ब्लू प्रिंट तैयार, सिंगल अकाउंटिबिलिटी के साथ भारतीय सेना में होंगे बड़े बदलाव
अगर यह योजना अमल में आई तो वर्ष 2019 में 12 लाख जवानों वाली यह सशक्त सेना बिल्कुल नए रूप में सामने आ सकती है।
By Ramesh MishraEdited By: Published: Mon, 20 Aug 2018 01:05 PM (IST)Updated: Mon, 20 Aug 2018 03:05 PM (IST)
नई दिल्ली [ एजेंसी ]। भारतीय सेना को भविष्य की जरूरतों और चुनौतियों के हिसाब से तैयार करने का प्लान तैयार किया जा रहा है। अगर यह योजना अमल में आई तो वर्ष 2019 में 12 लाख जवानों वाली यह सशक्त सेना बिल्कुल नए रूप में सामने आ सकती है। दरअसल, भारतीय सेना को और ज्यादा चुस्त-दुरुस्त बनाने के मकसद से सेना के भीतर चार अलग-अलग टीमें अध्ययन कर रही हैं। इस अध्ययन रिपोर्ट पर अक्टूबर माह में चर्चा होगी। नवंबर अंत तक इसे सेना प्रमुख के समक्ष रखा जाएगा और आखिर में रक्षा मंत्रालय को भेजी जाएगी।
उम्मीद की जा रही है कि इसके बाद कई ऐसे फैसले लागू किए जा सकते हैं, जिससे सेना के ढांचे में ही बड़ा बदलाव हो सकता है। इससे सेना के अंदर निर्णय लेने में देरी से भी मुक्ति मिलेगी। मैनपावर की बर्बादी पर भी ध्यान रखा जा रहा है। सेना के भीतर इस पर गहन अध्ययन चल रहा है कि कैसे सेना मुख्यालय में मैनपावर को कम किया जाए। आर्मी के विस्तार के साथ मुख्यालय में तैनात अफसरों की संख्या बढ़ती रही है, जिससे फ्रंटलाइन पर ट्रेंड और अनुभवी मैनपावर की उपलब्धता कम हुई है। वैसे ही ऑफिसर कैडर की कमी है और फ्रंटलाइन पर इनकी ज्यादा जरूरत महसूस की जाती रही है।
सेना में सिंगल अकाउंटिबिलिटी पर जोर
अध्ययन कर रही यह टीम इस पर भी ध्यान दे रही है कि क्या कोई ऐसी ब्रांच हैं जिसे रीलोकेट किया जा सकता है यानी सेना मुख्यालय से बाहर कोई ब्रांच निकाली जा सकती है ताकि ज्यादा ऑफिसर्स को फ्रंटलाइन यूनिट के लिए उपलब्ध कराया जा सके।
सेना में सिंगल अकाउंटिबिलिटी के लिए भी काम किया जा रहा है। इसके लिए यह देखा जा रहा है कि क्या सेना के अलग-अलग निदेशालयों को मर्ज किया जा सकता है। साथ ही यह भी कि क्या कुछ निदेशालय बंद किए जा सकते हैं। क्या कुछ मर्ज किए जा सकते हैं। अभी सेना में कई ब्रांच और निदेशालय ऐसे हैं, जो लगभग एक जैसा ही काम करते हैं। इस तरह की 'डुप्लिसिटी ऑफ टास्क' को खत्म करने कि लिए स्टडी कर रही टीम अपनी सिफारिश देगी क्योंकि इससे मैनपावर के साथ ही वक्त भी ज्यादा लग रहा है।
सर्विस के नियम और शर्तों का भी मंथन
सेना में सर्विस के नियमों पर भी मंथन चल रहा है। अभी तक नियम और शर्तों को लेकर आर्मी रेग्युलेशन-1987 माना जाता है। साथ ही डिफेंस मिनिस्ट्री के 1998 के लेटर के हिसाब से पेंशन के लिए मिनिमम सर्विस की लिमिट तय होती है। यह अध्ययन किया जा रहा है कि क्या सर्विस और सेवा के पैरामीटर बदलने की जरूरत है। यह माना जा रहा है कि पेंशन के लिए न्युनतम सर्विस की सीमा बढ़ाई जा सकती है।
'लो मेडिकल कैटिगरी' से लगातार जूझ रही सेना
