साल 2070 तक विलुप्‍त होने की कगार पर होंगे एक तिहाई पौधे और पशु, वैज्ञानिकों ने किया आगाह

वैज्ञानिकों ने अपने अध्‍ययन में पाया है कि क्‍लाइमेट चेंज की वजह से 2070 तक पशु और पौधों की एक तिहाई प्रजातियां लुप्‍त होनें की कगार पर पहुंच जाएंगी।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Thu, 13 Feb 2020 07:24 PM (IST) Updated:Thu, 13 Feb 2020 07:24 PM (IST)
साल 2070 तक विलुप्‍त होने की कगार पर होंगे एक तिहाई पौधे और पशु, वैज्ञानिकों ने किया आगाह
साल 2070 तक विलुप्‍त होने की कगार पर होंगे एक तिहाई पौधे और पशु, वैज्ञानिकों ने किया आगाह

वाशिंगटन, पीटीआइ। जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनियाभर में 2070 तक पशु और पौधों की एक तिहाई प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच जाएंगी। एक अध्ययन में इस बात का दावा किया गया है। अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ एरीजोना के शोधकर्ताओं ने आने वाले 50 सालों में जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों का आकलन किया है। शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन से वर्तमान में पड़ रहे प्रभाव, भविष्य को लेकर किए गए विभिन्न अनुमानों के आधार पर यह आकलन किया है।

'पीएनएएस' नामक पत्रिका में प्रकाशित उनके परिणाम दुनियाभर में सैकड़ों प्रजातियों के पौधों और जानवरों पर सर्वेक्षण पर आधारित है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में दुनियाभर की 581 साइटों पर 538 प्रजातियों के डाटा का विश्लेषण किया। इस दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि एक से ज्यादा साइटों पर 44 प्रतिशत प्रजातियां पहले से ही विलुप्ति की कगार पर हैं।

ग्लोबल वार्मिग के कारण बढ़ रहा तापमान भी पौधों और जंतुओं के विलुप्ति के लिए जिम्मेदार है। शोधकर्ताओं ने बताया कि अगर अधिकतम तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाए तो 50 प्रतिशत प्रजातियों के विलुप्त होने की संभावना है। वहीं, अगर अधिकतम तापमान में 2.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाए तो 95 प्रतिशत प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर आ जाएंगी।

अभी कुछ दिन पहले ही अंतरराष्ट्रीय शोध संगठन फ्यूचर अर्थ के लिए किए एक शोध में पाया गया था कि 21वीं सदी में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का खत्म होना, ताजे पानी और भोजन के घटते स्रोत और तूफान से गर्म हवा चलने तक के चरम मौसम की घटनाएं मानवता के लिए बड़ी चुनौती होगी। वैज्ञानिकों ने वैश्विक स्तर के 30 जोखिमों में से इन पांचों की संभावना और प्रभाव को सबसे ऊपर रखा था। वैज्ञानिकों का कहना है कि सूखी और गर्म परिस्थितियां ऑस्ट्रेलिया में जंगल की आग का कारण बनी और इसमें करीब एक अरब जीवों के मारे जाने का अनुमान है।

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