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इंसान को मारने वाला हाथी कर दिया जाता है दल से बाहर, यहां प्रचलित हैं अनोखी मान्यताएं

छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में ग्रामीणों के बीच हाथियों को लेकर अनोखी मान्‍यताएं हैं। यहां के लोग मानते हैं कि हाथी साथी भी है और जज्बाती भी। आप भी पढ़ें यह दिलचस्‍प रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 08:46 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 12:33 PM (IST)
इंसान को मारने वाला हाथी कर दिया जाता है दल से बाहर, यहां प्रचलित हैं अनोखी मान्यताएं
इंसान को मारने वाला हाथी कर दिया जाता है दल से बाहर, यहां प्रचलित हैं अनोखी मान्यताएं

जशपुर [जागरण स्‍पेशल]। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में ग्रामीण हाथियों के कानून का पालन करते हैं। वह मानते हैं कि हाथी साथी भी है और जज्बाती भी। हाथी सामाजिक प्राणी है। समूह में रहता है। अपने बुजुर्ग को मुखिया मानता है। हथिनियों और बच्चों की रक्षा करता है। लोगों में यह भी मान्‍यता है कि हाथी यदि गुस्से में हिंसक हो जाता है तो पश्चाताप भी करता है। किसी मनुष्य की हत्या करने वाले हाथी को दल से बहिष्कार का दंड भी भुगतना पड़ता है। इसलिए हाथियों के काम में दखल नहीं देने में ही अपनी भलाई मानते हैं।

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सबसे उम्रदराज करता है दल की अगुआई

तुमला निवासी गणेश सिंह के अनुसार प्रत्येक समूह का सबसे उम्रदराज हाथी दल का नेतृत्व करता है। दल के सदस्य अनुशासन में रहते हैं। हाथी बिना किसी कारण मनुष्य पर हमला नहीं करते हैं। आत्मरक्षा के लिए जरूर आक्रामक हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि अगर कोई हाथी किसी मनुष्य को कुचल कर मार देता है तो उसे दल से अलग कर दिया जाता है।

सह अस्तित्व में ही भलाई

ग्रामीण मानते हैं कि जंगली जीवों और मनुष्यों के बीच अस्तित्व के लिए संघर्ष जारी रहेगा। इसके बीच एक दूसरे के सम्मान से सह अस्तित्व का मार्ग सृजित होता है। क्षेत्र में हाथियों के आवागमन से ग्रामीणों को आए दिन आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है परंतु मनुष्य पर हमले की घटनाएं कम ही होती हैं।

10 दिन तक भटकता रहता है हाथी

टकमुंडा निवासी गोविंद सिंह ने बताया कि उनके दादा भी बताते थे कि हाथी जब किसी व्यक्ति को कुचल कर मारता है तो घटना के दस दिन बाद तक वह उसी क्षेत्र में भटकता रहता है। इसे वह ¨हदू समाज के संस्कार और दशगात्र की परंपरा से जोड़ते हैं। दसवें दिन की रीतियों के बाद आत्म को मुक्ति की मान्यता पीढि़यों से चली आ रही है। ग्रामीणों का मानना है कि जब हाथी अपने द्वारा कुचले गए व्यक्ति की आत्मा को मुक्त होकर परलोक जाते हुए देख लेता है, तभी वह दूसरे क्षेत्र में जाता है।

दल से बेदखल हाथी हो जाता है आक्रामक

हालांकि, विशेषज्ञ और वन विभाग के अधिकारी इन मान्यताओं पर विश्वास नहीं करते। जशपुर के डीएफओ एसके जाधव के अनुसार दल में रहने के कारण हाथी अपेक्षाकृत शांत होते हैं। किसी हथिनी के गर्भवती होने की स्थिति में उसकी सुरक्षा के लिए हाथी अधिक सतर्क होतें हैं। कई बार आक्रामक भी हो जाते हैं। इनकी अपेक्षा दल से अलग हुआ हाथी अधिक आक्रामक होता है। खेत और घर को बेवजह नुकसान पहुंचाता है और मनुष्य पर भी हमला करता है। हथिनियों से जोड़ी बनाने के लिए संघर्ष दल से अलग होने का कारण होता है।

साथी के बिछड़ने का गम जल्द नहीं भूल पाते हाथी

करीब तीस साल से हाथियों का उत्पात झेल रहे उत्तरी छत्तीसगढ़ में हाथियों के व्यवहार के अध्ययन ने स्पष्ट किया है कि साथी के बिछड़ने का गम हाथी भूल नहीं पाते हैं। कब्र में दफन शव के पास चिंघाड़ने से लेकर कब्र खोदने की कोशिश तक की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। बीमार सदस्य को सहारा देकर उठाना, नदी अथवा कुएं में गिरने पर सुरक्षित बाहर निकालना, किसी एक सदस्य की मौत के बाद घंटों वहीं जमे रहना हाथियों की आदत है। छत्तीसगढ़ राज्य वन्य बोर्ड के सदस्य व हाथी विशेषज्ञ अमलेंदू मिश्रा के अनुसार हाथियों के व्यवहार के अध्ययन से यह पता चल चुका है कि संवेदना और सहयोग का भाव हाथियों में कहीं अधिक देखने को मिलता है। 

हाथियों जैसा व्‍यवहार दूसरे पशुओं में नहीं दिखता 

अमलेंदू मिश्रा कहते हैं कि बच्चे का लालन-पालन जितनी संजीदगी से हाथी करते हैं, उतना दूसरे वन्य प्राणियों में देखने को नहीं मिलता। जंगल से निकलने के बाद रात को खेतों में उतरने वाले हाथी अपने आहार का भी अनुमान लगा लेते हैं। एक ही स्थान पर सभी हाथियों का पेट नहीं भर पाने की स्थिति में वे छोटे-छोटे दल में तीन-चार किमी के दायरे में बंट जाते हैं। सुबह पौ फटने से पहले हाथी चारा-पानी की जुगाड़ में लगे रहते हैं। सुबह जंगल में घुसने से पहले सारे हाथी फिर एक साथ हो जाते हैं। हाथियों का अपना ट्रैक भी होता है। उत्तरी छत्तीसगढ़ में हाथी उसी ट्रैक पर विचरण करते हैं। भारतीय वन्य जीव संस्थान ने 80 हाथियों का डोजियर तैयार किया है।

धरती के लिए वरदान हैं हाथी 

हाथियों का सीधा संबंध पर्यावरण से है। पिछले साल हाथियों के धरती से संबंध को लेकर एक अध्‍ययन सामने आया था। इसमें वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि यदि इस धरती को बचाना है तो सबसे पहले हाथियों को बचाना होगा। यदि धरती से हाथी विलुप्‍त हो गए तो हमारा वातावरण और जहरीला हो जाएगा। नेचर जियोसाइंस (Nature Geoscience) में प्रकाशित अध्‍ययन में कहा गया था कि यदि अफ्रीका के जंगलों से हाथी विलुप्‍त हो गए तो ओजोन की परत को भारी नुकसान पहुंचेगा। विस्‍तृत रिपोर्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें यह लिंक- धरती बचानी है तो पहले हाथियों को बचाना होगा, वैज्ञानिकों ने दी यह चेतावनी


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