हमारी पुरानी परंपराओं में ही छिपा है CORONAVIRUS से बचने का बेहतर तरीका
पाठ्यक्रमों के जरिये पुस्तकों में इस बात को हम बताएं रोचक कहानियों कविताओं आदि के माध्यम से स्वच्छता का संदेश प्रसारित करें तो देश के छात्रों में इसका सकारात्मक असर हो सकता है।
नई दिल्ली [अनिल झा पूर्व विधायक]। फिलहाल दुनिया के 180 से ज्यादा देशों में कोरोना वायरस फैल चुका है। पश्चिम के विकसित देशों में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा बहुत बेहतर है, फिर भी वे देश आज सबसे ज्यादा घबराए हुए हैं। क्या भारत में उस प्रकार का स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा है? यदि इस आपदा ने विकराल रूप धारण कर लिया तो क्या हम लोग उसे नियंत्रित कर पाएंगे?
देश की सरकार और सभी प्रशासनिक अधिकारी कह रहे हैं कि साफ-सफाई का हमें खास ध्यान रखना चाहिए। घरों को और अपने आप को सैनिटाइज करना चाहिए। संचार के सभी माध्यमों पर होने वाली ये चर्चाएं हमारे लिए जागरूकता का कार्यक्रम चला रही हैं जो बहुत अच्छी बात है। सोशल मीडिया के माध्यम से तमाम चिकित्सकों और योग के जानकारों से बात हुई। उन्होंने बताया कि भारत में अगर कोरोना वायरस व्यापक तौर पर फैल गया तो हमें संभलने का मौका नहीं मिलेगा।
सैकड़ों या हजारों नहीं, बल्कि लाखों लोग हताहत हो जाएंगे। इतना ही नहीं, मानवीय नुकसान के बाद हमारे देश के अंदर जो आर्थिक नुकसान होगा उसकी भरपाई करने में दशकों लग जाएंगे। आज समय आ गया है कि हम अपने देश के नागरिकों को, अपने छात्रों को, बच्चों को स्कूलों में यह पढ़ाएं कि हाथ धोना और अपने शरीर को
साफ सुथरा रखना कितना जरूरी है।
हमारी प्राचीन सभ्यता, सनातन सभ्यता है। हमारी सभ्यता में बिना पैर और हाथ धोएं घर में हमारा प्रवेश वर्जित था। आज से तीन दशक पहले भी हमारी माता जी रसोई घर को बहुत अच्छे से साफ करती थीं। राख और गोबर से घर की लिपाई की जाती थी। वह एक तरह से सैनिटाइज करना ही होता था। रसोई घर का दर्जा मंदिर के समान होता था। मुझे याद है कि मेरी दादी और मेरी मां गांव में हमें बिना हाथ पैर धोए रसोई घर में आने नहीं दिया करती थीं।
मंदिर की तो बात ही कुछ और है। सलीके से हाथ पैर धोने के बाद ही मंदिर में प्रवेश होता था। धूप-कपूर को
जलाकर वातावरण को शुद्ध किया जाता था। कुछ लोग सोशल मीडिया पर हवन का भी मजाक बना रहे हैं। मुझे लगता है कि वे सब नादान हैं। हवन क्रिया में जो भी वस्तु प्रयोग में लाई जाती है उससे उस स्थान का वातावरण शुद्ध होता है और इसका अपना एक वैज्ञानिक आधार है। हवन से वायुमंडल शुद्ध होता है और संक्रमण के आने की आशंकाएं बहुत हद तक कम हो जाती हैं।
जब मिट्टी के बर्तन में दाल बनती थी, मिट्टी के तवे पर रोटी बनती थी और मिट्टी के बर्तन में चावल बनता था, मैं
उस स्मृति को भूल नहीं पा रहा हूं, उसका स्वाद और आनंद ही कुछ और था। मिट्टी के बर्तन में भोजन बनाने से
और उसमें भोजन करने से हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होता है यानि रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। कई वैज्ञानिक रिपोर्ट में इस बात को प्रमाणित भी किया गया है। देश भर में शहरीकरण या फिर उद्योगीकरण के बाद समय और ईंधन के अभाव में खाना पकाने के लिए नए-नए तरीकों का ईजाद किया गया जिसमें वाकई में अपेक्षाकृत कम समय में भोजन तैयार हो जाता है।
लेकिन अब समय आ गया है कि हमें केवल इस बात की ओर ही ध्यान नहीं देना होगा कि कम ईंधन की खपत या कम समय में बना हुआ भोजन लेना है या फिर ऐसा भोजन लेना है जिसमें हमारे इम्यून सिस्टम यानी रोग
प्रतिरोधी क्षमता में वृद्धि करने की ताकत हो। अब हमें इस मसले पर नए सिरे से विमर्श शुरू करना होगा, क्योंकि हम देख रहे हैं कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के ढांचे वाले देश भी इस बीमारी का मुकाबला करने में अक्षम हैं। पुराने दौरे के चाहे शहर हों या गांव वहां रात्रि भोज के बाद या दिन के भोजन के बाद भी मीठे के रूप में गुड़ दिया जाता था।
आज बहुत सारे डॉक्टरों और योग गुरुओं ने बताया है कि कोरोना वायरस का संक्रमण गले से शुरू होता है और मैं यह समझता हूं कि भारतीयों ने बहुत पहले ही इस बात को जान-समझ लिया था कि अगर गले में किसी तरह का संक्रमण है तो यदि हम सामान्य रूप से गर्म पानी के साथ गुड़ का प्रयोग करें तो आराम मिलता है, और गले का संक्रमण तो लगभग खत्म हो जाता है। अगर गर्म पानी और गुड़ का हम लगातार सेवन करें और चीनी को छोड़ दें, तो यह हमारी सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है।
वैसे आज हमारे सामने जिस तरह की परिस्थिति पैदा हो चुकी है अब हर हाल में हमें उससे निपटना ही होगा। यह सिर्फ सरकारों की या फिर सरकारी या गैर-सरकारी संगठनों की जिम्मेदारी नहीं है यह हम सबकी जिम्मेदारी है। यदि हम अपने शरीर के सभी अंगों को हमेशा साफ बनाए रखें तो शरीर के माध्यम से होने वाले किसी भी प्रकार के संक्रमण और उसके फैलाव से बचा जा सकता है।
अगर हम देश के सभी गांवों के सभी लोगों और यहां तक कि शहरों में रहने वालों के बीच भी इस संदेश को गंभीरता से प्रसारित कर दें कि हाथ को धोना अनिवार्य है, तो शायद सभी महिला-पुरुषों को शरीर के माध्यम से
होने वाले संक्रमण के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है। पाठ्यक्रमों के जरिये पुस्तकों में इस बात को हम बताएं, रोचक कहानियों, कविताओं आदि के माध्यम से स्वच्छता का संदेश प्रसारित करें तो देश के छात्रों में इसका सकारात्मक असर हो सकता है।
(दिल्ली विधानसभा व पूर्व अध्यक्ष, छात्र संघ, दिल्ली विश्वविद्यालय)