निरंतर शोध के बाद भी नहीं मिलेगा विद्या के सागर का मूल

संवाद सूत्र, मेदिनीपुर : विद्यासागर विश्वविद्यालय परिसर स्थित डीडी भवन सभागार में गुरुवार को महा

By JagranEdited By: Publish:Fri, 24 Mar 2017 02:46 AM (IST) Updated:Fri, 24 Mar 2017 02:46 AM (IST)
निरंतर शोध के बाद भी नहीं मिलेगा विद्या के सागर का मूल
निरंतर शोध के बाद भी नहीं मिलेगा विद्या के सागर का मूल

संवाद सूत्र, मेदिनीपुर : विद्यासागर विश्वविद्यालय परिसर स्थित डीडी भवन सभागार में गुरुवार को महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर स्मरण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। बतौर मुख्य वक्ता कवि सुबोध सरकार ने संगोष्ठी का उद्घाटन किया। इस मौके पर संस्थान के कुलपति प्रो. रंजन चक्रवर्ती व कुलसचिव जयंत किशोर नंदी समेत अन्य लोग भी उपस्थित थे।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कवि सुबोध सरकार ने कहा कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर को लेकर शोधकर्ताओं ने बहुत से शोध किए हैं। लेकिन अब तक उनकी महानता का मूल पता नहीं चल सका। उन्होंने कहा कि ईश्वर चंद्र बंदोपाध्याय वास्तव में विद्या के सागर थे। जिस प्रकार हम अथाह जलराशि वाले सागर की गंभीरता का सहज ही पता नहीं लगा पाते हैं, ठीक उसी प्रकार विद्या का सागर अर्थात विद्यासागर की महानता का भी हमें अब तक पता नहीं लग सका है। वे बंगाल के पुनर्जागरण के स्तंभों में से एक थे। नारी शिक्षा के प्रबल समर्थक रहे विद्यासागर के प्रयास से ही कोलकाता व अन्य स्थानों में बहुत से बालिका विद्यालयों की स्थापना हुई थी। ¨हदू समाज में विधवाओं की सोचनीय स्थिति को देखते हुए उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए जनमत तैयार किया। उन्हीं के प्रयासों से 1856 में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ। बाल विवाह का घोर विरोध करने वाले ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक दार्शनिक, शिक्षाशास्त्री, लेखक, अनुवादक, मुद्रक, प्रकाशक, उद्यमी, सुधारक एवं मानवतावादी व्यक्ति थे। उनके द्वारा बांग्ला भाषा के गद्य को सरल एवं आधुनिक बनाने का किया गया कार्य सदा याद किया जाएगा। उन्होने बांग्ला लिपि की वर्णमाला को भी सरल एवं तर्कसम्मत बनाया था। यही नहीं उन्होंने संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए अथक प्रयास किया।

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