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सपनों के महल

सड़क पर चलते हुए रोड़ी उसके पैरों में चुभने लगी थी, मगर उसने इस बार रोड़ी के दर्द को सह लिया। जब से यहां पर सड़क बननी शुरू हुई है, तब से यहां पर कई लोग गिरते रहते हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 14 Oct 2016 09:02 AM (IST)Updated: Fri, 14 Oct 2016 09:17 AM (IST)
सपनों के महल

सड़क पर चलते हुए रोड़ी उसके पैरों में चुभने लगी थी, मगर उसने इस बार रोड़ी के दर्द को सह लिया। जब से यहां पर सड़क बननी शुरू हुई है, तब से यहां पर कई लोग गिरते रहते हैं। पैदल चलते-चलते आज अर्नब पहली बार गिरा है। गिरना कितना दुखदायी होता है! पापा हमेशा उसे समझाते थे कि जो करना सही से करना, सही से मैनेज करके करना, अब तुम बड़े हो रहे हो, समझदार हो रहे हो! मगर अर्नब को कभी यह बात समझ में नहीं आई कि क्यों पापा हमेशा उससे चीजों को मैनेज करने की बात करते थे। आज धनंजय से मिलकर उसे समझ में आया है और वह भगवान का शुक्रगुजार है कि पापा ने उसे सही समय पर संभाल लिया था।
अर्नब कक्षा दस में था और अब वह खुद से काफी उम्मीदें करने लगा था। उसे हमेशा लगता था कि वह बहुत बड़ा सिंगर बन सकता है, हालांकि किशोर उम्र में ऐसी अपेक्षा और उम्मीदें खुद से करना गलत नहीं था। इस उम्र में ऐसी अपेक्षाएं खुद से हो जाती हैं, जब सपनोंव के महल बनते हैं। अर्नब भी इन दिनों सपनों के उस महल में रह रहा था। उस महल में चांदनी भी फैली थी। अर्नब के सपनों के महल में वह किशोर कुमार की तरह गाने गाता था। उसे लगता था कि वह भी स्टेज पर खड़े होकर माइक से गाना गा रहा है और लोग वाहवाही कर रहे हैं। वह तारों को छू लेने की एक अजीब-सी भावना से भर जाता। एक-एक करके जैसे खिताब उसकी झोली में गिर आते और उसे लगता कि वह बॉलीवुड का सबसे महंगा गायक है। वह अपने पापा से कहता था, ‘पापा, मैं एक दिन पक्का सबसे बड़ा गायक बनूंगा। आप मुझे गाना सीखने जाने दीजिए न! पापा मुझे खुद से बहुत उम्मीदें हैं। पापा, मैं खुद को मारना नहीं चाहता।’ ‘देखो बेटा, मुझे तुम्हारी इच्छाओं से कोई एतराज नहीं है, मगर तुम्हें खुद को समय देना होगा। शौकिया गाने और समर्पण के साथ गाने में बहुत अंतर होता है।’ पापा उसे समझाते हुए कहते।

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कक्षा दस में उसे नंबर भी अच्छे लाने थे। इसलिए उसने उस समय अपने गाने के सपने को कुछ दिनों के लिए छोड़ दिया। उसे उसके शिक्षकों की यह बात भी याद थी कि इस साल पढ़ाई कर लो, अगले साल कुछ भी करना। अर्नब अच्छे नंबरों की कीमत को समझता था। उसका दोस्त धनंजय भी उसी की तरह गायक बनना चाहता था और वह इस वर्ष दसवीं की परीक्षा नहीं दे रहा था। वह मुंबई गया था, गाना सीखने। उसे देख कर ही अर्नब ने अपने पापा से कहा था। मगर उसे पापा ने यह कहते हुए संभाल दिया था कि पहले पढ़ाई करनी है। धनंजय के पिता नहीं थे और अपनी मां को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने के बाद वह मुंबई चला गया था। अर्नब नहीं चाहता था कि धनंजय जाए, मगर वह उसे रोक नहीं सका।

अर्नब ने अपनी इच्छाओं के महल में थोड़ी देर से ही प्रवेश करने का मन बनाया। अर्नब को पता चल चुका था कि उसे अपनी प्राथमिकताएं तय करनी होंगी। बिना प्राथमिकताएं तय किए कुछ नहीं होगा। अर्नब और धनंजय की प्राथमिकताएं और रास्ते दोनों ही अलगअलग हो गए थे। कक्षा दस में जहां अर्नब के अच्छे माक्र्स आए, वहीं धनंजय को कक्षा दस में दोबारा से पढ़ना पड़ा। ‘धनंजय, तुम तो मुंबई गए थे, क्या हुआ? क्या तुम्हें गाने का चांस मिला? क्या तुम्हें किसी रियलिटी शो में गाने का चांस मिला?’ अर्नब के धनंजय से ढेरों सवाल थे!

