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लिव-इन में रहने वाली महिला भी भरण पोषण की हकदार, MP High Court ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का दिया हवाला

MP High Court News मध्‍य प्रदेश उच्‍च न्‍यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए अपने फैसले में साफ किया कि लंबे समय तक दोनों ने पति-पत्नी की तरह साथ में रहते हुए संतान उत्पत्ति की थी। इस आधार पर अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित भरण-पोषण राशि का आदेश उचित है। इसलिए बोपचे की याचिका रद्द की जाती है।

By Jagran News Edited By: Prateek Jain Published: Sun, 07 Apr 2024 08:37 AM (IST)Updated: Sun, 07 Apr 2024 08:37 AM (IST)
मध्‍य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक लिव-इन-रिलेशन में रहने वाली महिला को भरण-पोषण का हक है।

जेएनएन, जबलपुर। मध्‍य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि किसी व्यक्ति के साथ लंबे समय तक लिव-इन-रिलेशन में रहने वाली महिला को भी अलग होने पर भरण-पोषण लेने का हक है, भले ही वे कानूनी रूप से विवाहित न हों।

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हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी शैलेश बोपचे नाम के व्‍यक्ति‍ की याचिका को रद्द करते हुए की, जिसमें उसने बालाघाट जिला अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अलग होने वाली लिव-इन-पार्टनर को 1,500 रुपये का मासिक भत्ता देने का आदेश सुनाया गया था।

विवाह का प्रमाण नहीं दे पाई थी मह‍िला

जिला अदालत के आदेश को बोपचे ने इस आधार पर चुनौती दी, क्‍योकिं अदालत ने माना था कि महिला, जो उसकी पत्नी होने का दावा करती है, यह साबित करने में विफल रही कि उन्होंने मंदिर में शादी की थी।

जस्‍टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि बोपचे के अधिवक्ता का एकमात्र तर्क यह है कि महिला कानूनी तौर पर उनकी पत्नी नहीं है, इसलिए सीआरपीसी की धारा-125 के तहत भरण-पोषण राशि की मांग का आवेदन विचार योग्य नहीं है। जबकि महिला के वकील ने लंबे समय तक साथ रहने के ठोस साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं। इसलिए महिला के हक में जिला अदालत बालाघाट का आदेश न्यायसंगत पाकर, उसे चुनौती देने वाली याचिका रद्द की जाती है।

लिव-इन में रहते हुए महिला ने बच्‍चे को दिया जन्‍म

मामले की सुनवाई के दौरान महिला ने अदालत को बताया कि वह बोपचे के साथ न केवल लंबे समय तक पत्नी की तरह रही, बल्कि उसे संतान भी हुई। इसलिए भरण-पोषण का अधिकार बनता है।

अधीनस्थ न्यायालय ने इस तथ्य व मंदिर में विवाह किए जाने के बिंदु को गंभीरता से लेकर भरण-पोषण अधिनियम की धारा-125 के अंतर्गत 2012 में 1500 रुपये मासिक भरण-पोषण राशि प्रदान करने का आदेश सुनाया था, जिसके खिलाफ बोपचे ने अतिरिक्त सत्र न्यायालय में अपील की।

जब अपील वहां रद्द हो गई तो वह हाईकोर्ट पहुंचा। उसका मुख्य तर्क यही था कि उसका महिला से विधिवत  विवाह नहीं हुआ था और वह उम्र में भी उससे बड़ी है। वह मंदिर में शादी करने के सबूत भी पेश नहीं कर पाई।

साथ ही विवाह की विधि के बारे में भी कुछ नहीं बता पाई। कुल मिलाकर वैधानिक पत्नी होने के बारे में उसकी ओर से कुछ ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जा सका। इसलिए मह‍िला को भरण-पोषण राशि पाने का अधिकार नहीं है। इसके बावजूद अधीनस्थ अदालत ने महज लंबे समय तक साथ रहने के आधार पर भरण-पोषण राशि का आदेश पारित कर दिया।

महिला ने दर्ज कराया था दुष्‍कर्म का केस

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान बोपचे ने यह भी बताया कि महिला ने उसके खिलाफ दुष्कर्म का केस कराया था। तब अवयस्क होने के कारण मामले की सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में हुई थी और वह दोष मुक्त हुआ था।

याचिका में कहा गया कि विवाह अवैधानिक है तो धारा 125 के तहत अनावेदिका भारण-पोषण की राशि प्राप्त करने की हकदार नहीं है। बहरहाल, उच्‍च न्‍यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए अपने फैसले में साफ किया कि लंबे समय तक दोनों ने पति-पत्नी की तरह  साथ में रहते हुए संतान उत्पत्ति की थी। इस आधार पर अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित भरण-पोषण राशि का आदेश उचित है। इसलिए बोपचे की याचिका रद्द की जाती है।

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