West Bengal: बैंक ऑफ बड़ौदा के खिलाफ उपयुक्त कदम उठाने पर विचार करें रिजर्व बैंक: हाईकोर्ट

Calcutta High Court. कलकत्ता हाईकोर्ट के मुताबिक अगर जरूरी हो तो उसका बैंकिंग लाइसेंस रद करने अथवा बैंकिंग व्यवसाय का अधिकार वापस लेने पर भी विचार किया जा सकता है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Mon, 17 Feb 2020 05:52 PM (IST) Updated:Mon, 17 Feb 2020 05:52 PM (IST)
West Bengal: बैंक ऑफ बड़ौदा के खिलाफ उपयुक्त कदम उठाने पर विचार करें रिजर्व बैंक: हाईकोर्ट
West Bengal: बैंक ऑफ बड़ौदा के खिलाफ उपयुक्त कदम उठाने पर विचार करें रिजर्व बैंक: हाईकोर्ट

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। Calcutta High Court. कलकत्ता हाईकोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) को बैंक गारंटी देने में विलंब करने पर बैंक ऑफ बड़ौदा के खिलाफ 'उपयुक्त कदम' उठाने पर विचार करने को कहा है। इसमें उसका बैंकिंग लाइसेंस रद करना भी शामिल है। हाईकोर्ट ने यह निर्देश बैंक ऑफ बड़ौदा और इंडियन ऑयल कॉर्प लिमिटेड (आइओसीएल) के बीच सिंप्लेक्स प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को जारी बैंक गारंटी के मामले की सुनवाई के दौरान दिया।

इस मामले पर सुनवाई के दौरान न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायाधीश कौशिक चंद की खंडपीठ ने कहा कि आरबीआइ को इस बात पर विचार करना चाहिए कि बैंक ऑफ बड़ौदा के खिलाफ क्या उपयुक्त कदम उठाए जा सकते हैं। कोर्ट के मुताबिक, अगर जरूरी हो तो उसका बैंकिंग लाइसेंस रद करने अथवा बैंकिंग व्यवसाय का अधिकार वापस लेने पर भी विचार किया जा सकता है।

गौरतलब है कि आइओसीएल ने 2017 में सिंप्लेक्स प्रोजेक्ट्स के साथ बोंगाईगांव में अपनी एक परियोजना पर काम करने को लेकर समझौता किया था। इस बाबत सिंप्लेक्स को बतौर सिक्योरिटी डिपॉजिट बैंक गारंटी देनी थी। सिंप्लेक्स की तरफ से बैंक ऑफ बड़ौदा ने 6.97 करोड़ रुपये की बिना शर्त बैंक गारंटी दी। जब सिंप्लेक्स की तरफ से काम आगे नहीं बढ़ाया गया तो आइओसीएल ने कई बार नोटिस जारी किया और आखिर में बैंक गारंटी को लागू करने का कदम उठाया। इस दौरान आइओसीएल की ओर से यह बात रखी गई कि बिना शर्त बैंक गारंटी लागू होने के बाद बैंक के पास तत्काल भुगतान को रोकने का कोई अधिकार नहीं होता है, इसके बावजूद इस मामले में बैंक ने कुछ समय मांगा।

आइओसीएल ने यह भी दावा किया कि बैंक ऑफ बड़ौदा ने सिंप्लेक्स को बैंक गारंटी लागू होने के बारे में सूचित किया, जिसके बाद कंपनी ने तुरंत दिल्ली हाईकोर्ट में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा नौ के तहत कार्यवाही शुरू की।

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