मगर धनंजय जब से वापस आया था, तब से बहुत ही बेचैन था, उसे अपने से एक साल जूनियर्स के साथ बैठना बहुत ही अजीब लग रहा था। धनंजय अकेला रहने लगा था। धनंजय अपने से जूनियर बच्चों के साथ घुल-मिल नहीं पा रहा था। जब से वह मुंबई से लौटा था, तब से अर्नब उससे बात करने की कोशिश कर रहा था, मगर धनंजय था कि उसे देख कर ही रास्ता बदल देता था या फिर पढ़ाई का बहाना बना देता था। अर्नब को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?कैसे वह उससे बात करे? आज कई दिनों के बाद उसने उसे रास्ते में ही पकड़ लिया था। सड़क बन रही थी तो वहां पर साइकिल नहीं चल पाती थी और बच्चे अब पैदल जाने लगे थे। ‘धनंजय, तुम मुझे अनदेखा क्यों कर रहे हो?’ अर्नब ने पूछा। ‘नहीं, मैं तुम्हें क्यों अनदेखा करूंगा?’धनंजय ने सिर झुका कर कहा। ‘फिर?’ अर्नब ने रास्ता रोककर कहा।

‘ओह, अर्नब मैं क्या बताऊं तुम्हें? मैंने कितना अपने बारे में सोचा था। मैंने खुद से कितनी उम्मीदें की थीं, सब बेकार हो गईं। मैं गाने में भविष्य बनाने मुंबई गया था, मगर वहां पर दो महीना रुकने के बाद पता चला कि रियलिटी शो में अधिकतर मामला फिक्स होता है। सब नौटंकी फिक्स होती है, सब कलाकारी फिक्स होती है। जब तक मैं यहां आया, तब तक एग्जाम हो चुके थे। तुम सब अब मेरे सीनियर हो चुके हो और मैं वहीं का वहीं, बल्कि एक पायदान नीचे।’ धनंजय टूटकर रोते हुए बोला। ‘अरे? ये सब होता है!’अर्नब की आंखें आश्चर्य से फैल गईं।

‘हां, ये सब होता है! और तुम्हें पता है, और भी बहुत कुछ होता है। शोषण होता है, हम जैसे लड़कों से न जाने क्या-क्या काम कराए जाते हैं, रियलिटी शो में हिस्सा लेने के बहाने! तुम्हें पता अब लगता है कि हमें खुद से जो उम्मीदें होती हैं, उनका सही से हैंडल किया जाना कितना जरूरी होता है। तुम्हें तुम्हारे पापा ने सही सलाह दे दी थी, मगर मैं?’ धनंजय रोते हुए बोला।

‘ओह, धनंजय रोओ मत! पापा कहते हैं कि जब जागो तब सबेरा होता है। तुम्हें रोने की या दुखी होने की जरूरत नहीं है, बस इतना ध्यान रखो कि अब जो भी कदम उठाना, वह अपनी अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए उठाना। पापा कहते हैं कि हम सभी की अपने से बहुत कुछ अपेक्षाएं होती हैं, मगर हम इस असंतोष से तभी बच सकते हैं, जब हम उसे सही से डील कर सकें।’ अर्नब ने उसे गले लगा लिया।

‘हां, मैं ध्यान रखूंगा।’ धनंजय सुबक रहा था। आज अर्नब को अपने पापा पर बहुत प्यार आ रहा था और उसके मन में उनके लिए इज्जत भी बहुत बढ़ गयी थी।आज वह रोड़ी पर चलते हुए गिर भी रहा था, मगर उसे पापा से मिलने की बहुत जल्दी थी और उन्हें धन्यवाद कहने की भी। आज उसे चोट का दर्द नहीं हो रहा था।
गीताश्री

अभ्यास प्रश्न

नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिख कर संस्कारशाला की परीक्षा का अभ्यास करें...

1. हमारी खुद से अपेक्षाएं कैसी होनी चाहिए?

2. क्या हमें अपनी अपेक्षाओं की प्राथमिकताएं तय करनी चाहिए?

3. अपेक्षाओं के पूरे न होने पर असंतोष से कैसे बच सकते हैं?

पढ़ें- खुद से अपेक्षाएं

क्षमता के अधिक इस्तेमाल से लक्ष्य प्राप्ति संभव


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