VD Savarkar: सावरकर के बलिदान को कोई भी उपेक्षा नहीं कर सकता- राकांपा प्रमुख शरद पवार
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने शनिवार को कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में वीडी सावरकर के बलिदान की कोई भी उपेक्षा नहीं कर सकता लेकिन उन पर असहमति को आज राष्ट्रीय मुद्दा नहीं बनाया जा सकता। Photo- AP
नागपुर, पीटीआई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने शनिवार को कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में वीडी सावरकर के बलिदान की कोई भी उपेक्षा नहीं कर सकता, लेकिन उन पर असहमति को आज राष्ट्रीय मुद्दा नहीं बनाया जा सकता। विदेश की धरती पर देश के मुद्दों पर बोलने के लिए भाजपा द्वारा निशाना बनाए जा रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब किसी भारतीय ने विदेश की धरती पर अपने देश के मुद्दों पर बात की है। उन्होंने ये बातें नागपुर में प्रेस क्लब में कहीं। इसके बाद वह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के घर भी गए।
राहुल गांधी को लेकर बोले पवार
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने इस बारे में राहुल गांधी से बात की है और क्या कांग्रेस नेता वीर सावरकर की आलोचना से पीछे हटेंगे, पवार ने कहा कि 18 से 20 राजनीतिक दलों के नेताओं ने हाल ही में बैठक कर देश के बड़े मुद्दों पर चर्चा की है। आज सावरकर कोई राष्ट्रीय मुद्दा नहीं हैं, यह पुरानी बात है। हमने सावरकर के बारे में कुछ बातें कही थीं, लेकिन वह व्यक्तिगत नहीं थीं। लेकिन, इसका एक दूसरा पहलू भी है। सावरकर ने देश की आजादी के लिए जो बलिदान दिया है, उसकी हम उपेक्षा नहीं कर सकते।
पवार ने की सावरकर के बलिदानोंं की बात
शरद पवार ने कहा कि लगभग 32 साल पहले संसद में सावरकर के प्रगतिशील विचारों के बारे में मैंने बात की थी। सावरकर ने रत्नागिरी में एक घर बनवाया था। उसके सामने उन्होंने एक छोटा मंदिर भी बनवाया था। उन्होंने वाल्मीकि समुदाय के एक व्यक्ति को मंदिर में पूजा करने के लिए रखा। मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही प्रगतिशील चीज थी।
सुप्रीम कोर्ट की छह सदस्यीय समिति जेपीसी से अधिक प्रभावी
अदाणी समूह के स्टाक हेरफेर मुद्दे की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित छह सदस्यीय समिति का पक्ष लेते हुए राकांपा प्रमुख शरद पवार ने कहा कि यह संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से अधिक प्रभावी होगी। पवार ने कहा कि यह एक सामान्य ज्ञान है कि जेपीसी में सत्ताधारी पार्टी के अधिक सदस्य होंगे, क्योंकि संसद में इनकी संख्या ज्यादा है।