MP Politics: जानें, दिग्विजय सिंह के खिलाफ क्यों तल्ख है शिवराज सरकार; क्या है विरोध की वजह
MP Politics मध्य प्रदेश की सियासत में दिग्विजय सिंह कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के लिए कारगर माने जा रहे हैं। अब तो कांग्रेस में एकमात्र वही ऐसे नेता बन गए हैं जिनके खिलाफ हमेशा शिवराज सरकार की तल्खी बनी रहती है और भाजपा भी मुखर रहती है
भोपाल, जेएनएन। मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सोमवार को पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और कमल नाथ पर जमकर निशाना साधा। नरोत्तम मिश्रा ने ट्वीट में लिखा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से दिग्विजय की मुलाकात में कमलनाथ का जाना दोनों की मित्रता पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है। वास्तव में दिग्विजय और कमलनाथ एक-दूसरे पर भरोसा ही नहीं करते हैं। एक अन्य ट्वीट में नरोत्तम ने कहा कि दिग्विजय ने कांग्रेस को खत्म करने की सुपारी ले रखी है। प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय के खिलाफ शिवराज सरकार के विरोध और भाजपा के मुखर होने के कई कारण हैं। अभी हाल ही में मुलाकात के दौरान भी शिवराज ने दिग्विजय को मुलाकात के दौरान भी भाव नहीं दिया था।
.@digvijaya_28 जी ने कांग्रेस को खत्म करने की सुपारी ले रखी है।@INCMP pic.twitter.com/Sb3gkVIMko
शिवराज ने दिग्विजय को समय दिया, भाव नहीं
प्रदेश के टेम और सुठालिया बांध के डूब प्रभावित किसानों की मुआवजा राशि बढ़ाए जाने की मांग को लेकर राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने रविवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात की। करीब 10 मिनट की इस मुलाकात में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ भी साथ रहे। बताते हैं कि शिवराज ने दिग्विजय से बातचीत न कर कमल नाथ को खास तवज्जो दी। इसका वीडियो बाहर आया तो भाजपा नेताओं ने दिग्विजय का मजाक बनाया। भाजपा नेता हितेश वाजपेयी ने इसे लेकर एक व्यंग्यात्मक ट्वीट भी किया और कहा कि क्या कमल नाथ ने पिछले दिनों स्टेट हैंगर पर शिवराज को कह दिया था कि जब तक दिग्विजय मेरे साथ ना आएं, तब तक मत मिलना। सीएम और कमल नाथ की स्टेट हैंगर पर शुक्रवार को मुलाकात हुई थी। उस दिन दोनों का एक-दूसरे का हाथ पकड़े फोटो काफी चर्चित हुआ था। इसी दिन दिग्विजय धरने पर बैठे थे और उन्होंने मुख्यमंत्री पर समय न देने का आरोप लगाया था। प्रदेश के राजगढ़ जिले में पार्वती नदी पर प्रस्तावित सुठालिया परियोजना में राजगढ़ जिले के पांच और गुना जिले के दो गांव डूब में आ रहे हैं। वहीं, टेम परियोजना में भोपाल जिले की बैरसिया तहसील के 24 और गुना जिले की मधुसूदनगढ़ तहसील के 69 गांव डूब में आ रहे हैं। डूब क्षेत्र के किसानों को बाजार दर से कम मुआवजा दिया जा रहा है। इसी मांग को लेकर दिग्विजय शुक्रवार को सीएम से नहीं मिल पाए तो धरना दिया था। धरने के बाद उनपर व समर्थकों पर दो मुकदमे भी पुलिस ने दर्ज किए।
इसलिए है तल्खी
