जलवायु परिवर्तन से हर साल होंगी ढाई लाख अतिरिक्त मौतें, बच्चों का विकास होगा प्रभावित

जलवायु परिवर्तन भारत के साथ पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा है। डब्ल्यूएचओ और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार आने वाले सालों में यह भयानक तौर प...और पढ़ें
नई दिल्ली, संदीप राजवाड़े। जलवायु परिवर्तन से भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया बुरी तरह प्रभावित है। बेमौसम बारिश, सूखा, ज्यादा गर्मी सब इसके ही नतीजे हैं। यह मानव स्वास्थ्य को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि पिछले दो दशकों से जलवायु में हो रहे बदलाव के कारण डेंगू, मलेरिया, ब्रेन फीवर, डायरिया जैसी बीमारियां बढ़ी हैं। गर्भपात के मामले भी बढ़े हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की क्लाइमेट चेंज एंड हेल्थ अक्टूबर 2021 की रिपोर्ट के अनुसार 2030 से 2050 के दौरान हर साल दुनिया में 2.5 लाख अतिरिक्त मौतें सिर्फ इस जलवायु परिवर्तन से होने वाली बीमारियों से होगी। इसमें कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और हीट स्ट्रेस जैसी बीमारियां कारण रहेंगी। वहीं संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ ने भी कहा है कि गर्म हवा यानी हीटवेव से अभी 50 करोड़ बच्चे प्रभावित हैं। सदी के मध्य तक हर साल 2 अरब से ज्यादा बच्चे इसकी चपेट में आएंगे। जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे और उनका विकास होगा।
मलेरिया- डेंगू के साथ गर्भपात बढ़ रहा
भोपाल एम्स के डायरेक्टर डॉ अजय सिंह का कहना है कि मलेरिया-डेंगू जैसी बीमारियां फिर से बढ़ने लगी हैं। ब्रेन फीवर-वायरल फीवर के मरीज भी अधिक आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है। तापमान की अधिकता के कारण अनेक महिलाओं को गर्भधारण में परेशानी हो रही है, उनका गर्भपात हो रहा है। मौसम का बच्चों में विकास पर भी गहरा प्रभाव दिखा है।
आईसीएमआर के संचार व योजना इंचार्ज डॉ. रजनीकांत ने बताया कि डेंगू के मामले अगस्त तक ही आते थे, उसके बाद उन्हें अनुकूल मौसम या तापमान नहीं मिलता था। डेंगू के मच्छर 28 डिग्री सेल्सियस तापमान तक ही जी सकते हैं, इससे कम तापमान में उन्हें मुश्किल होती है। अब नवंबर में भी डेंगू के केस आ रहे हैं, तो यह संकेत है कि डेंगू के मच्छरों को देर तक अनुकूल मौसम मिल रहा है।
बढ़ रही है गर्म दिनों की संख्या
संयुक्त राष्ट्र विकास प्रोग्राम (UNDP) के ह्यूमन क्लाइमेट होरिजंस की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2039 तक भारत में औसतन सालाना तापमान 26.3 डिग्री सेल्सियस और सदी के अंत तक 29.3 डिग्री सेल्सियस चला जाएगा। इतना ही नहीं, 2020-2039 तक क्लाइमेट चेंज के कारण साल में 97 दिन 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा वाले रहेंगे। 2040-2059 के बीच ऐसे दिनों की संख्या 110 और 2080-2099 तक 181 तक हो जाने का अनुमान है। मतलब साल के छह महीने 35 डिग्री से ज्यादा तापमान वाले होंगे। इसके साथ ही 2039 तक अलग-अलग शहर में बढ़े तापमान के अनुसार इस परिवर्तन से प्रति लाख आबादी में मृत्यु दर भी बढ़ जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) औऱ जलवायु परिवर्तन की स्टडी करने वाली संस्था क्लाइमेट इंपैक्ट लैब की हाल ही में 4 नवंबर को जारी रिपोर्ट के अनुसार वेनेजुएला के मराकाइबो में 1990 के दशक में एक साल में 35 डिग्री से. ज्यादा तापमान वाले औसतन दिनों की संख्या 62 थी, जो सदी के मध्य तक ही 201 दिनों तक पहुंचने की आशंका है। 4 नवंबर को जारी इस रिपोर्ट में यह भी आकलन किया गया है कि अगले 18-20 साल में पाकिस्तान के फैसलाबाद में प्रति एक लाख आबादी में 67 मौतों का कारण जलवायु परिवर्तन ही होगा। सऊदी अरब के रियाद में जलवायु परिवर्तन के कारण एक लाख की आबादी पर 35 मौतें होंगी। सदी के अंत तक बांग्लादेश के ढाका में प्रति एक लाख में 132 मौतें जलवायु परिवर्तन से ही होंगी।
