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फसलों पर अब नहीं होगा आपदा का असर, वैज्ञानिक कुछ इस तरह तैयार कर रहे क्लाइमेटिक जोन

ICAR ने क्राप प्लानिंग के उपायों पर काम करना शुरु कर दिया है। इसमें जल की उपलब्धता और वहां की जलवायु के हिसाब से फसलों की खेती का सिफारिश की जाएगी।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Thu, 05 Sep 2019 08:59 PM (IST)Updated: Thu, 05 Sep 2019 09:14 PM (IST)
फसलों पर अब नहीं होगा आपदा का असर, वैज्ञानिक कुछ इस तरह तैयार कर रहे क्लाइमेटिक जोन

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश में कृषि उत्पादों की मांग व आपूर्ति में समन्वय स्थापित करने के लिए सरकार नेशनल क्रापिंग प्लान तैयार कर रही है। इसका मसौदा चालू साल के आखिर तक बना लिया जाएगा। यह जानकारी इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च के महानिदेशक डाक्टर त्रिलोचन महापात्र ने दी। महापात्र बृहस्पतिवार को यहां पत्रकारों से जल शक्ति योजना के तहत जल के वैज्ञानिक प्रयोग के बारे में चर्चा कर रहे थे।

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देश में घटते प्राकृतिक संसाधनों और खाद्यान्न की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए वैज्ञानिकों के प्रयासों का जिक्र कर रहे थे। उन्होंने बताया कि देश में क्लाइमेटिक जोन के हिसाब से राष्ट्रीय स्तर पर फसलों की खेती को योजना का मसौदा तैयार किया जाएगा। इसमें खाद्यान्न की मांग व आपूर्ति को ध्यान में रखकर जिलावार और क्लाइमेटिक जोन के हिसाब से होने वाली खेती की सिफारिश की जाएगी।

फसलों की विविधीकरण पर जोर
महापात्र ने बताया कि देश में पानी की प्रति व्यक्ति खपत घटती जा रही है। वर्ष 2025 तक पानी की उपलब्धता 1464 क्यूबिक मीटर रह जाएगा। इसका जिक्र करते हुए महानिदेशक महापात्र ने पानी किल्लत की चुनौती से निपटने के लिए फसलों की विविधीकरण और जल के वैज्ञानिक उपयोग पर जोर दिया। इसी के मद्देनजर ICAR ने क्राप प्लानिंग के उपायों पर काम करना शुरु कर दिया है। इसमें जल की उपलब्धता और वहां की जलवायु के हिसाब से फसलों की खेती का सिफारिश की जाएगी।

पानी को लेकर राज्यों के बीच हो सकते हैं विवाद
पत्रकारों से बातचीत में डाक्टर महापात्र ने कहा कि जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता वर्ष 1951 में 5177 क्यूबिक मीटर थी, जो 2014 में घटकर 1508 क्यूबिक मीटर हो गई। हालात यही रहे तो वर्ष 2025 में यह 1465 क्यूबिक मीटर रह जाएगी। महापात्र को डर है कि आने वाले सालों में पानी के मसले पर देश के राज्यों के बीच गंभीर विवाद पैदा हो जाएंगे।

महानिदेशक ने बताया कि देश में 14 करोड़ हेक्टेयर खेती वाली जमीन में से 48.8 फीसद रकबा सिंचित है। बाकी हिस्सा असिंचित क्षेत्र है। सिंचित क्षेत्र का 60 फीसद हिस्सा भूजल पर निर्भर है, जो बहुत गंभीर आंकड़ा है। उन्होंने कहा कि इस समय जरूरत इस बात की है कि बारिश के पानी को संरक्षित कर उसका उपयोग सिंचाई के लिए किया जाए।

संस्थानों को सौंपी गई जिम्मेदारी
इसी के मद्देनजर सचिवों के समूह ने ICAR से समूचे देश के लिए क्राप प्लानिंग करने को कहा है। इसके लिए परिषद के दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एग्रीकल्चरल इकोनामिक्स एंड पालिसी रिसर्च और उत्तर प्रदेश के मोदीपुरम वाले पालिसी रिसर्च एंड इंडियन इस्टीट्यूट आफ फार्मिग सिस्टम रिसर्च को नोडल संस्थान बनाया गया है। इसमें देश के सभी संस्थान और कृषि विश्वविद्यालय और अनुसंधान संस्थानों को जिम्मेदारी सौंपी गई है।

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प्लानिंग में स्थानीय जलवायु, जल की उपलब्धता और मांग-आपूर्ति की स्थितियों को ध्यान में रखा जाएगा। किसानों में इसकी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए इसे सब्सिडी से प्रोत्साहित किया जाएगा। महापात्र ने कहा कि किसानों में पानी के समुचित उपयोग को लेकर जागरुकता अभियान चलाया जाएगा।

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