महाराष्ट्र में औरंगजेब की तस्वीर से मचा बवाल, एक वॉट्सऐप स्टेटस ने याद दिलाया औरंगाबाद के एक मकबरे का इतिहास
Mughal Emperor Aurangzeb बहुत-से लोगों का अक्सर यही सवाल होता है कि औरंगजेब मुगल सम्राट थे जिन्होंने दिल्ली और आगरा पर राज किया फिर उनकी कब्र महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के खुल्दाबाद में क्यों है? आखिर क्यों औरंगजेब का नाम इस समय चर्चा में है।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Mughal Emperor Aurangzeb: औरंगाबाद के खुल्दाबाद में एक कब्र है, जो साधारण सफेद चादर से ढँका, मिट्टी में तब्दील और कब्र के ऊपर एक सुंदर से पौधे में सिमटा हुआ है। बहुत सरलता से तैयार किया गया यह मकबरा और किसी का नहीं बल्कि दिल्ली और आगरा पर राज करने वाले मुगल सम्राट औरंगजेब का है।
हिंदुस्तान पर राज करने वाले ज्यादातर मुगल शासकों के मकबरे दिल्ली या आगरा में बनाए गए हैं। यह मकबरे साधारण नहीं बल्कि दिखने में भव्य और आलीशान नजर आते है। बहुत-से लोगों का अक्सर यही सवाल होता है कि औरंगजेब मुगल सम्राट थे, जिन्होंने दिल्ली और आगरा पर राज किया फिर उनकी कब्र महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के खुल्दाबाद में क्यों है?
- औरंगाबाद से क्या था औरंगजेब का जुड़ाव?
- औरंगजेब ने अपनी वसीयत में क्या लिखा था?
- औरंगजेब का नाम इस समय चर्चा में क्यों?
औरंगजेब का नाम इस समय चर्चा में क्यों?
इस कहानी से पहले आइये समझ लेते है कि आखिर इस समय औरंगजेब का नाम चर्चा में क्यों है? महाराष्ट्र के कोल्हापुर में कुछ युवकों ने अपने वॉट्सऐप स्टेटस पर औरंगजेब की तस्वीर लगा दी। इसके बाद से ही माहौल गरमा गया।
हिंदू संगठनों ने बुधवार को कोल्हापुर के छत्रपति शिवाजी महाराज चौक पर कार्यकर्ताओं को इकट्ठा कर प्रदर्शन किया। इस वाट्सऐप स्टेटस को डालने वाले तीनों नाबालिग युवकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई, लेकिन संगठनों की मांग है कि आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। जमकर पत्थरबाजी और दुकानों में तोड़फोड़ के बीच पुलिस ने हालात पर काबू पाने के लिए लाठीचार्ज किया। मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है। शांति बनाए रखने के लिए पुलिस की टीम गश्त कर रही हैं। इस मामले पर खुद डीजीपी भी नजर बनाए हुए है।
औरंगाबाद में क्यों दफन हैं औरंगजेब?
औरंगजेब की मौत साल 1707 में महाराष्ट्र के अहमदनगर में हुई और उनके पार्थिव शरीर को औरंगाबाद के खुल्दाबाद में दफनाया गया। इतिहासकारों के मुताबिक, औरंगजेब को ख्याति औरंगाबाद से ही मिलनी शुरू हुई थी। इस दौरान उन्हें जैनुद्दीन शिराजी के बारे में जानने को मिला।
चिश्ती परंपरा के प्रवर्तक सैयद जैनुद्दीन दाऊद शिराजी की शिक्षाओं से औरंगजेब काफी प्रभावित हुए और इसी दिन से उन्होंने शिराजी को अपना गुरु मान लिया। शिराजी ही थे, जिनकी वजह से औरंगजेब ने अपना अंतिम स्थान खुल्दाबाद को चुना। इसी जगह के करीब, शिराजी को दफनाया गया था। औरंगजेब ने अपनी वसीयत में काफी विस्तार से बताया था कि उनका कब्र कैसा होना चाहिए।
'सादगी से तैयार किया जाए मेरा कब्र'
हिंदुस्तान की सल्तनत चलाने वाले औरंगजेब ने मरने से पहले अपनी वसीयत में लिखा था कि उन्हें उनके गुरु सूफी संत सैयद जैनुद्दीन के पास ही दफनाया जाए। उन्होंने यह भी ख्वाहिश जाहिर की थी कि उनकी कब्र निहायत ही सादगी से तैयार की जाए। साथ ही सब्जे के पौधे से ढँका हो और इसके ऊपर छत न हो।
अगर आप कभी इस मकबरे को देखने जाएंगे तो आपको बिल्कुल ऐसा ही देखने को मिल जाएगा। साथ ही मकबरे के पास लगे पत्थर पर औरंगजेब का पूरा नाम- अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगजेब आलमगीर, हिज्री कैलेंडर के हिसाब से औरंगजेब के जन्म और मृत्यु की तारीख भी दर्ज है।
दूसरे मुगल बादशाहों के विपरीत है औरंगजेब का मकबरा
सूफी संत ख्वाजा सैयद जैनुद्दीन शिराजी को अपना गुरु या पीर मानने वाले औरंगजेब ने अपने बेटों से साफ कहा था कि उन्हें शिराजी की कब्र के पास ही दफनाया जाए। दूसरे मुगल बादशाहों के विपरीत औरंगजेब का मकबरा काफी सादा है। ठीक उसी तरह, जैसा उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था। पहले के बादशाहों के मकबरों में सुदंरता का पूरा ध्यान रखा गया, लेकिन औरंगजेब का मकबरा संगमरमर की ग्रिल में सिमटा हुआ है।