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Childrens Day 2018: चाचा नेहरू के बचपन की कुछ अनसुनी और दिलचस्प कहानियां

प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का बचपन भी आम बच्चों की तरह था। वह शरारत करते थे और उन्हें मार भी पड़ती थी। जानते हैं, उनके बचपन के कुछ अनसुने और कुछ प्रेरणादायक किस्से।

By Amit SinghEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 09:34 AM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 03:19 PM (IST)
Childrens Day 2018: चाचा नेहरू के बचपन की कुछ अनसुनी और दिलचस्प कहानियां
Childrens Day 2018: चाचा नेहरू के बचपन की कुछ अनसुनी और दिलचस्प कहानियां

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। प्रत्येक वर्ष भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन (14 नवंबर 1889) को देश भर में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। जवाहर लाल नेहरू को बच्चों से बहुत प्यार था, इसलिए उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि चाचा नेहरू का बचपन खुद भी बहुत दिलचस्प था। आज भी उनके बचपन की ऐसी की कहानियां हैं जो इतिहास के पन्नों में दबी हुई हैं। आज हम आपको जवाहर लाला नेहरू के बचपन की कुछ ऐसी ही कहानियों से रूबरू करते हैं।

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भरी सभा में जब नाराज हो गया था बच्चा
चाचा नेहरू एक बार एक कार्यक्रम में शामिल होने गए थे. यहां एक बच्चे ने अपनी ऑटोग्राफ पुस्तिका उनके सामने रखते हुए कहा- साइन कर दीजिए। नेहरू जी बच्चे के अनुरोध को नकार नहीं सके और उन्होंने ऑटोग्राफ कर बच्चे को पुस्तिका वापस कर दी। बच्चे ने उनके ऑटोग्राफ देखे, लेकिन उस पर तारिख नहीं लिखी थी। बच्चे ने चाचा नेहरू से कहा कि आपने ऑटोग्राफ में तारीख तो लिखी ही नहीं है। इतना सुनते ही चाचा नेहरू के मन में बच्चों जैसी शरारत आ गई। उन्होंने उस बच्चे से ऑटोग्राफ की पुस्तिका ली और उस पर तारीख लिखकर उसे लौटा दी।

इस बार बच्चा उनके ऑटोग्राफ और उसके साथ लिखी तारीख देखकर गुस्सा गया। उसने चाचा नेहरू से कहा कि आपने तो तारीख उर्दू के अंकों में लिख दी है। इस पर चाचा नेहरू ने मजाक भरे लहजे में बच्चे से कहा कि भाई आपने पहले अंग्रेजी में साइन करने को कहा तो मैंने साइन कर दिए। फिर आपने उर्दू में तारीख लिखने को कहा तो मैंने उर्दू में तारीख डाल दी। चाचा नेहरू का ये जवाब सुनकर वहां मौजूद सभी लोग हंस पड़े। बच्चा भी समझ गया कि चाचा नेहरू उससे मजाक कर रहे हैं और उसका गुस्सा तुरंत शांत हो गया। ऐसा था देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का स्वभाव। वह देश को लेकर जितने गंभीर थे, बच्चों के साथ उतने ही बचपने और हंसी-मजाक से रहते थे।

उनका बचपने खुद भी एक प्रेरणा है
पंडित जवाहर लाल नेहरू का बचपन खुद दूसरे बच्चों और लोगों के लिए एक प्रेरणास्रोत रहा है। बात उन दिनों की है जब पंडित जवाहर लाल नेहरू स्कूल में पढ़ाई करते थे। एक दिन सुबह वह अपने स्कूल के जूतों पर पॉलिश कर रहे थे। इसी दौरान उनके पिता पंडित मोतीलाल नेहरू ने उन्हें जूतों में पॉलिश करते हुए देख लिया। उन्होंने नेहरू जी से कहा कि तुम ये क्या कर रहे हो। जूतों में पॉलिश के लिए तुम नौकरों से कह सकते थे। इस पर नेहरू जी ने पिता से कहा कि जो काम मैं खुद कर सकता हूं, उसे नौकरों से क्यों कराऊं? उनके इस जवाब से पंडित मोतीलाल नेहरू बहुत प्रभावित हुए। दरअसल जवाहर लाल नेहरू का मानना था कि छोटे-छोटे कामों के लिए किसी का सहारा नहीं लेना चाहिए। इन्हीं छोटे-छोटे कामों से व्यक्ति आत्मनिर्भर होता है।

जवाहर लाल नेहरू के बचपन के कुछ दिलचस्प किस्से
जवाहर लाल जब छोटे थे उनके पिता मोतीलाल नेहरू को उपहार में दो बेशकीमती फाउंटेन पेन मिले थे। जवाहर लाल ने उनमें से एक पेन ले लिया। इसके पीछे उनकी सोच थी कि उनके पिता को एक ही वक्त में दो पेन की जरूरत कभी नहीं पड़ेगी। जब मोतीलाल नेहरू को पता चला कि उनका एक पेन गायब है तो उन्होंने उसकी तलाश कराई। वह इतने नाराज थे कि जवाहर लाल उनके सामने जाकर अपनी गलती स्वीकारने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। काफी खोजबीन के बाद जब वह पेन जवाहर लाल के पास से बरामद हुआ तो उनके पिता ने उनकी जमकर पिटाई की। पिटाई से वह इस कदर घायल हो गए कि उनके पूरे शरीर पर दवा लगानी पड़ी थी। इसके बाद वह पिता से काफी डरने लगे थे।

जब घर से बिना बताए पिता का घोड़ा लेकर निकले नेहरू घायल हो गए थे
बच्चों में साइकल, बाइक या अन्य वाहनों का क्रेज बहुत ज्यादा होता है। अक्सर हमारे घरों या आसपास के बच्चे घर में बिना बताए चुपके से साइकल या गाड़ी लेकर बाहर निकल जाते हैं। जवाहर लाल नेहरू भी अपने बचपन में इसी तरह आम बच्चों की तरह शरारतें किया करते थे। एक बार बचपन में वह अपने घर आनंद भवन में पिता के अरबी घोड़े की सवारी कर रहे थे। सब लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे। इसी दौरान नेहरू जी घोड़ा लेकर घर से बाहर निकल गए और किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर बाद घोड़ा अकेला वापस आनंद भवन लौट आया, लेकिन बालक जवाहर लाल नेहरू उस पर सवार नहीं थे। इसके बाद बड़े पैमाने पर पूरे शहर में उनकी खोज शुरू हुई। इस दौरान मोतीलाल ने खुद बेटे जवाहर लाल को एक सड़क पर पाया। उन्हें चोट लगी हुई थी और वह धीरे-धीरे घर की तरफ लौट रहे थे। पूछने पर पता चला कि घर से बाहर निकलने के बाद वह घोड़े की पीठ से गिरकर घायल हो गए थे।

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