अमेरिका-तालिबान शांति वार्ता की सफलता पर संशय, दोहा में 11 दिनों की वार्ता रही बेनतीजा
अमेरिका की ओर से जालमे खलीलजाद की अगुआई में चल रही बातचीत में तालिबान गुट के उप प्रमुख मुल्ला बरदार भी शामिल हैं।
दी न्यूयॉर्क टाइम्स, दोहा। अमेरिका और तालिबान के बीच जारी शांति वार्ता किसी सकारात्मक नतीजे पर पहुंचती नहीं दिख रही है। अफगानिस्तान में पिछले कुछ महीनों से शांति वार्ता चल रही है। कतर की राजधानी दोहा में 11 दिनों से जारी वर्तमान दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही। आगे बढ़ना तो दूर तालिबान ने अपने अंजाम दिए वारदातों को आतंकवादी कारनामा मानने से इन्कार किया है। वे अपने को आतंकवादी नहीं मान रहे हैं। अमेरिका की ओर से जालमे खलीलजाद की अगुआई में चल रही बातचीत में तालिबान गुट के उप प्रमुख मुल्ला बरदार भी शामिल हैं। कई दौर की वार्ता के दौरान उन्होंने अपनी धरती को अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के खिलाफ आतंकी हमले नहीं करने की बात कही है।
जानकार इसे तालिबान द्वारा अमेरिका को संतुष्ट करने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं। 2001 से अफगानिस्तान में फंसे अपने सैनिकों को अमेरिकी प्रशासन वापस लाने की इच्छा जता चुका है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी यही चाहते हैं। अमेरिका ने इसके लिए तीन साल का वक्त तय किया है और यह एक से ज्यादा चरणों में पूरी करने की बात भी बात भी बताई है। सैनिकों की वापसी के लेकर अमेरिका की आतुरता को देखते हुए तालिबान शांति वार्ता लटकाने की कोशिश में है।
इसलिए तालिबान बार-बार शांति वार्ता छोड़ देने की धमकी भी देता है। वे चाहते हैं कि अमेरिकी सैनिक जल्द-से-जल्द अफगानिस्तान छोड़ दें और उनका रास्ता साफ हो जाए। इसके अलावा तालिबान ने वार्ता में अफगानिस्तान सरकार को शामिल करने का कड़ा विरोध किया है। इसके पीछे हजारों अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद वहां बागडोर अपने हाथ में लेने की मंशा जाहिर होती है। वार्ता पर संशय को देखते हुए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा कि अफगानिस्तान को ऐसा समझौता नहीं चाहिए जो आगे चलकर फिर से देश में खून बहाए।