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नलिनी की समय पूर्व रिहाई की याचिका पर सुनवाई से इंकार

नलिनी श्रीहरन द्वारा पूर्व रिहाई संबंधी याचिका पर सुनवाई करने से मद्रास हाई कोर्ट ने इंकार कर दिया।

By Monika minalEdited By: Published: Wed, 20 Jul 2016 01:28 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jul 2016 03:24 PM (IST)
नलिनी की समय पूर्व रिहाई की याचिका पर सुनवाई से इंकार

चेन्नई (प्रेट्र)। मद्रास हाईकोर्ट ने आज राजीव गांधी मर्डर केस की दोषी नलिनी श्रीहरन की समय पूर्व रिहाई संबंधी याचिका पर सुनवाई करने से इंकार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पास लंबित मामले पर सुनवाई नहीं कर सकता।

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जस्टिस एम सत्यनारायण ने यह स्पष्ट किया कि उम्रकैद की सजा भुगत रही नलिनी के आग्रह पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता, जब तक सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मौजूद मामले पर फैसला नहीं हो जाता।

नलिनी ने तमिलनाडु सरकार को संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत समय पूर्व रिहाई की अपनी याचिका पर विचार कर निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया है। साथ ही जज ने कहा कि कोर्ट को राज्यपाल को संवैधानिक कार्य करने का तरीका नहीं बता सकती।

अदालत ने कहा, सीबीआई द्वारा किए गए इंवेस्टिगेशन और 9 जुलाई, 2014 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को एक साथ रखते हुए, कोर्ट याचिकाकर्ता के अभिवेदन पर विचार करने के लिए राज्य सरकार को फिलहाल निर्देश नहीं दे सकती। कोर्ट के अनुसार, जब तक सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित रिट याचिका पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक याचिकाकर्ता के अनुरोध पर विचार नहीं किया जा सकता।

राजीव गांधी हत्याकांड की दोषी नलिनी की रिहाई को लेकर दुविधा में तमिलनाडु सरकार

जज सत्यनारायण ने याचिका का निपटारा कर दिया और राज्य के गृह सचिव को लंबित मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के परिणाम के आधार पर, कानून के अनुसार याचिकाकर्ता के अभिवेदन पर विचार करने की स्वतंत्रता दी।संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत समय पूर्व रिहाई का आग्रह करते हुए नलिनी ने कहा था कि वह जेल में 25 साल गुजार चुकी है, जबकि समय पूर्व रिहाई के लिए कानूनी जरूरत केवल 20 साल की है ।

पिता के श्राद्ध के लिए नलिनी को 24 घंटे की पैरोल

21 मई, 1991 को एलटीटीई आत्मघाती हमलावर द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या मामले में पति मुरुगन के साथ नलिनी समेत 26 लोगों को दोषी पाये जाने पर मौत की सजा दी गयी थी। अप्रैल 2000 में धारा 161 के तहत राज्य सरकार ने नलिनी की सजा को बदलकर उम्र कैद कर दिया था। इसके बाद 18 फरवरी 2014 को अन्य तीन, मुरुगन, संथान और पेरारीवालन की सजा को भी बदलकर उम्र कैद कर दिया गया था।


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