निकाह हलाला/बहु विवाह मामलेे का पक्षकार बनना चाहता है AIMPLB, सुप्रीम कोर्ट में अपील
AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल कर मुसलमानों प्रचलित निकाह हलाला और बहु विवाह की चुनौती देने वाली याचिकाओं में पक्षकार बनाने की मांग की है।
नई दिल्ली [माला दीक्षित]। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अर्जी (Plea) दाखिल कर मुसलमानों में प्रचलित निकाह हलाला (Nikah Halala) और बहु विवाह (Polygamy) को चुनौती देने वाली याचिकाओं में पक्षकार बनाए जाने की मांग की। अर्जी में कहा गया है कि न्यायपालिका को इसमें दखल नहीं देना चाहिए यह काम विधायिका का है। याचिका में बोर्ड का कहना है कि पवित्र कुरान (Quran) और हदीस के द्वारा ये नियम बनाए गए हैं। भाजपा (BJP) नेता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) समेत कुछ अन्य लोगों ने इस मामले में याचिकाएं दाखिल की है।'
मुस्लिम बोर्ड ने कहा कि बहुविवाह और निकाह हलाला के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई न करे। बोर्ड ने यह भी कहा कि वर्ष 1997 में कोर्ट ने तय किया था कि पर्सनल लॉ को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता है। कोर्ट के अनुसार, इन मामलों पर कोर्ट को सुनवाई करने का हक नहीं यह विधायिका का मामला है।
इसका कहना है कि उस वक्त लगातार युद्ध होते थे जिसमें बचे महिलाओं और बच्चों को सहारा देने के लिए यह कदम मुनासिब समझा गया लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि मुसलमानों के पास एक से अधिक महिलाओं से विवाह का लाइसेंस है।
निकाह हलाला (Nikah Halala) का मतलब
तलाक के बाद फिर से पति के साथ रहने के लिए महिला को किसी अन्य शख्स से निकाह कर तलाक लेना होता है। इसके बाद ही महिला की पूर्व पति से दोबारा निकाह होगी और वह वहां रह सकेगी। इस पूरी प्रक्रिया को निकाह हलाला कहेंगे।
बहुविवाह (Polygamy)
इसके अनुसार, मुस्लिम शख्स एक साथ चार पत्नियों को रख सकता है यही बहुविवाह की प्रक्रिया कहलाती है।
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