प्रदेश की सियासत में दिग्विजय सिंह कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के लिए कारगर माने जा रहे हैं। अब तो कांग्रेस में एकमात्र वही ऐसे नेता बन गए हैं, जिनके खिलाफ हमेशा शिवराज सरकार की तल्खी बनी रहती है और भाजपा भी मुखर रहती है। शिवराज सरकार पर पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ भी हमलावर रहते हैं, लेकिन अघोषित तौर पर सत्ता-संगठन उन्हें कड़ी प्रतिक्रिया नहीं करता। ताजा मामला सीएम हाउस के बाहर डूब प्रभावितों के हक के लिए दिग्विजय सिंह द्वारा धरना देने का है।
ये है विरोध की वजह
चुनाव नगर निकाय से लेकर विधानसभा या लोकसभा का क्यों न हो, दिग्विजय के कार्यकाल को भाजपा याद न दिलाए, ऐसा हो नहीं सकता है। दरअसल वर्ष 2003 से दिग्विजय सिंह सत्ता से बाहर हैं। 2018 में कमल नाथ कांग्रेस सरकार के मुखिया बने फिर भी भाजपा के लिए चुनौती सिर्फ दिग्विजय ही रहते हैं। इसकी कई वजहें सामने आती हैं, जो कमल नाथ के मुकाबले दिग्विजय सिंह को विरोध के लिए अधिक फायदेमंद साबित करती हैं।
असफल सीएम की छवि
दिग्विजय की असफल मुख्यमंत्री की छवि गढ़ने में भाजपा की सफलता। भाजपा ने चुनावी अभियानों के साथ ही सियासत के हर छोटे-बड़े घटनाक्रम में दिग्विजय सिंह को कांग्रेस की विफल सरकार का चेहरा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। भाजपा, विशेषकर मुख्यमंत्री कांग्रेस की असफलता के लिए कमल नाथ के बजाय अब भी दिग्विजय सिंह की सरकार की याद दिलाते हैं।
हिंदुत्व विरोधी बयान
दिग्विजय का हिंदुत्व विरोधी बयान, जिससे भाजपा को सियासत में हमेशा फायदा मिलता रहा है। सिंह की इसी छवि के चलते उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में भोपाल सीट से हार का सामना करना प़़डा था। सिंह के बयानों के आधार पर भाजपा कई बार चुनावों का धार्मिक ध्रुवीकरण करने में सफल रही है। ऐसा लाभ भाजपा को मध्य प्रदेश से बाहर दूसरे राज्यों में भी मिल चुका है। इस मामले में साफ्ट हिंदुत्व के चलते कमल नाथ भाजपा के निशाने पर नहीं आते।
गरीब विरोधी छबि
दिग्विजय को राजा कहे जाने से उनके लिए गढ़ी गई गरीब विरोधी छवि उन पर कांग्रेस में ही आदिवासी, दलित, पिछड़ और कमजोर वर्ग के नेताओं को अहम जिम्मेदारी से दूर रखने के आरोप लगते रहे हैं। जबकि कमल नाथ ने अपनी सरकार और संगठन में जातिगत संतुलन साधने की कोशिश की थी, जिसके चलते वह भाजपा के निशाने पर आने से बचते रहे हैं।
संगठन स्तर पर मिलने वाला लाभ
एक बड़ी वजह संगठन स्तर पर मिलने वाला लाभ। दिग्विजय के पूरे मध्य प्रदेश में समर्थक हैं। उनका विरोध करने पर पूरे प्रदेश से प्रतिक्रिया होती है, जिससे स्थानीय स्तर पर भी भाजपा के पदाधिकारी और कार्यकर्ता सक्रिय हो जाते हैं। उन्हें राष्ट्रीय स्तर के नेता के विरोध का मौका मिल जाता है। कमल नाथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, लेकिन प्रदेश में उनके उतने समर्थक नहीं हैं, जितने की दिग्विजय सिंह के।
सिसायी कद
दिग्विजय के राष्ट्रीय स्तर के सियासी कद का फायदा भी भाजपा को मिलता है। उनके विवादित बयान और उस पर कांग्रेस हाईकमान की चुप्पी साबित करती रही है कि वह किसी की परवाह नहीं करते। ऐसे में भाजपा जब दिग्विजय को घेरती है, तो न सिर्फ मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आता है, बल्कि हाईकमान को ही सीधे चुनौती देने का मौका मिल जाता है। जबकि कमल नाथ के साथ ऐसा नहीं है। वह विवादित बयानों से तो बचते ही हैं, साथ ही दिल्ली के संपर्क में रहते हैं। कोई विवादित स्थिति बन जाने पर पार्टी को साथ लेकर चलते हैं।