पीओके की पीर: गुलाम कश्मीर के लोगों की इच्छा का सम्मान करे दुनिया
जम्मू -कश्मीर के पुनर्गठन और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के संबंध में हाल के निर्णय से कश्मीर के भविष्य पर कई तरह के विचार आए हैं।
नई दिल्ली [प्रो.धीरज शर्मा]। जम्मू -कश्मीर के पुनर्गठन और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के संबंध में हाल के निर्णय से कश्मीर के भविष्य पर कई तरह के विचार आए हैं। अधिकांश विचार कश्मीर के मुद्दे पर केंद्रित हैं, वहीं कुछ कश्मीरियों पर केंद्रित हैं। 1948 में कश्मीर क्षेत्र पर पाकिस्तान द्वारा युद्ध छेड़ने के साथ कश्मीर को लेकर संघर्ष शुरू हुआ। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में भारतीय क्षेत्र पर पाकिस्तान द्वारा किए गए आक्रमण का मामला उठाया।
हालांकि हमारी विदेश नीति की विफलता और पश्चिम के दंभी रुख के चलते पाकिस्तान की इस आक्रामकता को विवादित विलय का रूप दे दिया गया। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय सरकारों ने संविधान संशोधन और अलग कानून बनाकर विवाद की धारणा को और मजबूत किया। इसके अलावा, प्रचार किया गया कि कश्मीर एकमात्र रियासत थी, जिसे सशस्त्र बलों के इस्तेमाल से भारत में जोड़ा गया और अन्य सभी रियासतें 15 अगस्त 1947 से पहले शांति और इच्छा से भारत या पाकिस्तान में शामिल हो गईं, जिसके परिणामस्वरूप यह विचार आया कि कश्मीर की स्थिति अनोखी है।
रियासतें होती गई शामिल
नीचे 15 अगस्त 1947 के बाद भारत और पाकिस्तान के साथ विलय होने वाली सभी रियासतों की सूची दी गई है। ज्यादातर मामलों में पाकिस्तान और भारत ने रियासत के सशस्त्र बलों या सरकारी टेक-ओवर का इस्तेमाल किया। नतीजतन, यह देखना चहिए कि केवल कश्मीर को लेकर विवाद क्यों है। हालांकि ये अभी भी ऐसे मुद्दे हैं जो भूमि संसाधन (कश्मीर) से संबंधित हैं, न कि मानव संसाधन (कश्मीर) से। कुछ परिस्थितियों में प्रमुख विश्व शक्तियों ने स्थानीय सरकारों के विरोध के बावजूद लोगों की इच्छा आधार पर नए भूमि क्षेत्रों को एकीकृत किया है। उदाहरण के लिए, हवाई द्वीप पहले सैन्य कार्रवाई से और फिर एक अधिनियम पारित करके संयुक्त राज्य अमेरिका का क्षेत्र बना, न्यू फॉकलैंड 1982 में सैन्य कार्रवाई की मदद से ब्रिटेन का एक विदेशी क्षेत्र बना और हाल ही में क्रीमिया 2014 में सैन्य कार्रवाई की मदद से रूस का क्षेत्र बना।
ये क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और रूस के साथ पूरी तरह से एकीकृत हो गए हैं। लोगों ने निर्णय को स्वीकार किया है और वे समृद्ध हैं। उपरोक्त क्षेत्रों में हिंसा को हवा देने के लिए कोई बाहरी सहायता प्रदान नहीं की गई थी। लेकिन कश्मीर के मामले में अशांति और हिंसा पाकिस्तान और उसकी सेना के निरंतर उकसावे और समर्थन के कारण रही है। हालांकि, सभी पाकिस्तानी प्रयासों के बावजूद कश्मीरी भारत में काफी खुश हैं क्योंकि उन्हें एहसास है कि उनका भविष्य भारत सरकार के हाथों में सुरक्षित है। अगर भारत या भारतीय सेना ने कश्मीरियों पर अत्याचार किए होते तो जैसे पिछली सदी के सातवें दशक में पाकिस्तानी सेना के अत्याचार से पीड़ित बांग्लादेशियों ने और पिछले दो दशकों में तालिबान से पीड़ित अफगानियों ने भारत की तरफ रुख किया है वैसे ही कश्मीरी भी दूसरे देशों में बसना शुरू कर देते।
जम्मू कश्मीर का भारत से मजबूत रिश्ता
इससे यह स्पष्ट है कि पूर्ण रूप से भारतीय नियंत्रण में न होने के बावजूद जम्मू-कश्मीर का भारत से रिश्ता बहुत मजबूत है। कश्मीर रियासत का भारत के साथ विलय बिना शर्त था। हालांकि भारत सरकार इस क्षेत्र में शांति और समृद्धि बनाए रखने की आशा के साथ नये प्रावधान जोड़ती रही। विशेष रूप से 1989 के बाद से यह स्पष्ट है कि भारत के सद्भावना उपायों ने कश्मीर में भय और हिंसा पैदा करने के लिए पाकिस्तान प्रायोजित तत्वों को प्रोत्साहित करने का काम किया है। इसलिए, भारत सरकार के हालिया फैसले ने दुनिया के बाकी हिस्सों
को यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत के लिए पूरे जम्मू और कश्मीर के विलय पर कोई विवाद नहीं है। विवाद तो अब पीओके और चीन अधिकृत अक्साई चिन को लेकर है, जिस पर भारत लंबे समय से अपना दावा करता रह है। इस दावे को पूरा करने के लिए, अगले चरण में जम्मूकश्मीर विधानसभा में पीओके और अक्साई चिन के प्रतिनिधि हो सकते हैं।
रियासत का नाम विलय का वर्ष विलय की प्रक्रिया
कालत 6 अक्टूबर 1958 सेना की कार्रवाई
माकरन 17 मार्च 1948 समझौते के आधार पर
खारन 21 मार्च 1948 समझौते के आधार पर
लास बेला 7 मार्च 1948 समझौते के आधार पर
दिर 28 जुलाई 1969 सेना की कार्रवाई कार्रवाई
फुलरा सितंबर 1950 पाकिस्तान सरकार टेक ओवर
अंब 31 दिसंबर 1947 समझौते के आधार पर
नगर 25 सितंबर 1974 पाकिस्तान सरकार टेक ओवर
हुंजा 25 सितंबर 1974 पाकिस्तान सरकार टेक ओवर
स्वात 28 जुलाई 1969 सेना की कार्रवाई
चित्राल 28 जुलाई 1969 सेना की कार्रवाई
खैरपुर 1955 सेना की कार्रवाई
बहावलपुर 14 अक्टूबर 1955 समझौते के आधार पर
जूनागढ़ 15 सितंबर 1947 सेना की कार्रवाई
हैदराबाद 24 नवंबर 1949 सेना की कार्रवाई
जम्मू-कश्मीर 26 अक्टूबर 1947 समझौते के आधार पर
गोवा 19 दिसंबर 1961 सेना की कार्रवाई
पुडुचेरी 16 अगस्त 1962 समझौते के आधार पर
[लेखक- निदेशक-आइआइएम, रोहतक]