इंटरनेट पर दूषित कंटेंट बाल मन में जहर घोल, मनोविज्ञानी ने अभिभावकों को चेताया...!
बच्चों के हाथ में मोबाइल और उसमें अनियंत्रित कंटेंट की उपलब्धता ने एक पूरी पीढ़ी के लिए खतरा पैदा कर दिया है। मनोविज्ञानी भी मानते हैं कि परवरिश को लेकर नई चेतना जगाने का समय आ गया है जिसके लिए समाज सरकार और परिवार हर वर्ग को आगे आना होगा।
नई दिल्ली, सोनम लववंशी। वर्तमान दौर में देश में छेड़खानी और विरोध जताने पर हत्या करने के बढ़ते मामले चिंताजनक हैं। अपराध की यह प्रवृत्ति हमारे समाज में कई सवाल खड़े कर रही है। आखिर युवाओं के मन में यह भटकाव क्यों पनप रहा है? जिस कच्ची उम्र में युवाओं को अपने भविष्य के सुनहरे सपने बुनना चाहिए, उस उम्र में असामाजिक तत्वों में जुड़ रहे हैं। अब समय आ गया है कि बढ़ती तकनीकी के इस दौर में परवरिश के तरीके बदले जाएं। माता-पिता और अधिक सजग हों, ताकि बच्चों को सही परवरिश के साथ जागरूक किया जा सके। उन्हें सही गलत की सीख दी जा सके।
Internet पर दूषित कंटेंट बाल मन में जहर घोल
यह सच है कि तकनीकी ने आज हमारे जीवन को आसान बना दिया है। खासकर गरीब बच्चों को फ्री कोचिंग जैसी सुविधा किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन विज्ञान को अभिशाप बनते देर नहीं लगती। कच्ची उम्र में बढ़ते अपराध की सबसे बड़ी वजह इंटरनेट बनता जा रहा है। इंटरनेट पर दूषित कंटेंट बाल मन में जहर घोल रहे हैं। अभिभावकों को अपने बच्चों की निगरानी करनी होगी। उनके बच्चे इंटरनेट पर क्या देख रहे हैं। इसकी जानकारी हर माता-पिता को होनी चाहिए। अक्सर माता-पिता की यह शिकायत रहती है कि उनके बच्चे देर रात तक पढ़ाई तो करते हैं, पर नंबर कम आते हैं।
मां-बाप लड़कियों पर तो नजर रखते हैं, लेकिन...!
मनोविज्ञानी भी मानते हैं कि परवरिश को लेकर नई चेतना जगाने का समय आ गया है, जिसके लिए समाज, सरकार और परिवार हर वर्ग को आगे आना होगा। देश के प्रधानमंत्री ने भी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में अभिभावकों का ध्यान आकृष्ट करते हुए कई बार कहा है कि मां-बाप लड़कियों पर तो नजर रखते हैं, लेकिन बेटों से यह नहीं पूछते कि शाम में घंटों घर से बाहर क्या कर रहे थे? बेटियों से सवाल करना सही है, पर क्या बेटों को संस्कार देना माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं है? अभी हाल में दो ऐसी घटनाएं घटी हैं, जिनमें नाबालिगों को यौन अपराध का दोषी पाया गया है। दोनों ही मामलों में उनके बयान थे कि उन्हें मोबाइल फोन पर अश्लील कंटेंट देखने की आदत है।
तकनीकी नहीं दे सकती बच्चों को संस्कार...!
दरअसल, उनके अपराध का मूल कारण भी यही है। इंटरनेट का सस्ता होना, हर बच्चे के हाथ में मोबाइल और उसमें अनियंत्रित कंटेंट की उपलब्धता ने एक पूरी पीढ़ी के लिए खतरा खड़ा कर दिया है। यौन अपराध की ये घटनाएं, तो संकेत हैं कि आगे क्या हो सकता है, लेकिन इस पर काबू कौन करेगा? सरकार, समाज या फिर परिवार। आखिर किसी को तो यह जिम्मेदारी लेना होगी, क्योंकि भटकते कदमों को किसी को तो रोकना ही होगा। इसकी शुरुआत परिवार से ही करनी होगी। तकनीकी हमारा जीवन आसान तो बना सकती है, पर संस्कार परिवार ही दे सकता है।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)