Move to Jagran APP

हरियाली से दूर होते इंसान, इन हालात में कैसा होगा हमारा भविष्य सोचा आपने?

इंसान एकाकी होता जा रहा है। लगता है अब उसे दूसरों से कोई मतलब नहीं है। उसकी पूरी दुनिया मोबाइल में समा गई है। अब घरों में आर्टिफिशियल पौधों और प्रकृति की तस्वीरों ने जगह ले ली है। इन हालात में हमारा भविष्य कैसा होगा सोचा आपने?

By Jagran NewsEdited By: TilakrajPublished: Tue, 29 Nov 2022 09:47 AM (IST)Updated: Tue, 29 Nov 2022 09:47 AM (IST)
हरियाली से दूर होते इंसान, इन हालात में कैसा होगा हमारा भविष्य सोचा आपने?
पर्यावरण का सही अर्थ आसपास के वातावरण से है

नई दिल्‍ली, डा. महेश परिमल। कुछ दिनों पहले एक स्कूल में बच्चों को अपनी पसंद का चित्र बनाने को कहा गया। चित्र का शीर्षक था पर्यावरण। आश्चर्य इस बात पर हुआ कि अधिकांश बच्चों ने पर्यावरण के नाम पर जंगली जानवरों के चित्र बनाए। उनके चित्रों में पेड़-पौधे, नदी, तालाब गायब थे। सोच की तरंगों ने विस्तार पाया तो समझ में आया कि इस समय बच्चों की पहुंच से दूर हो गए हैं पेड़-पौधे। वे वनस्पतियों से अधिक जानवरों में रुचि लेते हैं। उनके खिलौनों में अत्याधुनिक कारों के छोटे-छोटे माडल के अलावा रबर के जंगली जानवर तो मिल जाएंगे, पर पेड़-पौधे, नदी-तालाब नहीं मिलेंगे।

loksabha election banner

बढ़ रहा प्लांट ब्लाइंडनेस...

हममें से न जाने कितने लोग ऐसे भी होंगे, जिन्होंने कई दिनों से न तो कोई पेड़ देखा होगा। जिन्होंने पेड़ देखा भी लिया होगा, पर उसे छूना पसंद नहीं किया होगा। पेड़ के प्रति इस बेरुखी को नाम दिया गया है प्लांट ब्लाइंडनेस। हाल में एक शोध में बताया गया कि लोगों में संवेदनाओं का अभाव हो गया है। सीधी-सी बात है, संवेदनाओं से दूर होते इंसान के लिए अब सब-कुछ सामान्य है। इंसान पौधों से दूर हो रहा है। यानी प्रकृति से दूर हो रहा है। प्रकृति से दूर यानी शहरीकरण को पूरी तरह से अपनाना।

घरों में आर्टिफिशियल पौधों और प्रकृति की तस्वीरें...!

अब घरों में आर्टिफिशियल पौधों और प्रकृति की तस्वीरों ने जगह ले ली है। इसके विपरीत सुदूर गांवों में अभी भी लोगों का जीवन ही पेड़-पौधों पर निर्भर है। वे न केवल पेड़ को जीते हैं, बल्कि उनको अपने भीतर पालते-पोसते हैं। कोई भी काम पेड़ को सामने रखकर ही करते हैं। कई बार पेड़ों को पूजा भी जाता है। इसमें पीपल-बरगद के पेड़ भी हैं, जिनकी पूजा की जाती है। हिंदुओं में एक त्योहार मनाया जाता है आंवला अष्टमी। इस दिन लोग किसी आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करते हैं। कहा जाता है कि उस विशेष दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने से शरीर को ऊर्जा की प्राप्ति होती है। कई तरह की व्याधियां दूर होती हैं।

मोबाइल में सिमट रही इंसान की दुनिया

इंसान दिनों-दिन एकाकी होता जा रहा है। लगता है अब उसे दूसरों से कोई मतलब नहीं है। उसकी पूरी दुनिया मोबाइल में समा गई है, जहां से वह सबकुछ पा लेना चाहता है। हथेली में समाए उस यंत्र में ही उसका संसार होता है। पर्यावरण का सही अर्थ आसपास के वातावरण से है। पहले हमारे आसपास का वातावरण हरियाली से भरा होता था, जिससे हम प्रेरणा लेकर अपने भीतर के सूखेपन को दूर करते थे।

इसे भी पढ़ें: रूस-यूक्रेन युद्ध में ड्रोन वॉर, भारत के खिलाफ नशा और आतंकवाद फैलाने में इनका इस्तेमाल बढ़ा

अब बाहर का सूखापन भीतर के सूखेपन से मिलकर एक रेगिस्तान ही तैयार हो रहा है हमारे भीतर। यही रेगिस्तानी स्वभाव हमें प्रकृति से दूर कर रहा है, पेड़ों से दूर कर रहा है, हमें हमारे अपनों से दूर कर रहा है। इसलिए आज पेड़ उखड़ रहे हैं, इंसान तो पहले ही उखड़ चुका है। इन हालात में हमारा भविष्य कैसा होगा, सोचा आपने?

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

Fact Check: कर्नल नवजोत सिंह बल की पुरानी फोटो हो रही शेयर, ढाई साल पहले हो चुका है निधन


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.