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मोदी के नवरत्न: जिनके साथ उन्होंने पार की हर मुश्किल चुनौतियां

लोकसभा चुनाव 2014 में पड़े मतों की गिनती शुरू होने में कुछ ही वक्त बचा है। 16 मई सुबह 8 बजे जैसे-जैसे इवीएम में पड़े वोटों की गिनती शुरू होगी, वैसे-वैसे मतदाताओं ने देश का भाग्य किस के हाथ में सौंपा है उसकी स्थिति स्पष्ट होने लगेगी। जैसा कि विभिन्न एक्जिट पोल के अनुसार मतदाताओं ने इस बार मोदी सरकार के पक्ष में मतदान किया है और भाजपा स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। यदि ऐसा होता है तो इसके पीछे नरेंद्र मोदी की छवि और उनके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की लहर के साथ-साथ उनके

By Edited By: Published: Thu, 15 May 2014 07:31 AM (IST)Updated: Thu, 15 May 2014 08:24 AM (IST)
मोदी के नवरत्न: जिनके साथ उन्होंने पार की हर मुश्किल चुनौतियां

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2014 में पड़े मतों की गिनती शुरू होने में कुछ ही वक्त बचा है। 16 मई सुबह 8 बजे जैसे-जैसे इवीएम में पड़े वोटों की गिनती शुरू होगी, वैसे-वैसे मतदाताओं ने देश का भाग्य किस के हाथ में सौंपा है उसकी स्थिति स्पष्ट होने लगेगी। जैसा कि विभिन्न एक्जिट पोल के अनुसार मतदाताओं ने इस बार मोदी सरकार के पक्ष में मतदान किया है और भाजपा स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। यदि ऐसा होता है तो इसके पीछे नरेंद्र मोदी की छवि और उनके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की लहर के साथ-साथ उनके नवरत्नों सहयोग भी कमतर नहीं आंका नहीं जाना चाहिए। जो हर वक्त मोदी के साथ मजबूती के साथ खड़े रहे और तमाम विरोधों के बावजूद इस चुनावी महासमर में उनके पक्ष में माहौल बनाने में कड़ी मेहनत की। आइए जानें कौन हैं उनके नवरत्न..

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अमित शाह

मोदी के हनुमान माने जाने वाले अमित शाह को इस महासमर में उत्तर प्रदेश की कड़ी चुनौती थमा दी गई। जात-पात की राजनीति से प्रभावित उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा और उनके मजबूत कैडर को पार पाना शाह ने एक चुनौती के रूप में लिया। उन्होंने उत्तर प्रदेश का प्रभार संभालते ही निर्जीव पड़े भाजपा कैडर में जान फूंक दी। 2002 में गुजरात में गृह मंत्रालय के साथ ही 10 अहम विभागों की कमान संभालने वाले अमित शाह मोदी के बेहद करीबी माने जाते हैं। माना जाता है कि मोदी द्वारा लिए गए कई निर्णयों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रईस बिजनेस परिवार से ताल्लुक रखने वाले अमित शाह ने मोदी की राजनीति को बुलंदियों पर पहुंचाया। यही कारण है कि कभी अपने गृह मंत्रालय में जूनियर मंत्री रहे शाह को मोदी ने ना सिर्फ भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव बनवाया, बल्कि उत्तर प्रदेश का प्रभारी भी बनवाया। राम मंदिर मुद्दे को फिर से जोर न पकड़ता देख शाह ने धीरे से राम के नाम को पीछे छोड़ दिया और मोदी की लाइन पकड़ ली। उन्होंने उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार में विकास पर ज्यादा जोर दिया। मोदी आक्रामक हैं और सीधा वार करते हैं, लेकिन उसके उल्ट अमित शाह मृदुभाषी हैं। उनकी जुबान से उनकी राजनीति के रास्ते का पैमाना पता नहीं चलता।

राजनाथ सिंह

भाजपा के नाथ यानी राजनाथ सिंह ने पार्टी के एक धड़े के तीखे विरोध के बावजूद ना सिर्फ मोदी को पहले प्रचार अभियान का प्रमुख बनाया, बल्कि बाद में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी। राजनाथ की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मोदी जिनके साथ सीधे हॉट लाइन पर होते हैं, वो राजनाथ हैं। अटल-आडवाणी के दौर के बाद मोदी-राजनाथ भाजपा की नई जोड़ी है। मोदी के नाम पर जहां भी अड़चन पैदा हुई, रास्ते के उस पत्थर को हटाने सबसे आगे राजनाथ ही आए। कहते हैं कि वाराणसी से मोदी को लड़ाने की रणनीति राजनाथ सिंह की थी, ताकि उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों को एक साथ साधा जा सके।

