Video: मध्य प्रदेश में विरासत मदिरा के नाम से बिकेगी महुआ से बनी शराबः शिवराज सिंह चौहान
Madhya Pradesh शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि महुआ से बनी शराब को वैध बनाने के लिए नई आबकारी नीति बनाई जा रही है। यह शराब दुकानों में विरासत मदिरा के नाम से बेची जाएगी। यह आदिवासियों के आमदनी का जरिया बनेगी।
भोपाल, एएनआइ। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को मंडला में कहा कि महुआ से बनी शराब को वैध बनाने के लिए नई आबकारी नीति बनाई जा रही है। यह शराब दुकानों में विरासत मदिरा के नाम से बेची जाएगी। यह आदिवासियों के आमदनी का जरिया बनेगी। इस मौके पर शिवराज ने कहा कि इतिहास में अंग्रेजों और कांग्रेस ने बेईमानी की थी, इतिहास सही ढंग से नहीं पढ़ाया। गोंडवाना के गौरवशाली इतिहास को सामने लाना जरूरी है। ये उन महापुरुषों और क्रांतिकारियों के प्रति श्रद्धांजलि होगी, जो पहले मुगलों और बाद में अंग्रेजों से लड़ते रहे।
#WATCH | A new excise policy is in making that will legalize liquor made of mahua. This liquor will be sold as 'heritage liquor' in shops: Madhya Pradesh CM Shivraj Singh Chouhan in Mandla pic.twitter.com/VEu78TJJs4
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के दो प्रमुख शहरों भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होगी। वर्ष 1981 से इसकी कवायद चल रही थी। रविवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन दोनों शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा की। इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि शहरों में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। भौगोलिक और आबादी की दृष्टि से महानगरों का विस्तार हो रहा है, इसलिए कानून व्यवस्था की कुछ नई समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। इनके समाधान और अपराधियों पर नियंत्रण के लिए इन दो बड़े महानगरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश में तीन जून 1981 को तत्कालीन दिग्विजय सिंह कैबिनेट में पांच लाख से ज्यादा की आबादी वाले चार शहरों भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी पर क्रियान्वयन नहीं हो पाया। 27 मार्च 1997 को तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार के मंत्रियों ने इस प्रणाली को समझने के लिए दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, अमरावती आदि का भ्रमण भी किया था। वर्ष 2000 में दिग्विजय सरकार के दूसरे कार्यकाल में पुलिस कमिश्नर प्रणाली का विधेयक विधानसभा में पारित होने के बाद इसे अनुमोदन के लिए राजभवन भेजा गया लेकिन तत्कालीन राज्यपाल स्व. डा. भाई महावीर ने स्वीकृति नहीं दी थी।