कुपोषण, बीमारी से ढाई लाख मौतें
क्लाइमेट चेंज इट्स होरिजंस की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन से हवा, पानी, भोजन और रहने की सुविधा सब पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। 2030 से 2050 के बीच जलवायु परिवर्तन से कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और गर्मी के तनाव से हर साल लगभग ढाई लाख अतिरिक्त मौत होंगी। रिपोर्ट में बताया गया कि जलवायु परिवर्तन से मौसम में भारी बदलाव देखा जा रहा है। हीटवेव, तूफान, बाढ़, बेमौसम बारिश के साथ खाद्य प्रणाली में व्यवधान, पानी और वेक्टर जनित रोग के साथ मानसिक स्वास्थ्य सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। रिपोर्ट के साथ डॉक्टर्स का मानना है कि बढ़ती गर्मी व तापमान से कृषि से लेकर हर सेक्टर में प्रभाव पड़ेगा। बच्चों से लेकर बड़ी उम्र तक के हर वर्ग में अलग-अलग बीमारी इससे बढ़ेगी और यह आने वाले सालों में मौत का सबसे बड़ा कारण होगा।
भारत में पिछले 5 साल में मलेरिया के केस
सन केस मौत
2018- 429928 - 96
2019- 338494 - 77
2020- 186532 - 93
2021- 161753 - 90
2020- 97647 - 12
(सितंबर 22 तक के आंकड़े। सोर्स- राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम)
सबसे ज्यादा बच्चों डेवलपमेंट पर प्रभाव
भोपाल एम्स के डायरेक्टर डॉ. सिंह ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण सभी उम्र के लोग प्रभावित हो रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों पर देखा जा रहा है। वैसे भी बच्चों की फिजिकल लाइफ सीमित होने से उनका मानसिक व शारीरिक विकास पहले से ही प्रभावित हो रहा है। बच्चों में सांस लेने की समस्या, अस्थमा के मामले भी सामने आ रहे हैं। वायरल फीवर और मौसम बदलने से होने वाली बीमारियां बच्चों को ज्यादा और लंबे समय तक हो रही हैं।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार बदलती मौसमी घटनाओं और बढ़ते तापमान से वयस्कों की तुलना में बच्चों को ज्यादा खतरा है। बच्चों का शरीर ज्यादा तापमान झेलने में सक्षम नहीं होता है। वे जितना ज्यादा गर्म हवा का सामना करते हैं, उनके लिए लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों का खतरा उतना अधिक होता है। इनमें सांस, अस्थमा और हृदय से जुड़ी बीमारियां हैं।
यूनिसेफ के अनुसार बच्चों को गर्म हवा के प्रभाव से बचाने के लिए हर देश को प्राथमिकता तय करनी होगी। उत्तरी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चे गर्म हवा की लहरों का सबसे ज्यादा सामना करते हैं। रिपोर्ट में जलवायु कार्यकर्ता और यूनिसेफ के सद्भावना दूत वनेसा नकाटे की तरफ से कहा गया है कि इस स्थिति में बच्चों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। बच्चे जितना ज्यादा समय तक इस गर्म वायु का सामना करेंगे, उतना ही उनकी सेहत पर गंभीर असर पड़ेगा। इसमें सुरक्षा, पोषण, शिक्षा, पानी की उपलब्धता के साथ भविष्य की आजीविका पर प्रभाव भी शामिल है।
डायरिया का खतरा 8 फीसदी बढ़ेगा
जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित रिसर्च के अनुसार छह महीने तक किसी क्षेत्र में सूखे का सामना करने पर डायरिया का खतरा 5 फीसदी तक बढ़ जाता है। वहीं गंभीर सूखे की स्थिति में यह 8 फीसदी तक हो सकता है। साफ पानी की उपलब्धता और स्वच्छता डायरिया से सुरक्षा प्रदान करती है।
क्लाइमेट चेंज से महिलाओं को भी खतरा
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट में महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में बताया गया है-
