बांबे हाई कोर्ट ने मुखबिर की विधवा की याचिका पर सुनाया फैसला, कहा- इनका उत्साह न मरने दे सरकार
वर्ष 1991 में सीमा शुल्क विभाग को 90 लाख के हीरों की तस्करी से संबंधित महत्वपूर्ण सूचना देनेवाले चंद्रकांत धावरे की विधवा जयश्री धावरे को यह याचिका तब दायर करनी पड़ी जब सीमा शुल्क विभाग ने चंद्रकांत के जीवनकाल में उन्हें पूरी इनामी राशि नहीं दी।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। बांबे हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि जांच एजेंसियों को सूचनाएं देनेवाले मुखबिर बड़ी जोखिम लेते हैं। सरकार को उन्हें आगे आने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। बांबे हाई कोर्ट के जस्टिस नितिन जामदार एवं अभय आहूजा की खंडपीठ ने यह फैसला एक मुखबिर की विधवा द्वारा 2021 में दायर एक याचिका पर सुनाया है।
वर्ष 1991 में सीमा शुल्क विभाग को 90 लाख के हीरों की तस्करी से संबंधित महत्वपूर्ण सूचना देनेवाले चंद्रकांत धावरे की विधवा जयश्री धावरे को यह याचिका तब दायर करनी पड़ी, जब सीमा शुल्क विभाग ने चंद्रकांत के जीवनकाल में उन्हें पूरी इनामी राशि नहीं दी। मार्च 1991 में सीमा शुल्क विभाग ने उनकी दी गई सूचना के आधार पर ही कुछ आभूषण व्यापारियों के यहां छापा मार कर 3.21 लाख के अनगढ़ एवं 84.47 लाख के पालिश किए हीरे बरामद किए थे।
इस बरामदगी के बाद विभाग द्वारा चंद्रकांत को अप्रैल 1993 में एक लाख रुपए एवं 1999 में दो लाख रुपए की इनामी राशि दी गई थी। उसके बाद उन्हें कोई राशि नहीं दी गई। 2010 में चंद्रकांत की मृत्यु के बाद करीब 10 साल उनकी विधवा जयश्री ने विभाग के चक्कर काटने के बाद बकाया इनामी राशि पाने के लिए बांबे हाई कोर्ट में गुहार लगाई। पांच जनवरी को इस पर फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि जयश्री पूरी इनामी राशि पाने की हकदार हैं। उन्हें यह राशि 12 सप्ताह के अंदर दी जानी चाहिए।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता का दावा जायज है। इस मामले में अदालत का हस्तक्षेप न करना न्याय से विमुख होना माना जाएगा। बता दें कि सीमा शुल्क विभाग ने अदालत में तर्क दिया था कि उसे यह सुनिश्चित करना है कि चंद्रकांत ही वास्तविक मुखबिर था या नहीं, लेकिन अदालत ने विभाग के इस तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि विभाग चंद्रकांत को इसी सूचना के एवज में इनाम की दो किश्तें दे चुका है।