इंदौर में खुले आसमान के नीचे बह रही ज्ञान की गंगा
शहर में एक ऐसा स्कूल चल रहा है, जहां गरीब और जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया जा रहा है। बीते दस सालों से स्कीम नंबर 54 में डॉ. ललिता शर्मा ओपन स्कॉय स्कूल चला रही है।
ज्ञान तो बहुतों के पास है, लेकिन उस ज्ञान का उपयोग कितना अपने लिए और कितना दूसरों के लिए किया जा रहा है, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। जब यह ज्ञान जरूरतमंद और समाज के अंतिम तबके तक मुफ्त में पहुंचे तो इससे बेहतर और कोई सेवाकार्य नहीं हो सकता। शहर में एक ऐसा स्कूल चल रहा है, जहां गरीब और जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया जा रहा है। बीते दस सालों से स्कीम नंबर 54 में डॉ. ललिता शर्मा ओपन स्कॉय स्कूल चला रही है।
गरीब और जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई के लिए डॉ. शर्मा ने अपनी तरक्की और स्वार्थ को पीछे रख दिया। उन्होंने प्राइवेट कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी छोड़ दी। दस साल पहले अपने घर के कमरे में बस्ती की आठ-दस लड़कियों को पढ़ाने से शुरुआत की थी। ये वे लड़कियां थीं, जिनकी मां सुबह से शाम तक लोगों के घर में काम करने जाती हैं। पिताजी शराब पीकर हंगामा और बच्चों को परेशान करते हैं।
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ये लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं, लेकिन उन्हें डॉ. शर्मा ने बुनियादी शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा देना भी शुरू किया। यहां धीरे-धीरे संस्कारों की शिक्षा भी दी जाने लगी। स्कूल का धीरे धीरे प्रचार होने लगा। घर का कमरा पूरा भर गया तो उनके बरामदे में कक्षा लगने लगी। साल भर में ही बरामदा भी पूरा भर गया। इसके बाद घर के सामने खाली पड़े मैदान में कक्षाएं लगने लगी। अब बीते सात-आठ वर्षों से मैदान में स्कूल लग रहा है।
यहां नर्सरी से कॉलेज तक के बच्चे मुफ्त में पढ़ाई कर रहे हैं। ठीक शाम 4 बजे बच्चे ओपन स्कॉय स्कूल में पहुंच जाते हैं। यहां शाम सात बजे तक कक्षाएं संचालित होती हैं। गर्मी हो, ठंड हो या बारिश। कोई भी मौसम हो, यहां की कक्षाएं प्रभावित नहीं होती हैं। यहां आने वाले कुछ बच्चे आसपास के सरकारी और प्राइवेट स्कूल में भी पढ़ने जाते हैं, तो कई छात्राओं को डॉ. शर्मा द्वारा प्राइवेट फॉर्म भरवाकर परीक्षा दिलवाई जाती है।
उनका विद्यार्थियों से इतना निजी जुड़ाव हो चुका है कि अगर चार दिन लगातार कोई बच्चा स्कूल नहीं आता है तो वे पूछताछ करने के लिए उनके घर पहुंच जाती हैं। बच्चे की तबीयत खराब है तो खुद उसका इलाज करवाती हैं। लड़कियों को माता पिता द्वारा आने से रोका जाता है तो उनकी काउंसिलिंग करती हैं।
डॉ. शर्मा हर हफ्ते आसपास की बस्तियों में एक दौरा करती हैं। महिलाओं को लड़कियों की पढ़ाई के प्रति जागरूक करती हैं। डॉ. शर्मा को इस काम में उनके पति और सास द्वारा पूरा सहयोग किया जाता है। शिक्षा के साथ-साथ वे लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर भी सिखा रही हैं। बस्ती में छेड़छाड़ जैसी घटनाओं का डटकर सामना करने के लिए लड़कियों को समय समय पर आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके अलावा उनके स्वास्थ्य परीक्षण की जिम्मेदारी भी उन्होंने खुद ली हुई है।
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