अमृतसर में जन्मे क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा की अंतिम निशानी मिटी, बेच दिया गया पुस्तैनी घर
क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को अमृतसर के सिकंदरी गेट के अंदर हुआ था। कुछ साल पहले तक ढींगरा का पुराना घर यहां मौजूद था। प्रशासन की लापरवाही के कारण अब यह भूमि बिक चुकी है।
जासं, अमृतसर : देश की आजादी में एक अलग ही अलख जगाने वाले महान क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा ने मात्र 25 साल की आयु में खुद को देश के लिए बलिदान कर दिया था। उनका जन्म 18 सितंबर, 1883 को अमृतसर के सिकंदरी गेट के अंदर हुआ था। कुछ साल पहले तक ढींगरा का पुराना घर यहां मौजूद था। प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है कि अब निशानी मिट चुकी है, जमीन किसी को बेच दी गई है।
2003 गुलामी की बेड़ियों कसमसा रहे देश की आजादी की लड़ाई लड़ रहे मदनलाल ढींगरा केअंदर अलग ही जोश और जुनून था। क्योंकि ढींगरा ने अंग्रेजों की धरती इंग्लैंड में जाकर तत्कालीन भारत के सचिव के राजनीतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्जन वायली की गोलियां मारकर हत्या कर दी थी। मगर इसे समय की सरकारों और प्रशासन की गलती कहेंगे कि देश की आजादी में इतना बड़ा योगदान डालने वाले क्रांतिकारी को समय के साथ भुला दिया गया।
जब माता-पिता ने तोड़ लिया था मदन लाल ढींगरा से नाता
मदन लाल के पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे और अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे। जबकि उनकी माताजी भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था। जब मदनलाल को भारतीय स्वतंत्रता की अलख जगाने के आरोप में लाहौर के एक कालेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने उनसे नाता तोड़ लिया। मदनलाल को जीवन यापन के लिए तांगा तक चलाना पड़ा था।
यूनियन बनाने पर मिल से निकाले गए
कारखाने में श्रमिकों की दशा सुधारने हेतु उन्होंने यूनियन बनाने की कोशिश की। लेकिन वहां से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में काम किया फिर अपनी बड़े भाई की सलाह पर सन 1906 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंगलैंड चले गये। यहां पर उन्होंने यूनिवर्सिटी कालेज लंदन में प्रवेश ले लिया। विदेश में रहकर अध्ययन करने के लिये उन्हें उनके बड़े भाई ने तो सहायता दी ही थी। इंग्लैंड में रह रहे कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से भी आर्थिक मदद मिली थी।
लंदन में सावरकर व श्यामजी कृष्ण के संपर्क में आए
प्रो. दरबारी लाल ने बताया लंदन में ढींगरा भारत के प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपंर्क में आये। वे लोग ढींगरा की देशभक्ति से बहुत प्रभावित हुए। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सावरकर ने ही मदनलाल को अभिनव भारत नामक क्रांतिकारी संस्था का सदस्य बनाया और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। मदनलाल ढींगरा इंडिया हाउस में रहते थे जो उन दिनों भारतीय छात्रों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केंद्र होता था।
कर्नल वायली के चेहरे पर मारी थी चार गोलियां
विधानसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर प्रो. दरबारी लाल ने बताया कि उस 1909 में भारत में पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन चल रहा था। एक जुलाई सन 1909 की शाम को इंडियन नेशनल एसोसिएशन के वार्षिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज इकट्ठे हुए। जैसे ही भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्नल वायली हाल में घुसे, ढींगरा ने उनके चेहरे पर पांच गोलियां चलाई। इनमें से चार सही निशाने पर लगी। 17 अगस्त 1909 को उन्हें फांसी दे दी गई।
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