अरुण जेटली

अरुण जेटली और नरेंद्र मोदी के बीच खूब जमती है। मोदी के सद्भावना उपवास कार्यक्रम के दौरान जेटली ने सार्वजनिक तौर पर मंच से कहा था कि उनके और मोदी के बीच हर दिन फोन पर बातचीत होती है। गुजरात विधानसभा चुनावों में भी जेटली की काफी सक्रिय भूमिका रही है। इशारों ही इशारों में सबसे पहले जेटली ने ही मोदी की पीएम पद की उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाया था और बाद में अन्य शीर्ष नेताओं को मोदी के पक्ष में लामबंद किया। 2002 के दंगे के बाद से ही वह मोदी की मजबूत ढाल बने हुए हैं। इस चुनाव में उन्होंने मोदी के ऊपर लग रहे आरोपों को बखूबी जवाब दिया।

ये बहुत कम लोगों को पता है कि केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात में नए मुख्यमंत्री की तलाश हो रही थी, तब नरेंद्र मोदी का नाम आगे बढ़ाने में जेटली की अहम भूमिका थी। इतना ही नहीं, गुजरात दंगों के बाद भी आडवाणी के साथ जिसने मोदी को बचाने में अपनी ताकत झोंकी, उनमें जेटली भी थे।

नितिन गडकरी

दूसरों के उलट नितिन गडकरी के लिए मोदी के नवरत्नों में शामिल होना बहुत आसान नहीं था। गडकरी के पार्टी अध्यक्ष रहते मोदी से उनके टकराव के कई मामले सामने आए। कहा तो यहां तक जाता है कि गडकरी को दोबारा अध्यक्ष बनवाने के पक्ष में मोदी नहीं थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि गडकरी उनकी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के रास्ते में रोड़ा बन सकते हैं। जब मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया, तब ये खबर बहुत तेजी से फैली कि गडकरी ने मोदी को एक हार उपहार में दिया है। अब ये माना जाता है कि अगर कहीं मोदी के गले में जीत का माला पड़ी तो गडकरी एक बड़ी भूमिका में दिखाई देंगे।

स्मृति इरानी

मोदी की अगुवाई में भाजपा की जीत के लिए पार्टी के तमाम बड़े छोटे नेता जी-जान से लगे हैं, लेकिन छोटे परदे की चमक दमक से निकलकर राजनीति के खुरदुरे मैदान में उतरीं स्मृति इरानी ही वो नेता हैं, जिन्होंने नमो टी का आइडिया दिया। गुजरात के दंगों को लेकर कभी मोदी से इस्तीफा मांगने वाली तुलसी यानि स्मृति ने इस चुनाव में मोदी की छवि चमकाने में पूरी ताकत झोंक दी। उन्हें पार्टी नेतृत्व ने राहुल गांधी के सामने अमेठी में चुनाव लड़ने को कहा तो उन्होंने बिना किसी हिचक के उसे स्वीकार किया। मोदी की कृपा से ही स्मृति ईरानी गुजरात से राज्यसभा में पहुंची थी।

पीयूष गोयल

भाजपा के खजांची है पीयूष गोयल। पीयूष के पिता भी भाजपा में खजांची थे। स्मृति इरानी ने आइडिया दिया तो गोयल ने नमो टी का आयोजन सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाया। गोयल ही सोशल मीडिया का भी कामकाज देखते हैं।

देश में मोदी की हवा चली, चुनावी कद बढ़ा, मोदी नाम पार्टी का पोलिटिकल ब्रांड बना। इसके पीछे मनी मैनेजमेंट साफ दिखता है। हवाई यात्रा से लेकर भव्य रैलियों और पूरे प्रचार अभियान तक मोदी के पीछे इस मनी गेम में माइंड है पीयूष गोयल का। 49 साल राज्यसभा सदस्य पीयूष गोयल देश के जाने माने और रैंक होल्डर चार्टर्ड एकाउंटेंट भी रहे हैं।

रामलाल

रामलाल भाजपा में संगठन महामंत्री है। संघ के प्रतिनिधि रामलाल मोदी के काफी नजदीक माने जाते हैं। उन्होंने इस महासमर में मोदी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी।

अनंत कुमार

भाजपा में वरिष्ठ नेता अनंत कुमार कभी लालकृष्ण के कट्टर समर्थकों में शामिल थे। इसके बावजूद वे मोदी के नजदीक आए और इस महासमर में मोदी के लिए खुल कर चुनाव प्रचार किया। वाराणसी में हुए मोदी के रोड में वे भी शामिल थे।

गोपीनाथ मुंडे

महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री गोपीनाथ मुंडे जमीन से जुड़े नेता हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा के लिए भीड़ जुटाने वाले वे एकमात्र राजनेता हैं और महाराष्ट्र में पार्टी को खड़ा करने में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है। गोपीनाथ मुंडे पिछड़े वर्गो में अच्छा प्रभाव रखने वाले महत्पूर्ण ओबीसी नेता हैं। उन्होंने इस चुनाव में मोदी के पक्ष में लहर बनाने में महत्ती भूमिका निभाई है।

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