समुद्र में दफन तीन लाख टन गोला-बारूद बन सकता है बड़ा खतरा, समुद्री जीवन भी प्रभावित

वर्तमान में करीब तीन लाख टन गोला-बारूद समुद्र की तलहटी में मौजूद है जो समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचाने के अलावा भविष्‍य में इंसान के लिए भी खतरा बन सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sun, 10 Feb 2019 05:10 PM (IST) Updated:Mon, 11 Feb 2019 08:40 AM (IST)
समुद्र में दफन तीन लाख टन गोला-बारूद बन सकता है बड़ा खतरा, समुद्री जीवन भी प्रभावित
समुद्र में दफन तीन लाख टन गोला-बारूद बन सकता है बड़ा खतरा, समुद्री जीवन भी प्रभावित

नई दिल्‍ली जागरण स्‍पेशल। दूसरे विश्व युद्ध को समाप्‍त हुए सात दशक से भी ज्‍यादा समय गुजर चुका है। लेकिन इतना समय गुजरने के बाद भी इससे जुड़ा खतरा आज तक खत्‍म नहीं हुआ है। आपको यह सुनकर ताज्‍जुब होगा, लेकिन यह हकीकत है। दरअसल, इस युद्ध के दौरान हजारों की तादाद में बम गिराए गए। यह बम जमीन से लेकर समुद्र तक में गिराए गए थे। कुछ बम आज भी समुद्र की तलहटी में मौजूद हैं जो आज भी पूरी तरह से निष्क्रिय नहीं हुए हैं। इतना ही नहीं विश्‍व युद्ध की समाप्ति के बाद जब दुनिया के बड़े देशों ने अपने खतरनाक हथियारों और बमों को नष्‍ट करने की ठानी तब भी सागर में ही इनको दफन किया गया। 

बाल्टिक सागर में दफन लाखों टन गोला-बारूद 
बाल्टिक सागर में भी बड़ी मात्रा में गोला बारूद दफन किया गया था। कुछ ऐसा भी था जिन्‍हें किनारे से अधिक दूर न ले जाकर वहीं समीप कम गहराई में ही पानी में डाल दिया गया। उस वक्‍त इसको लेकर इससे होने वाले खतरे को दूर-दूर तक भी किसी ने नहीं सोचा। आपको जानकर ताज्‍जुब होगा कि केवल जर्मनी से लगते समुद्र में ही लाखों टन गोला-बारूद समुद्र में खत्‍म करने के मकसद से डाला गया था। जानकारों की मानें तो करीब तीन लाख टन गोला-बारूद समुद्र में आज भी मौजूद है। इसमें रासायनिक युद्ध सामग्री भी शामिल है। कोलबैर्गर हाइडे डंपिंग साइट एक ऐसी ही साइट है जहां से कुछ दूरी पर करीब 35,000 टन समुद्री माइंस और टॉरपीडो को ज्‍यादा से ज्‍यादा 12 मीटर की गहराई पर डाल दिया गया था।  

हजारों टन नष्‍ट कर चुका इस्‍तोनिया
बाल्टिक सागर से लगता इस्‍तोनिया भी समुद्र में दफन कई हजार टन गोला बारूद को नष्‍ट कर चुका है। इतना ही नहीं इसको लेकर कई हादसे भी अब तक हो चुके हैं। 2005 में तीन मछुआरों की मौत की वजह समुद्र में मौजूद यही गोला-बारूद था। वर्ष 2000 में कोलोबरजेग स्थित पोलिश रेसॉर्ट के करीब दूसरे विश्‍व युद्ध का बम मिलने के बाद यहां से हजारों लोगों को सुरक्षित स्‍थान पर भेजा गया था। इतना ही नहीं बाल्टिक सागर में मछुआरों को ज्‍यादा अंदर या गहराई में जाने से प्रतिबंधित तक किया गया है। जानकार बढ़ते तापमान के पीछे इन्‍हें भी एक वजह मानते हैं। अब यही गोला-बारूद समुद्री जीवन के लिए धातक बना हुआ है। इसको लेकर ताजा रिपोर्ट भी सामने आ चुकी है। 

सामने आई रिसर्च रिपोर्ट
अंतरराष्ट्रीय रिसर्च प्रोजेक्ट 'डिसीजन एड फॉर मरीन म्युनिशंस' के वैज्ञानिकों ने ऐसे मुद्दों पर फैसला लेने में मदद करने के लिए कुछ औजार विकसित किए हैं और इन्हें दो प्रमुख जर्मन संस्थानों - थ्युनेन इंस्टीट्यूट और अल्फ्रेड वेग्नर इंस्टीट्यूट फॉर पोलर एंड मरीन रिसर्च के सामने पेश किया। इसका लक्ष्य प्रशासन और राजनेताओं को ऐसे व्यावहारिक और आसानी से लागू किए जाने लायक सुझाव देना है जिससे पर्यावरण पर नजर रखी जा सके और गोला बारूद को ठिकाने भी लगाया जा सके।

समुद्री जीवन पर असर
बड़ी मुश्किलों के साथ शोधकर्ताओं ने ऐसी साइटों से सैंपल इकट्ठे किए और गोला बारूदों से रिस कर निकलने वाले रसायनों का विश्लेषण किया। ऐसे रसायनों का अंश उन्हें इस इलाके की मछलियों के भीतर मिला। बिल्कुल ऐसा ही असर टीएनटी जैसे विस्फोटकों और आर्सेनिक युक्त रासायनिक हथियारों का भी दिखा। यह साफ है कि जहरीले तत्व लगातार मछली और सीपों जैसे समुद्री जीवों के भीतर पहुंच रहे हैं।

बढ़ता खतरा है चेतावनी
वैज्ञानिकों के मुताबिक टीएनटी समुद्री जीव सीप के लिए काफी जहरीला होता है और वह मछलियों की आनुवंशिक संरचना तक पर असर डाल सकता है, जिससे ट्यूमर होने का खतरा रहता है। कोलबैर्गर हाइडे डंपिंग साइट की फ्लैटफिश नाम की एक संवेदनशील मछली प्रजाति में दुनिया की किसी और जगह की तुलना में कहीं ज्यादा संख्या में लीवर ट्यूमर पाए गए। यानि टीएनटी सीधे सीधे बढ़ते ट्यूमरों के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। समुद्र और समुद्री जीवों की सेहत को बढ़ता खतरा साफ साफ दिखने लगा है।

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