सूत्रों के मुताबिक सेना 'लो मेडिकल कैटिगरी' से लगातार जूझ रही है। इससे सेना में अनफिट जवानों और अधिकारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सेना प्रमुख कई बार जवानों-अफसरों की हेल्थ को लेकर अपनी सलाह दे चुके हैं। इसके अलावा कई जवान प्रमोशन कैडर में जाने से मना कर देते हैं। नौ महीने की ट्रेनिंग के बाद 15 साल में जवान पेंशन पर जा सकते हैं। इसके लिए अध्ययन दल दूसरे देशों की सेना और भारत के भीतर सेंट्रल गवर्नमेंट सहित दूसरी सर्विस में जो भी सर्विस रूल स्टैंडर्ड को भी खंगाल रही है। उनकी कुछ अच्छी प्रैक्टिस यहां भी लागू की जा सकती है।
ट्रेंड लोगों की कमी से जूझ रही है सेना
सेना में जिस तरह हर वर्ष जवान पेंशन पर जा रहे हैं, उसे ट्रेंड लोगों की कमी हो रही है। इस पहलू को लेकर सेना चितिंत है। इसलिए अध्ययन दल इस पर भी विचार कर रहा है कि क्या पेंशन के लिए न्युनतम सेवा अविध बढ़ाया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक इसे 15 से बढ़ाकर 20 वर्षों करने पर विचार चल रहा है।
अध्ययन दल इस बात की भी पड़ताल कर रहा है कि क्या सेना में ज्यादा मैनपावर की जरूरत रिजर्विस्ट को युद्ध में शामिल कर पूरी की जा सकती है। सभी जवान रिटायरमेंट के बाद रिजर्विस्ट घोषित होते हैं और दो साल तक उनकी रिजर्व लायबिलिटी होती है। इन रिजर्विस्ट को युद्ध की स्थिति में ऐक्टिव ड्यूटी पर बुलाया जा सकता है।
वित्तीय फैसलों में आएगी तेजी
सूत्रों के मुताबिक अभी वित्तीय फैसले पहले फाइनैंस प्लानर से डेप्युटी चीफ के पास जाते हैं, फिर वाइस चीफ के पास। इससे कई बार फैसला लेने में काफी वक्त लग जाता है। अध्ययन के जरिए यह देखा जाएगा कि क्या बीच की लेयर खत्म कर सीधे वित्तीय प्लानर वाइस चीफ को रिपोर्ट कर सकते हैं।
पाकिस्तान और चीन के लिए अलग से ब्रिगेड
सेना की योजना में उठाए जाने वाले अहम कदमों में पाकिस्तान और चीन से लगती पश्चिमी और उत्तरी सीमा के लिए स्पेशल ऑपरेशंस फोर्स ब्रिगेड तैयार करना भी शामिल है।
उम्मीद की जा रही है कि इसके बाद कई ऐसे फैसले लागू किए जा सकते हैं, जिससे सेना के ढांचे में ही बड़ा बदलाव हो सकता है। इससे सेना के अंदर निर्णय लेने में देरी से भी मुक्ति मिलेगी। मैनपावर की बर्बादी पर भी ध्यान रखा जा रहा है। सेना के भीतर इस पर गहन अध्ययन चल रहा है कि कैसे सेना मुख्यालय में मैनपावर को कम किया जाए। आर्मी के विस्तार के साथ मुख्यालय में तैनात अफसरों की संख्या बढ़ती रही है, जिससे फ्रंटलाइन पर ट्रेंड और अनुभवी मैनपावर की उपलब्धता कम हुई है। वैसे ही ऑफिसर कैडर की कमी है और फ्रंटलाइन पर इनकी ज्यादा जरूरत महसूस की जाती रही है।
सेना में सिंगल अकाउंटिबिलिटी पर जोर
अध्ययन कर रही यह टीम इस पर भी ध्यान दे रही है कि क्या कोई ऐसी ब्रांच हैं जिसे रीलोकेट किया जा सकता है यानी सेना मुख्यालय से बाहर कोई ब्रांच निकाली जा सकती है ताकि ज्यादा ऑफिसर्स को फ्रंटलाइन यूनिट के लिए उपलब्ध कराया जा सके।
