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पठानकोट हमले के बाद भारत-पाकिस्तान वार्ता पर संदेह के बादल

भारत द्वारा पाकिस्‍तान के साथ संबंध सुधारने की कोशिशों को पठानकोट हमले के बाद एक बार फिर करारा झटका लगा है। यही वजह है कि दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच होने वाली बैठक पर अब आशंका के बादल मंडराने लगे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 05 Jan 2016 07:56 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jan 2016 08:29 AM (IST)

नई दिल्ली। पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले के बाद एक बार फिर पाकिस्तान के साथ प्रस्तावित द्विपक्षीय बातचीत रद होने की आशंका गहरा गई है। इस पर फैसला अगले दो तीन दिनों में हो सकता है। पठानकोट हमले के बाद देश में बने माहौल और पाक पीएम नवाज शरीफ की पाक सेना व खुफिया एजेंसियों पर ढीली पकड़ को देखते हुए पीएम मोदी के लिए वार्ता को जारी रखना काफी मुश्किल भरा कदम होगा।

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पठानकोट हमले से निबटने के बाद सरकार के लिए पहला फैसला इस प्रस्तावित वार्ता को लेकर ही करना होगा। यही वजह है कि पीएम मोदी रविवार रात और सोमवार सुबह में दो बार विदेश मंत्रलय के अधिकारियों के साथ विचार विमर्श कर चुके हैं। हमले को लेकर मोदी की अध्यक्षता में हुई उचस्तरीय बैठक के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली से जब यह पूछा गया कि भारत-पाक के बीच प्रस्तावित बातचीत का क्या भविष्य है तो उनका जवाब था कि इस बारे में पठानकोट आपरेशन पूरी तरह खत्म होने के बाद ही फैसला किया जाएगा।

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जेटली ने इसके अलावा कुछ नहीं कहा लेकिन माना जा रहा है कि सरकार हर तरह के विकल्प पर विचार करेगी। एक विकल्प यह भी हो सकता है कि विदेश सचिवों के बीच होने वाली बातचीत के बजाये अभी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच बैठक की जाए। इसमें पठानकोट हमले के संदर्भ में किस तरह से आतंकी हमलों को रोका जाए इस पर विचार विमर्श हो।

पठानकोट एयरबेस पर हमेशा से ही रही है पाकिस्तान की कुदृष्टि

विदेश सचिव स्तर की होने वाली बातचीत बाद में आयोजित की जा सकती है। उसके लिए नए सिरे से तिथि तय की जा सकती है। सूत्रों के मुताबिक पठानकोट हमले के बाद भारत सरकार के पास फिर वैसी ही स्थिति पैदा हो गई है जैसी मुंबई हमले के समय हुई थी। साफ हो रहा है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार का वहां की सेना और आइएसआइ पर कोई जोर नहीं चलता। इस वजह से तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने लगभग तीन वर्षो तक पाक से बातचीत को टाल रखा था।

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