1- लिंग आधारित हिंसा बढ़ेगी- जलवायु परिवर्तन के कारण आबादी का विस्थापन होने से महिलाओं व लड़कियों के लिए लिंग आधारित हिंसा का जोखिम बढ़ जाता है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चक्रवाती तूफान के बाद यौन तस्करी के मामलों में बढोतरी देखी गई है। इसके साथ ही पूर्वी अफ्रीका में सूखे, लातिन अमेरिका में चक्रवाती तूफान और अरब देशों में मौसम की घटनाओं के दौरान हिंसा बढ़ी है। पाकिस्तान व बांग्लादेश में चक्रवाती तूफान-बाढ़ के बाद महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ी है।
2- बाल विवाह के केस बढ़ेंगे- जलवायु परिवर्तन की वजह से परिवार, भोजन की किल्लत के कारण कम उम्र में जल्द शादी कराने के मामले बढ़ेंगे। कुछ क्षेत्रों में इन शादियों के बदले पैसा मिलता है और वे मानते हैं कि इसके जरिए लड़कियों का भविष्य बेहतर हो रहा है। इसमें भारत के साथ मलावी, फिलिपींस, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर और मोजाम्बीक समेत अन्य देश भी हैं।
3- मृत बच्चों के मामले बढ़ेंगे- प्रसव से पहले वाले एक सप्ताह के दौरान तापमान में 1 डिग्री से. की बढ़ोतरी को गर्मी के मौसम (मई-सितंबर) के दौरान जोखिम में छह फीसदी बढ़ोतरी से जोड़कर देखा जाता है। इस अनुमान से प्रति 10 हजार बच्चों के जन्म में 4 मृत बच्चे होते हैं।
4- यौन-प्रजनन स्वास्थ्य में व्यवधान- जलवायु परिवर्तन के कारण अनचाहे गर्भधारण और सेक्सुअल इंफेक्शन के मामले ज्यादा हो सकते हैं। मोजाम्बीक में चक्रवाती तूफान इलोयस के बाद गर्भनिरोधक नहीं मिलने के कारण 20 हजार से अधिक महिलाओं को अनचाहे गर्भधारण का जोखिम उठाना पड़ा। इसी तरह होंडुरास में 2020 के चक्रवाती तूफान ईटा औऱ आयोटा के बाद एक लाख 80 हजार महिलाओं को परिवार नियोजन सेवाएं नहीं मिल पाईं। एक अध्ययन के अनुसार खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों के बाद कृषि क्षेत्र में काम करने वाली तंजानियाई महिलाओं को आमदनी के लिए देह व्यापार का रास्ता अपनाना पड़ा। इससे एचआईवी-एड्स संक्रमण की दर भी बढ़ी।
ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक रोकना होगा
आईपीसीसी के अनुसार जलवायु परिवर्तन से होने वाले विनाशकारी स्वास्थ्य प्रभाव और मौतों को रोकने के लिए दुनिया के तापमान की वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना होगा। इसके लिए सामूहिक पहल करनी होगी। हरियाली बढ़ाने के साथ लोगों को अपनी कुछ आदतें भी बदलनी होंगी। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को तत्काल नहीं रोका गया तो ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव आने वाले 100 सालों तक ऐसे ही जारी रहेंगे।
बचाव योजना- समय से पहले मिल पाएगी आपदाओं की सूचना
मिस्र के शर्म अल-शेख में चल रहे यूएन जलवायु सम्मेलन - कॉप27 के दौरान 7 नवंबर को यूएन के महासचिव एंटोनियो गुटरेस ने समय से पहले चेतावनी सिस्टम को अगले 5 सालों में सभी तक पहुंचाने को लेकर तीन अरब 10 करोड़ डॉलर की एक नई योजना पेश की। उन्होंने सम्मेलन में कहा कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है, इससे विश्वभर में लगातार मौसम जलवायु घटनाएं हो रही हैं। इससे अरबों डॉलर के नुकसान के साथ बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं। युद्ध की तुलना में जलवायु परिवर्तन की आपदाओं के कारण तीन गुना अधिक लोग विस्थापित हो रहे हैं, आधी मानव आबादी पहले से ही खतरनाक जोन में है। उन्होंने अनुमान प्रणाली को लेकर सभी देशों से आग्रह किया कि इससे हमें तूफान, ताप लहर, बाढ़ और सूखे का अनुमन लगा पाना संभव होगा। अगले पांच साल में दुनिया के हर व्यक्ति को समय से पहले चेतावनी प्रणाली कवच की तरह होगी।
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