पाकिस्‍तान की सत्‍ता में शीर्ष पर रहने और कोर्ट से मौत की सजा पाने वाले दूसरे व्‍यक्ति हैं 'मुशर्रफ'

पाकिस्‍तान के पूर्व राष्‍ट्रपति परवेज मुशर्रफ को कोर्ट ने देशद्रोह के मामले में फांसी की सजा सुनाई है। वह देश के दूसरे शीर्षस्‍थ व्‍यक्ति हैं जिन्‍हें कोर्ट ने ये सजा सुनाई है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Tue, 17 Dec 2019 04:23 PM (IST) Updated:Wed, 18 Dec 2019 09:02 AM (IST)
पाकिस्‍तान की सत्‍ता में शीर्ष पर रहने और कोर्ट से मौत की सजा पाने वाले दूसरे व्‍यक्ति हैं 'मुशर्रफ'
पाकिस्‍तान की सत्‍ता में शीर्ष पर रहने और कोर्ट से मौत की सजा पाने वाले दूसरे व्‍यक्ति हैं 'मुशर्रफ'

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। पाकिस्‍तान के पूर्व राष्‍ट्रपति और पूर्व सेनाध्‍यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ को देशद्रोह के आरोप में फांसी की सजा सुनाई है। मुशर्रफ के खिलाफ फैसला पेशावर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस वकार अहमद सेठ की अध्यक्षता में बने तीन सदस्यीय पीठ ने 3-2 से सुनाया है। मुशर्रफ को ये सजा नवंबर 2007 में देश में लगाई गई इमरजेंसी के मामले में सुनाई गई है। इसके बाद उन्‍होंने देश के संविधान को भी निलंबित कर दिया था। इस मामले में दिसंबर 2013 में देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था और 31 मार्च, 2014 को कोर्ट ने उन्‍हें दोषी ठहराया गया था।  

फांसी की सजा पाने वाले पाकिस्‍तान के दूसरे राष्‍ट्रपति 

कोर्ट से फांसी की सजा पाने वाले वह पाकिस्‍तान के दूसरे शीर्षस्‍थ व्‍यक्ति हैं। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री जुल्‍फीकार अली भुट्टो को सुप्रीम कोर्ट ने 6 फरवरी 1979 को फांसी की सजा सुनाई थी। 24 मार्च को भुट्टो की तरफ से फैसले के खिलाफ दोबारा अपील की गई जिसको खारिज करने के बाद उन्‍हें 4 अप्रैल 1979 को रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में उन्‍हें फांसी दे दी गई थी। पाकिस्‍तान में 5 जुलाई 1977 को तत्‍कालीन सेनाध्‍यक्ष जिया उल हक ने सरकार का तख्‍ता पलट कर सत्‍ता अपने हाथों में ले ली थी। इसके बाद जनवरी 1978 में लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मौलवी मुश्‍ताक हुसैन ने खचाखच भरी अदालत में भुट्टो फांसी की सजा सुनाई थी। आपको बता दें कि मामले की सुनवाई कर रहे हुसैन समेत पांच जजों की नियुक्ति जिया उल हक ने ही की थी और हुसैन भुट्टो की सरकार में विदेश सचिव रह चुके थे। इसको इत्‍तफाक कहा जा सकता है कि मुशर्रफ को जिन जजों ने फांसी की सजा सुनाई है वो उन्‍हीं 100 जजों में शामिल थे जिन्‍हें आपातकाल के दौरान बर्खास्‍त कर दिया गया था। 

दुबई में हैं मुशर्रफ 

मई 2016 में कोर्ट ने उन्‍हें भगोड़ा घोषित किया था। मुशर्रफ की बात करें तो वह 2016 से ही दुबई में हैं। वहां पर उनका इलाज भी चल रहा है। कुछ समय पहले उनकी एक तस्‍वीर वायरल हुई थी जिसमें वह अस्‍पताल में बैड पर काफी कमजोर दिखाई दे रहे थे। एक इंटरव्‍यू के दौरान उन्‍होंने कहा था कि वह अदालत का सम्‍मान करते हुए मामलों का सामना करने वापस जरूर आएंगे। लेकिन बाद में उन्‍होंने वापस लौटने से साफ इनकार कर दिया था। मार्च 2018 में पाकिस्‍तान कोर्ट के आदेश के बाद उनका पासपोर्ट और पहचान पत्र तक रद कर दिया गया था। 2018 में ही पाकिस्‍तान ने इंटरपोल से मुशर्रफ के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की अपील की थी, लेकिन उन्‍होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। 

