सर्वोच्‍च नेता खामेनेई के आदेश के बगैर ईरान में पत्‍ता भी नहीं हिलता, जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बातें

ईरान के सर्वोच्‍च नेता अली खामेनेई की चर्चा आज पूरी दुनिया में है। ईरान और अमेरिका के बीच उपजे तनाव से आज पूरा विश्‍व डरा हुआ है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 09 Jan 2020 05:10 PM (IST) Updated:Fri, 10 Jan 2020 11:56 AM (IST)
सर्वोच्‍च नेता खामेनेई के आदेश के बगैर ईरान में पत्‍ता भी नहीं हिलता, जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बातें
सर्वोच्‍च नेता खामेनेई के आदेश के बगैर ईरान में पत्‍ता भी नहीं हिलता, जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बातें

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। अमेरिका से जारी तनातनी के बाद जो दो नाम पूरी दुनिया में छाए हुए हैं उनमें पहला नाम अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप का है तो दूसरा नाम ईरान के सर्वोच्‍च नेता सैयद अली हुसैनी खामेनेई का है। यह दोनों ही एक दूसरे के सबसे बड़े दुश्‍मन हैं। इतना ही नहीं मौजूदा तनाव और कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत के बाद खामेनेई ने ही ट्रंप के सिर पर 80 मिलियन डॉलर का ईनाम घोषित किया था। उनके ही आदेश के बाद कासिम की मौत का बदला लेने के लिए ईरान ने बगदाद समेत दूसरे अमेरिकी ठिकानों पर 21 रॉकेट दागे थे।  

1989 से हैं सर्वोच्‍च नेता 

सैयद अली हुसैनी खामेनेई ईरान के दूसरे सर्वोच्‍च नेता है। इसके अलावा वह पूरे मध्‍य पूर्व में किसी देश पर शासन करने वाले दूसरे नेता भी हैं। 1989 में अयातुल्‍लाह खामेनेई के निधन के बाद से ही वह इस पद पर काबिज हैं। इससे पहले वह ईरान के राष्‍ट्रपति भी रह चुके हैं। अयातुल्‍लाह की ही तरह इस्‍लामिक क्रांति के दौरान अली खामेनेई को शाह पहलवी ने देश निकाला दिया गया था। इससे पहले उन्‍हें करीब छह बार गिरफ्तार किया गया। जून 1981 में उन्‍हें जान से मारने की भी कोशिश की गई थी।

रिवोल्‍यूशनरी गार्ड से मिलकर बनाई थी रणनीति 

अली खामेनेई ने 1980 में ईरान-इराक युद्ध के दौरान रिवोल्‍यूशनरी गार्ड के करीब रहकर मजबूत रणनीति बनाई थी। वह ईरान के तीसरे राष्‍ट्रपति थे जो 1981 से लेकर 1989 तक इस पद पर रहे थे। अली अयातुल्‍लाह के काफी करीब थे। इसके अलावा वह उनके भरोसेमंद भी थे। यही वजह थी कि अयातुल्‍लाह ने उन्‍हें राष्‍ट्रपति बनाया था। अयातुल्‍लाह के करीब होने की वजह से ही उन्‍हें देश के सर्वोच्‍च पद पर बिठाया गया। हालांकि उनके सर्वोच्‍च नेता बनने पर कुछ नेताओं को एतराज भी था। इनमें हुसैन अली मुंतजारी, हशेमी रफसनजानी का नाम शामिल है। उनका कहना था कि क्‍योंकि वो खामेनेई थे, इसी वजह से उन्‍हें इस पद पर बिठाया गया, जबकि सदन ने दूसरे नेता के चयन के लिए विशेषज्ञों ने विचार विमर्श किया था। उन्‍हें 4 जून 1989 को 49 वर्ष की आयु में इस पद के लिए चुना गया था।

सर्वोच्‍च कमांडर भी हैं अली

सुप्रीम लीडर होने के नाते खामेनेई देश की सेनाओं के सर्वोच्‍च कमांडर भी हैं। वह देश की सबसे बड़ी राजनीतिक शख्सियत हैं। देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला हो या फिर बिजनेस से जुड़ा, विदेश मामलों से जुड़ा कोई मामला हो या आंतरिक स्‍तर पर कोई आदेश, सभी मामलों में उनका दिया आदेश ही अंतिम होता है। सरकार के किसी भी फैसले को उनकी सहमति के बिना अधूरा माना जाता है। 

ज‍ब किया विरोधों का सामना 

अली खामेनेई के भी दौर में कुछ पल ऐसे आए जब उन्‍हें देश में ही जबरदस्‍त विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा था। 1994 में उन्‍हें काजविन विरोध, 1999 में ईरानी छात्रों का विरोध, 2009 में देश में राष्‍ट्रपति चुनाव के दौरान विरोध के अलावा बीते वर्ष ईरान में हुई हड़ताल और विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा था। इस दौरान पत्रकारों समेत कई ब्‍लॉगर्स पर देश के सर्वोच्‍च नेता का अनादर और ईशनिंदा करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था। इस तरह के मामलों में दोष साबित होने पर उम्र कैद का प्रावधान है। इतना ही नहीं वर्ष 2003 में अली खामेनेई ने देश के परमाणु कार्यक्रम को लेकर एक फतवा तक जारी किया था। यह फतवा बड़े पैमाने पर विनाश के सभी प्रकार के हथियारों का उत्पादन, भंडारण और इनके उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए जारी किया गया था। 

जब उड़ी मौत की अफवाह

अली खामेनेई का जन्‍म 1902 में ईरान में मशाद के नजफ इलाके में हुआ था। उनके पिता सैय्यद जावेद खामेनेई आलिम थे। वह अपने आठ भाई-बहनों में दूसरे नंबर के थे। उनके पिता जहां अजरबेजानी मूल के थे वहीं उनकी मां याज्‍द थीं। 1958 में वह अयातुल्‍लाह खामेनेई की तकरीरों से काफी प्रभावित हुए थे। इसके बाद ही अली खामेनेई के साथ देश को नई दिशा देने वाली इस्‍लामिक क्रांति में कूद पड़े थे। वर्ष 2007 में उनकी मौत की भी अफवाह उड़ी थी, जिसके बाद उन्‍होंने एक बयान जारी कर अपने सही सलामत होने की बात कही थी।  

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