकाली। इसमें याचिकाकर्ता मेघ सिंह की जमीन भी अधिगृहित हुई। सरकार ने आपात उपबंध लगाकर जमीन अधिगृहित की थी। जब 2008 तक जमीन का अवार्ड नहीं मिला तो याचिकाकर्ता ने अधिग्रहण को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उस समय भूमि अधिग्रहण का पुराना कानून लागू था। याचिकाकर्ता की दलील थी कि 2 साल के भीतर अवार्ड नहीं हुआ है इसलिए कानूनन अधिग्रहण समाप्त हो जाएगा।
हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए अधिग्रहण निरस्त कर दिया। जिसके खिलाफ अलीगढ़ विकास प्रधिकरण सुप्रीमकोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। इस बीच भूमि अधिग्रहण का नया कानून लागू हो गया। याचिकाकर्ता ने सुप्रीमकोर्ट में अर्जी देकर कहा कि अधिग्रहण को पांच साल हो चुके हैं लेकिन अभी तक अवार्ड नहीं हुआ है। अब उसे नये कानून की धारा 24(1) के मुताबिक मुआवजा दिलाया जाए। इस अर्जी के बाद कोर्ट ने पिछले वर्ष प्राधिकरण की याचिका निपटाते हुए नये कानून के मुताबिक मुआवजा देने का आदेश दिया।
कोर्ट के आदेश पर प्राधिकरण ने मुआवजा तय किया। प्राधिकरण ने भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी होने की तिथि पर जो सर्किल रेट था उसी के आधार पर मुआवजा तय किया। लेकिन याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से नया कानून लागू होने की तारीख पर लागू सर्किल रेट पर मुआवजा मांगा। इस अर्जी पर कोर्ट ने विचार के लिए कानूनी प्रश्न तय किये कि ऐसे मामले में मुआवजा तय करने की तारीख और तौर तरीका क्या होगा। गत सप्ताह हुई सुनवाई पर याचिकाकर्ता की ओर से सरकार का 2015 का आदेश पेश किया जिसमें ऐसे मामलों में मुआवजा तय करने का तरीका स्पष्ट किया गया है। अब कोर्ट ने फिर अथारिटी से उसका नजरिया पूछा है।
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