माकपा नेता हत्याकांड: छत्रधर महतो की गिरफ्तारी के लिए अब एनआइए ने हाई कोर्ट का खटखटाया दरवाजा
Chhatradhar Mahato छत्रधर महतो की गिरफ्तारी के लिए एनआइए ने अब हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी लालगढ़ में साल 2009 में एक माकपा नेता की हत्या के 11 साल पुराने मामले में महतो को हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती है।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता। Chhatradhar Mahato: माओवादी समर्थित पीपुल्स कमेटी अगेंस्ट पुलिस एट्रोसिटीज (पीसीएपीए) के पूर्व नेता व तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के राज्य सचिव छत्रधर महतो की गिरफ्तारी के लिए एनआइए ने अब हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) लालगढ़ में साल 2009 में एक माकपा नेता की हत्या के 11 साल पुराने मामले में महतो को हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती है, लेकिन बार-बार नोटिस के बावजूद वह जांच एजेंसी के सामने पेश नहीं हो रहे हैं। इससे पहले कोलकाता की एक विशेष अदालत ने एनआइए की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कहा था कि छत्रधर महतो को फिलहाल गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि किसी अन्य अदालत द्वारा उसे जमानत दे दी गई थी।
इसके बाद एनआइए ने कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और उस अदालत के आदेश को रद करने की मांग की है। हाई कोर्ट 28 नवंबर को एनआइए की अपील पर सुनवाई करेगा। इससे पहले महतो बीमार होने का दावा कर कम से कम चार मौकों पर एनआइए अदालत में पेश नहीं हुए है। वे बीते बुधवार को भी अदालत के आदेश के बावजूद पेश नहीं हुए थे। उनके वकील ने बुधवार को कहा था कि उनका मुवक्किल पश्चिम मेदिनीपुर जिले में अपने आवास से उपयुक्त सार्वजनिक वाहन सुविधाओं के अभाव के चलते कोलकाता नहीं आ सका। दरअसल, एनआइए लालगढ़ में साल 2009 में हुई एक स्थानीय माकपा नेता की हत्या के सिलसिले में छत्रधर समेत पांच मुख्य आरोपितों को हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती है। लालगढ़ बंगाल के जंगलमहल क्षेत्र में है जो कभी माओवादी गतिविधियों का केंद्र रहा था। महतो पीसीएपीए द्वारा चलाए गए लालगढ़ अभियान का अहम नेता था।
गौरतलब है कि माओवाद प्रभावित रहे जंगलमहल के पांच जिलों के आदिवासियों के बीच प्रभावी रहे छत्रधर महतो ने वर्ष 2008 में बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के काफिले को माओवादियों ने लैंडमाइन से उड़ाने की कोशिश की थी। जब पुलिस ने कार्रवाई शुरू की तो छत्रधर ने पुलिस संत्रस विरोधी जनसाधरण कमेटी (जिसे बाद में माओवादियों का फ्रंट लाइन संगठन कहा जाता था) गठित कर आंदोलन किया था। उस दौरान विपक्ष में रहते हुए ममता ने छत्रधर का खूब साथ दिया था। इसका लाभ तृणमूल को 2011 के चुनाव में मिला और लालदुर्ग (माकपा का गढ़) कहे जाने वाले जंगलमहल में तृणमूल को जबरदस्त जीत मिली थी।