समंदर किनारे नहीं बल्कि इस तरह उपजा सकते हैं मोती, मुनाफे का सौदा
मोती की खेती उसी प्रकार से की जाती है जैसे मोती प्राकृतिक रूप से तैयार होता है। यहां भी आपको सीप से ही मोती बनाना है।
रायपुर (जेएनएन)। किसान अनाज, सब्जी और फूलों की खेती के साथ ही दूसरी फसलों की खेती करके मुनाफा कमा सकते हैं। इन दिनों किसानों के लिए मोती की फसल मुनाफे का सौदा हो सकती है। हालांकि प्रयोग के तौर पर इंदिरा गांधी कृषि विवि में कुछ छात्रों समेत आस-पास के कुछ किसान मोती बनाने का काम कर रहे हैं। विवि में किसानों को सीप पालन, फसल तैयार करने के बारे में भी जानकारी दी जाती है।
इसके अलावा इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च की नई विंग सीफा के तहत सरकार इसके लिए विशेष प्रकार की ट्रेनिंग भी देती है। इसका मुख्यालय ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित है। इसके लिए यह 15 दिन की ट्रेनिंग देता है, जिसमें सर्जरी का कुछ हिस्सा भी सिखाया जाता है। मोती की खेती पहले समुद्री तटीय क्षेत्रों में की जाती थी। सीफा ने अब इसके लिए ट्रेनिंग का कार्य शुरू किया है।
तीन वर्ष की उम्र में मोती बनाते हैं सीप
सामान्यत: सीप तीन वर्ष की उम्र के बाद मोती बनाने के काम में ली जाती है। मोती तैयार होने में लगभग 14 माह का समय लगता है। इस दौरान सीप के रख-रखाव पर किया जाने वाला खर्च इसकी लागत में शामिल होता है। मोती की खेती उसी प्रकार से की जाती है, जैसे मोती प्राकृतिक रूप से तैयार होता है। यहां भी आपको सीप से ही मोती बनाना है।
मोती की उपज के लिए ये है बजट
मोती की खेती करने के लिए इसे छोटे स्तर पर भी शुरू किया जा सकता है। इसके लिए आपको 500 वर्गफीट का तालाब बनाना होगा। तालाब में आप 100 सीप पालकर मोती उत्पादन शुरू कर सकते हैं। प्रत्येक सीप की बाजार में कीमत 15 से 25 रुपये होती है। इसके लिए स्ट्रक्चर सेट-अप पर खर्च होंगे 10 से 12 हजार रुपये, वाटर ट्रीटमेंट पर 1000 रुपये और 1000 रुपये के आपको इंस्ट्रूमेंट्स खरीदने होंगे।
इस तरह से तैयार होता है मोती
घोंघा नाम का एक कीड़ा जिसे मॉलस्क कहते हैं, अपने शरीर से निकलने वाले एक चिकने तरल पदार्थ द्वारा अपने घर का निर्माण करता है। घोंघे के घर को सीपी कहते हैं। इसके अंदर वह अपने शत्रुओं से भी सुरक्षित रहता है। घोंघों की हजारों किस्में हैं और उनके सेल भी विभिन्न रंगों जैसे गुलाबी, लाल, पीले, नारंगी, भूरे तथा अन्य और भी रंगों के होते हैं तथा ये अति आकर्षक भी होते हैं। घोंघों की मोती बनाने वाली किस्म बाइवाल्वज कहलाती है। इसमें से भी ओएस्टर घोंघा सर्वाधिक मोती बनाता है। मोती बनाना भी एक मजेदार प्रक्रिया है। वायु, जल व भोजन की आवश्यकता पूर्ति के लिए कभी-कभी घोंघे जब अपने सेल के द्वार खोलते हैं तो कुछ विजातीय पदार्थ जैसे रेत कण कीड़े-मकोड़े आदि उस खुले मुंह में प्रवेश कर जाते हैं। घोंघा अपनी त्वचा से निकलने वाले चिकने तरल पदार्थ द्वारा उस विजातीय पदार्थ पर परतें चढ़ाने लगता है।
इस वक्त करें मोतियों की खेती
मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल मौसम शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है। कम से कम 10 गुणा 10 फीट या बड़े आकार के तालाब में मोतियों की खेती की जा सकती है। मोती संवर्धन के लिए 0.4 हेक्टेयर जैसे छोटे तालाब में अधिकतम 25000 सीप से मोती उत्पादन किया जा सकता है। खेती शुरू करने के लिए किसान को पहले तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा करना होता है या फिर इन्हें खरीदा भी जा सकता है। इसके बाद प्रत्येक सीप में छोटी-सी शल्य क्रिया के बाद इसके भीतर चार से छह मिली मीटर व्यास वाले साधारण या डिजाइनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध, पुष्प आकृति आदि डाले जाते हैं। फिर सीप को बंद किया जाता है। इन सीपों को नायलॉन बैग में 10 दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है।
रोजाना इनका निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों को हटा लिया जाता है। अब इन सीपों को तालाबों में डाल दिया जाता है। इसके लिए इन्हें नायलॉन बैगों में रखकर (दो सीप प्रति बैग) बांस या पीवीसी की पाइप से लटका दिया जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। प्रति हेक्टेयर 20 हजार से 30 हजार सीप की दर से इनका पालन किया जा सकता है। अंदर से निकलने वाला पदार्थ नाभिक के चारों ओर जमने लगता है, जो अंत में मोती का रूप लेता है। लगभग 8-14 माह बाद सीप को चीर कर मोती निकाल लिया जाता है।
तीन प्रकार के होते हैं मोती
केवीटी- सीप के अंदर ऑपरेशन के जरिए फारेन बॉडी डालकर मोती तैयार किया जाता है। इसका इस्तेमाल अंगूठी और लॉकेट बनाने में होता है। चमकदार होने के कारण एक मोती की कीमत हजारों रुपये होती है।
गोनट- इसमें प्राकृतिक रूप से गोल आकार का मोती तैयार होता है। मोती चमकदार व सुंदर होता है। एक मोती की कीमत आकार व चमक के अनुसार एक हजार से 50 हजार तक होती है।
मेंटल टिश्यू- इसमें सीप के अंदर सीप की बॉडी का हिस्सा ही डाला जाता है। इस मोती का उपयोग खाने के पदार्थों जैसे मोती भस्म, च्यवनप्राश व टॉनिक बनाने में होता है। बाजार में इसकी सबसे ज्यादा मांग है।
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