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संसद में अदाणी, इतने बड़े विवाद को उभरने से रोका जा सकता था

अदाणी मामले का पटाक्षेप चाहे जिस रूप में हो इसे एक बड़े विवाद के रूप में उभरने से रोका जा सकता था यदि नियामक संस्थाओं की ओर से समय रहते यानी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आते ही सारी चीजें स्पष्ट कर दी जातीं।

By Jagran NewsEdited By: Praveen Prasad SinghPublished: Tue, 07 Feb 2023 10:03 PM (IST)Updated: Tue, 07 Feb 2023 10:03 PM (IST)
संसद में अदाणी, इतने बड़े विवाद को उभरने से रोका जा सकता था
इस मामले ने केवल इसलिए तूल नहीं पकड़ा, क्योंकि हिंडनबर्ग ने एक सनसनी पैदा करने वाली रिपोर्ट दी।

अंततः राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के बहाने संसद चल निकली, लेकिन जैसा कि अपेक्षित था कि उसमें भी अदाणी मामले की गूंज सुनाई दी। राहुल गांधी ने इस मामले को जोर-शोर से सदन में उठाया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधा। सत्तापक्ष के तेवरों से यह स्पष्ट है कि वह राहुल गांधी और अन्य नेताओं की ओर से उठाए गए सवालों का जवाब देने के लिए तैयार है। कहना कठिन है कि इस जवाब से अदाणी समूह को लेकर उभरा विवाद शांत होगा या नहीं, लेकिन यह ठीक नहीं कि इस विवाद के बहाने उद्योगपतियों को खलनायक साबित करने की कोशिश की जा रही है। यह शुभ संकेत नहीं।

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देश के विकास में उद्योगपतियों की भी एक बड़ी भूमिका है, लेकिन विपक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस की ओर से रह-रहकर ऐसा माहौल बनाया जाता है कि उद्योगपति सरकार की सहायता से देश को ठगने-लूटने का काम कर रहे हैं। यह इसलिए ठीक नहीं, क्योंकि इससे उद्योगपतियों के साथ उद्यमशीलता के विरुद्ध भी वातावरण बनता है। ऐसा वातावरण न बनने पाए, इसके प्रति विपक्ष को भी सतर्क रहना होगा और सत्तापक्ष को भी। विपक्षी दल इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि अदाणी समूह केवल भाजपा शासित राज्यों में ही नहीं, अन्य दलों और यहां तक कि कांग्रेस शासित राज्यों में भी काम कर रहा है। एक तथ्य यह भी है कि गुजरात में एक उद्योग समूह के रूप में अदाणी का उभार तब हुआ, जब केंद्र और राज्य में कांग्रेस सत्ता में थी।

अदाणी मामले का पटाक्षेप चाहे जिस रूप में हो, इसे एक बड़े विवाद के रूप में उभरने से रोका जा सकता था, यदि नियामक संस्थाओं की ओर से समय रहते यानी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आते ही सारी चीजें स्पष्ट कर दी जातीं। इस मामले ने केवल इसलिए तूल नहीं पकड़ा, क्योंकि हिंडनबर्ग ने एक सनसनी पैदा करने वाली रिपोर्ट दी, बल्कि इसलिए भी पकड़ा, क्योंकि पिछले कुछ समय में अदाणी समूह का अप्रत्याशित उभार हुआ। इसके अतिरिक्त कोविड की मंदी के बावजूद अदाणी समूह की कंपनियों के शेयरों में आश्चर्यजनक ढंग से तेजी आई।

अदाणी समूह पर एक आरोप यह भी है कि उसने पारदर्शिता की अनदेखी कर अधिकतम सीमा तक शेयर अपने पास रखे और अपने शेयरों का अधिक मूल्यांकन किया। कायदे से सेबी को इन सब आरोपों का जवाब तत्परता से देना चाहिए था। इसलिए और भी, क्योंकि अदाणी समूह की ओर से दिया गया जवाब सभी सवालों का समाधान नहीं कर सका। स्पष्ट है कि यदि सेबी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह समय रहते सही तरीके से करता तो जो विवाद खड़ा हुआ, उससे बचा जा सकता था। कम से कम अब तो सेबी और अन्य नियामक संस्थाओं को चेतना ही चाहिए, क्योंकि जो कुछ हो रहा है, उसमें उनकी सुस्ती का भी हाथ है।


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