धरती से महज 14 हजार किमी दूर से निकल गया 2020JJ, अंतिम समय में मिली जानकारी

2020JJ को वैज्ञानिक तब देख सके जब ये धरती से करीब 14 हजार किमी दूर से गुजर रहा था। ये बेहद छोटा होने की वजह से पहचान में नहीं आ सका।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 08 May 2020 04:23 PM (IST) Updated:Sat, 09 May 2020 09:01 AM (IST)
धरती से महज 14 हजार किमी दूर से निकल गया 2020JJ, अंतिम समय में मिली जानकारी
धरती से महज 14 हजार किमी दूर से निकल गया 2020JJ, अंतिम समय में मिली जानकारी

वाशिंगटन। आपने उल्‍कापिंडों के बारे में जरूर पढ़ा और सुना भी होगा। अकसर ये भी सुना होगा कि कोई उल्‍कापिंड धरती के पास आ रहा है। लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता है। ये ब्रहृमांड की बेहद अनोखी घटनाओं में से एक होती है। 6 मई को लेकिन ऐसी ही एक घटना हुई थी जब पृथ्वी से महज 14 हजार किलोमीटर से एक उल्‍कापिंड निकल गया। ये उल्‍कापिंड फोर्ड ट्रांजिट वैन के आकार से बड़ा था। आपको बता दें कि ये अब तक का छठा ऐसा उल्कापिंड था जो पृथ्वी के इतने पास से गुजरा है। 

दरअसल ब्रह्मांड में हजारों की संख्‍या में छोटे और बड़े आकार के चट्टाननुमा पत्‍थर चक्‍कर लगाते हैं जिनको उल्‍का या इंग्लिश में meteor कहते हैं। कई बार इनका आकार काफी बड़ा भी होता है। कभी कभी ऐसा भी हुआ है कि जिसकी वजह से ये पृथ्‍वी की कक्षा में आ जाते हैं। यदि ऐसा होता है तो ये आगे के गोले के रूप में धरती पर बड़ी तेजी से गिरते हैं। हालांकि धरती पर आते आते इनके कई छोटे और बड़े टुकड़े हो जाते हैं लेकिन इसके बाद भी ये अपनी तेज गति और आवाज की वजह से काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। हालांकि पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या बेहद कम होती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इनका महत्व इसलिए भी काफी है क्‍योंकि इनसे ही ब्रह्मांड के दूसरे ग्रहों के बारे में जानकारी मिलती है। उल्कापिंडों का मुख्य वर्गीकरण उनके संगठन के आधार पर किया जाता है। इनमें से कुछ तो लोहा, निकल या मिश्रधातुओं से बने होते हैं और कुछ सिलिकेट खनिजों से बने पत्थर सदृश होते हैं। जो उल्‍काएं लोहे, निकल या मिश्रधातुओं को 'धात्विक' और सिलिकेट खनिजों से बने पत्थर को 'आश्मिक उल्कापिंड' कहते हैं।

जो उल्‍कापिंड धरती के इतने करीब से गुजर गया उसका नाम 2020JJ है। वैज्ञानिक मानते हैं कि ये खगौलिक मानकों के अनुसार यह बेहद छोटा था और इसलिए दूरबीन में नजर नहीं आया। वैज्ञानिक इसे तभी देख सके जब यह सीधे पृथ्वी के ऊपर आया। एरिजोना में स्थित माउंट लिमोन सर्वे से इसकी पहचान ठीक उस समय की गई जब यह पृथ्वी के ऊपर से निकल रहा था।

स्पेस साइंस राइटर डॉक्टर नतालिया स्टारकी के मुताबिक कम से कम एक किमी बड़े क्षुद्रग्रह को आसानी से देखा और पहचाना जा सकता है। लेकिन 2020JJ आकार में इससे छोटा था इसलिए इसको केवल तभी देखा जा सका जब ये पृथ्‍वी के ऊपर से गुजर रहा था। यह उल्कापिंड 1900 से लेकर अब तक पृथ्वी के सबसे नजदीक से गुजरे क्षुद्रग्रहों में छठवें स्थान पर था।

2004 के बाद से ही पृथ्वी के सबसे नजदीक से गुजरे 10 क्षुद्रग्रहों को अब तक रिकॉर्ड किया गया है। उच्च रिज्योलूशन टेलीस्कोप इमेजरी विकसित होने और खगोलिवदों की क्षमता में विस्तार होने के कारण यह महत्वपूर्ण घटनाएं दर्ज की जा सकी हैं। पृथ्वी के काफी नजदीक से गुजरने के बाद भी पृथ्वी और उस क्षुद्रग्रह के बीच में काफी दूरी थी। 

ये भी पढ़ें:-  

कोरोना वायरस की वजह से दुनिया के हवाईअड्डों को 7 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान

वैक्‍सीन के प्रभाव को कम करने में सक्षम है कोरोना वायरस का जी-614 स्‍ट्रेन, यूरोप, यूएस में मचाई तबाही

सोल्फेरिनो का युद्ध बना था आज के रेड क्रॉस स्‍थापना की वजह, कोविड-19 में भी निभा रहा भूमिका

इटली का दावा- कोरोना वायरस को खत्‍म करने में सक्षम है उनकी बनाई एंटीबॉडी वैक्‍सीन

chat bot
आपका साथी