दिल्‍ली में हुआ था जन्‍म  

11 अगस्‍त 1943 में भारत की राजधानी दिल्‍ली के दरियागंज में परवेज मुशर्रफ का जन्‍म हुआ था। विभाजन के बाद इनका परिवार कराची में जाकर बस गया था। मुशर्रफ भारत पर थोपे गए कारगिल युद्ध के प्रमुख स्क्रिप्‍ट राइटर हैं। उनकी ही बिछी बिसात पर कारगिल का युद्ध लड़ा गया था। जिस वक्‍त ये युद्ध हुआ था उस वक्‍त वो पाकिस्‍तान की सेना के जनरल थे। अक्टूबर 1999 में मुशर्रफ ने नवाज शरीफ सरकार का तख्‍ता पलट कर सत्‍ता अपने हाथों में ले ली थी। इसको भी इत्‍तफाक ही कहा जाएगा कि नवाज ने ही उन्‍हें प्रमोशन देकर जनरल बनाया था और बाद में उन्‍होंने ही नवाज का तख्‍ता पलट कर उन्‍हें देश से बाहर का रास्‍ता दिखा दिया था। इस दौरान नवाज की जान मुश्किल में अटकी थी। पूरी दुनिया को आशंका थी कि कहीं नवाज का हाल भी भुट्टो की ही तरह न हो जाए। इन अटकलों के बीच अमेरिका की दखल के बाद नवाज की जान बच सकी थी। सरकार का तख्‍ता पलट कर उन्‍होंने आपातकाल की घोषणा की और फिर संविधान को निलंबित कर जजों को बर्खास्‍त तक कर दिया था। 

 

चुनाव करवाने का आदेश

मई 2000 में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने देश में नए सिरे से चुनाव करने का आदेश दिया था। जून 2001 में मुशर्रफ तत्कालीन राष्ट्रपति रफी तरार को हटा कर खुद राष्‍‍‍ट्रपति बन बैठे। इसके बाद अप्रैल 2002 में उन्होंने एक जनमत संग्रह कराया जिसका कई पार्टियों ने बहिष्‍कार तक किया था। यह जनमत संग्रह उन्‍होंने खुद को राष्‍ट्रपति पद पर काबिज रहने के मकसद से करवाया था। अक्टूबर 2002 के चुनाव में मुशर्रफ का समर्थन करने वाली मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमाल पार्टी को जबरदस्‍त बहुमत हासिल हुआ। इसके बाद उन्‍होंने संविधान में कई बदलाव किए। यह बदलाव उनके द्वारा किए गए कामों को संविधान के दायरे में दिखाने के लिए किए गए थे।

बेनजीर और बुग्‍ती की हत्‍या का आरोप 

मुशर्रफ के कार्यकाल में पाकिस्‍तान में आतंकी हमलों का लंबा दौर चला। अमेरिका के संडे न्‍यूजपेपर मैगजीन 'परेड' ने मुशर्रफ को 2005 के तानाशाहों की सूची में शामिल किया था। 24 नवंबर 2007 को मुशर्रफ ने सेना प्रमुख के पद से इस्‍तीफा देकर असैन्य राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। उनके ही कार्यकाल में बलूचिस्‍तान के बड़े नेता नवाब अकबर खान बुगती हत्‍या भी की गई थी। बुगती की 2006 में बलूचिस्तान के कोहलू जिले में एक सैन्य कार्रवाई में उनके कुछ सहयोगियों के साथ हत्‍या कर दी गई थी। इस कार्रवाई का आदेश मुशर्रफ ने ही दिया था। दिसंबर 2007 में एक चुनावी रैली के दौरान जब बेनजीर भुट्टो की गोली मारकर हत्‍‍‍‍या कर दी गई थी तब भी वह राष्‍ट्रपति थे। इस दौरान उनपर भुट्टो को जरूरी सुरक्षा मुहैया न कराने के आरोप लगे थे। कार्यकाल खत्‍म होने के साथ ही मुशर्रफ देश छोड़कर विदेश चले गए थे। इसके बाद जब वह वापस आए तो उन्‍हें पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो अकबर खान बुगती की हत्या समेत लाल मस्जिद पर हुई कार्रवाई के आरोप गिरफ्तार कर लिया गया।  

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