सेना में सिंगल अकाउंटिबिलिटी के लिए भी काम किया जा रहा है। इसके लिए यह देखा जा रहा है कि क्या सेना के अलग-अलग निदेशालयों को मर्ज किया जा सकता है। साथ ही यह भी कि क्या कुछ निदेशालय बंद किए जा सकते हैं। क्या कुछ मर्ज किए जा सकते हैं। अभी सेना में कई ब्रांच और निदेशालय ऐसे हैं, जो लगभग एक जैसा ही काम करते हैं। इस तरह की 'डुप्लिसिटी ऑफ टास्क' को खत्म करने कि लिए स्टडी कर रही टीम अपनी सिफारिश देगी क्योंकि इससे मैनपावर के साथ ही वक्त भी ज्यादा लग रहा है।
सर्विस के नियम और शर्तों का भी मंथन
सेना में सर्विस के नियमों पर भी मंथन चल रहा है। अभी तक नियम और शर्तों को लेकर आर्मी रेग्युलेशन-1987 माना जाता है। साथ ही डिफेंस मिनिस्ट्री के 1998 के लेटर के हिसाब से पेंशन के लिए मिनिमम सर्विस की लिमिट तय होती है। यह अध्ययन किया जा रहा है कि क्या सर्विस और सेवा के पैरामीटर बदलने की जरूरत है। यह माना जा रहा है कि पेंशन के लिए न्युनतम सर्विस की सीमा बढ़ाई जा सकती है।
'लो मेडिकल कैटिगरी' से लगातार जूझ रही सेना
सूत्रों के मुताबिक सेना 'लो मेडिकल कैटिगरी' से लगातार जूझ रही है। इससे सेना में अनफिट जवानों और अधिकारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सेना प्रमुख कई बार जवानों-अफसरों की हेल्थ को लेकर अपनी सलाह दे चुके हैं। इसके अलावा कई जवान प्रमोशन कैडर में जाने से मना कर देते हैं। नौ महीने की ट्रेनिंग के बाद 15 साल में जवान पेंशन पर जा सकते हैं। इसके लिए अध्ययन दल दूसरे देशों की सेना और भारत के भीतर सेंट्रल गवर्नमेंट सहित दूसरी सर्विस में जो भी सर्विस रूल स्टैंडर्ड को भी खंगाल रही है। उनकी कुछ अच्छी प्रैक्टिस यहां भी लागू की जा सकती है।
ट्रेंड लोगों की कमी से जूझ रही है सेना
सेना में जिस तरह हर वर्ष जवान पेंशन पर जा रहे हैं, उसे ट्रेंड लोगों की कमी हो रही है। इस पहलू को लेकर सेना चितिंत है। इसलिए अध्ययन दल इस पर भी विचार कर रहा है कि क्या पेंशन के लिए न्युनतम सेवा अविध बढ़ाया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक इसे 15 से बढ़ाकर 20 वर्षों करने पर विचार चल रहा है।
अध्ययन दल इस बात की भी पड़ताल कर रहा है कि क्या सेना में ज्यादा मैनपावर की जरूरत रिजर्विस्ट को युद्ध में शामिल कर पूरी की जा सकती है। सभी जवान रिटायरमेंट के बाद रिजर्विस्ट घोषित होते हैं और दो साल तक उनकी रिजर्व लायबिलिटी होती है। इन रिजर्विस्ट को युद्ध की स्थिति में ऐक्टिव ड्यूटी पर बुलाया जा सकता है।
वित्तीय फैसलों में आएगी तेजी
सूत्रों के मुताबिक अभी वित्तीय फैसले पहले फाइनैंस प्लानर से डेप्युटी चीफ के पास जाते हैं, फिर वाइस चीफ के पास। इससे कई बार फैसला लेने में काफी वक्त लग जाता है। अध्ययन के जरिए यह देखा जाएगा कि क्या बीच की लेयर खत्म कर सीधे वित्तीय प्लानर वाइस चीफ को रिपोर्ट कर सकते हैं।
पाकिस्तान और चीन के लिए अलग से ब्रिगेड
सेना की योजना में उठाए जाने वाले अहम कदमों में पाकिस्तान और चीन से लगती पश्चिमी और उत्तरी सीमा के लिए स्पेशल ऑपरेशंस फोर्स ब्रिगेड तैयार करना भी शामिल है।
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