सारे मुद्दे ध्वस्त, चुनाव की धुरी रहे मोदी
इतिहास में सबसे ज्यादा चरणों में हो रहे लोकसभा चुनाव के लिए शनिवार को प्रचार खत्म हो गया। रैलियां, रोड शो, चुनावी नारे सब थम गए और हर गली नुक्कड़ पर नतीजों का आकलन तेज हो गया है। चर्चा का एक ही मुद्दा है- चुनाव प्रचार का नायक कौन है? हर किसी का जवाब एक ही है- नरेंद्र मोदी। यह कहने में किसी को हिचक नहीं है कि
[प्रशांत मिश्र]। इतिहास में सबसे ज्यादा चरणों में हो रहे लोकसभा चुनाव के लिए शनिवार को प्रचार खत्म हो गया। रैलियां, रोड शो, चुनावी नारे सब थम गए और हर गली नुक्कड़ पर नतीजों का आकलन तेज हो गया है। चर्चा का एक ही मुद्दा है- चुनाव प्रचार का नायक कौन है? हर किसी का जवाब एक ही है- नरेंद्र मोदी। यह कहने में किसी को हिचक नहीं है कि मोदी ने अपने कंधों पर ही भाजपा का पूरा अभियान चलाया। बल्कि कुछ मायनों में पूरे चुनाव की धुरी ही मोदी थे। वरना कश्मीर से कन्याकुमारी तक क्षेत्रीय दलों के लिए भी वही मुद्दा न बने होते।
मोदी के विरोधियों ने उनके दो स्थान से चुनाव लड़ने पर सवाल भले उठाया हो, लेकिन मोदी की क्षमता ने उन वोटरों को भी आकर्षित किया जो किसी और दल के कार्यकर्ता हैं। वाराणसी के गोदौलिया चौक पर दूसरी टोपी पहने एक झुंड के बीच यही चर्चा चल रही थी। शब्द थे- दो जगह की बात हो रही है लेकिन सच्चाई तो यह है कि मोदी ही हर सीट पर लड़ रहे हैं। वाराणसी के पास लालगंज का उदाहरण देते हुए कहा- वहां भी तो भाजपा मोदी के ही नाम से लड़ रही है। मिर्जापुर में अपना दल के लिए भी मोदी ही चेहरा बने हुए हैं। बीच में टोकते हुए एक दूसरे व्यक्ति कहते हैं- भईया इसमें किसको शक है कि मोदी मेहनत बहुत करते हैं, क्षमता तो बहुत है। लेकिन राजनीति है, हमें तो अपने की बात करनी चाहिए। संकेत साफ है कि मोदी पूरे चुनाव पर हावी रहे, अपने विपक्षियों के दिलो दिमाग पर भी और समर्थकों के उत्साह पर भी। वरना कोई कारण नहीं था कि पारंपरिक रूप से भाजपा के लिए कमजोर रहे पश्चिम बंगाल में भी ममता बनर्जी कांग्रेस और वाम दलों को बख्शकर सबसे ज्यादा तीखा हमला भाजपा और मोदी पर करतीं।
भाजपा लगभग साढ़े चार सौ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पिछले तीन चार महीनों में भाजपा ने 27-28 दलों का एक बड़ा कुनबा भी तैयार कर लिया तो उनके लिए भी मोदी ही स्टार प्रचारक बने रहे। दो-तीन महीने पहले शुरू हुए औपचारिक चुनाव प्रचार की भी बात हो तो मोदी ने लगभग ढाई सौ रैलियां की। 1350 से ज्यादा होलोग्राम 3डी के जरिये संबोधन किया तो चाय पर चर्चा के संवाद में भी दो करोड़ से ज्यादा लोगों से सीधा संबंध साधा। भाजपा के आंकड़ों को माना जाए तो इस क्रम में उन्होंने लगभग तीन लाख किलोमीटर नाप दिया। इस बीच उनका शायद ही कोई दिन पूरी तरह गुजरात में गुजरा हो और शायद ही कोई रात गांधीनगर से बाहर। पूरे चुनाव प्रचार में भी उन्होंने राज्य के शासन को नजरअंदाज नहीं किया। पर सब चीजों से आगे बढ़कर उन्होंने नेतृत्व की क्षमता और योग्यता दिखाई वाराणसी और वडोदरा में। वह इन्ही दोनों सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। वाराणसी का मतदान होना बाकी है। लेकिन उन्होंने इन दोनों स्थानों पर सबसे कम समय दिया। वाराणसी में सिर्फ एक चुनावी सभा की। बाकी का पूरा समय दूसरे क्षेत्रों पर केंद्रित कर दिया। पिछले पांच छह महीनों में उन्होंने यह भी साबित कर दिया कि कई स्थानों पर बिखरा संगठन भी उनकी छाया में एकजुट था। चुनावी आंकड़ों की बात छोड़ भी दें तो इस लोकसभा चुनाव में यह स्पष्ट दिखा कि मोदी ने सभी सीमाएं तोड़ दी, चाहे वह क्षेत्रीय मुद्दों की राजनीति हो या जातिवाद की राजनीति की सीमा। चुनाव या तो मोदी या फिर एंटी मोदी के ही नाम से लड़ा गया।