चीन की युद्ध तैयारी पर थी खुफिया रिपोर्ट, पर नेहरू ने कर दिया था नजरअंदाज
माओत्से तुंग ने चीन में अपना नियंत्रण कायम रखने के लिए छेड़ा 1962 का युद्ध, स्वीडन के सामरिक विशेषज्ञ ने अपनी किताब में किया इसका उल्लेख।
नई दिल्ली, प्रेट्र : तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1962 के युद्ध के लिए चीन की तैयारी संबंधी खुफिया रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया था, जबकि चीन के नेता माओत्से तुंग ने देश में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भारत से युद्ध की तैयारी काफी पहले कर ली थी। स्वीडन के सामरिक विशेषज्ञ बर्टिल लिंटनर ने अपनी किताब ‘चाइनाज इंडिया वार’ में यह उल्लेख किया है।
लिंटनर ने किताब में भारत की तरफ से खुफिया विफलताओं की बात को खारिज किया है। उन्होंने कहा कि भारत के पास खुफिया जानकारी थी कि चीन 1959 से सीमा पर भारी सैन्य तैयारी कर रहा है। नेहरू के तत्कालीन खुफिया प्रमुख भोलानाथ मलिक ने सीमा पर चीन की हरकतों को लेकर सरकार को कई बार सतर्क किया था। लेकिन नेहरू ने इस पर विश्वास करने से मना कर दिया था।
किताब में कहा गया है कि माओ ने 1958 में शुरू किए गए ग्रेट लीप फॉरवर्ड की विफलता के बाद युद्ध की तैयारी शुरू कर दी थी। उन्होंने युद्ध के जरिये देश, खास कर सेना को एकजुट कर सत्ता पर कब्जा बनाए रखने की सोची। इसके लिए उन्होंने भारत को आसान लक्ष्य पाया जिसने तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद 1959 में दलाई लामा को शरण दी थी। लिंटर ने इस आम धारणा को भी खारिज किया कि नेहरू की 1961 की ‘फॉरवर्ड पॉलिसी’ के कारण चीन के साथ युद्ध शुरू हुआ।
किताब में कहा गया है कि माओ के लिए युद्ध का मकसद एशिया और अफ्रीका के नए स्वतंत्र देशों में चीन की भू-राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना भी था। साथ ही विकासशील देशों के नेता के रूप में भारत के उभरने को रोकना भी मकसद था। लिंटनर ने कहा कि 1962 के युद्ध के बाद भारत की बजाय चीन तीसरी दुनिया का नेता बन गया। 1962 की लड़ाई में चीन के मुकाबले भारत को झटका लगा था और यह माना जाता रहा है कि यह युद्ध बीजिंग पर आंख बंदकर भरोसा कर लेने की गलती का नतीजा था। इस युद्ध के बाद से ही भारत और चीन के संबंध लंबे समय तक तल्ख रहे।
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