West Bengal : बंगाल में मिला दुर्लभ प्रजाति का पीले रंग का कछुआ
एक मछुआरे के जाल में फंसा यह कछुआ इससे पहले ओड़िशा के एक गांव में लोगों ने ऐसे ही एक कछुए को पकड़कर वन अधिकारियों के किया था हवाले। यह नरम कोशिकाओं वाला मादा भारतीय कछुआ है और इसकी उम्र लगभग डेढ़ साल है। यह दुर्लभ प्रजाति का कछुआ है।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। पश्चिम बंगाल के बर्द्धमान में एक तालाब से दुर्लभ प्रजाति का चमकीले पीले रंग का कछुआ मिला है, जिसे फ्लैपशेल कछुआ' कहा जाता है। इस साल में यह दूसरी बार है, जब इस तरह का कछुआ मिला है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार एक मछुआरे के जाल में यह कछुआ फंसा। इससे पहले पड़ोसी राज्य ओड़िशा के बालासोर ज़िले के सुजानपुर गांव में लोगों ने ऐसे ही एक दुर्लभ कछुए को पकड़कर वन अधिकारियों को सौंपा था।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस कछुए को अवर्णता की बीमारी है, जिसकी वजह से किसी प्राणी में मेलानिन की कमी हो जाती है। रंग में इस तरह का बदलाव जीन में आने वाली स्थाई अथवा जन्मजात गड़बड़ी के कारण भी होता है, जिसकी वजह टाइरोसीन कणिकाएं हैं। पकड़ा गया कछुआ अल्बिनो है। इस कछुए का शरीर और ऊपरी शेल पीला है। आंखों की पुतली को छोड़कर कछुए का सब कुछ पीला है।
बर्द्धमान सोसायटी फार एनिमल वेलफेयर के सदस्य अर्णब दास ने बताया-'कछुए के शरीर पर कई जगह घाव हैं और उसे इलाज की ज़रूरत है। यह नरम कोशिकाओं वाला मादा भारतीय कछुआ है और इसकी उम्र लगभग डेढ़ साल है। शारीरिक गड़बड़ियों की वजह से इसका रंग पीला पड़ गया है, हालांकि यह बहुत ही दुर्लभ प्रजाति का कछुआ है। कुछ लोगों ने दावा किया कि इसी तरह का कछुआ बंगाल के काकद्वीप में खेतों से भी मिला था।
बर्द्धमान विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर गौतम चंद्र का कहना है कि यह कछुए की दुर्लभ प्रजाति है। इस तरह का कछुआ म्यांमार, पाकिस्तान और दूसरे देशों में पाया जाता है। अल्बिनो एक तरह का त्वचा रोग़ है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कछुआ पहले सफ़ेद रंग का था और बाद में पीला पड़ गया।