चिंतन व सृजन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

मुक्तिबोध ने अस्मिता व अभिव्यक्ति के प्रश्नों पर किया गहराई से मंथन : प्रो. झा जागरण संवाददाता,

By JagranEdited By: Publish:Wed, 13 Sep 2017 07:54 PM (IST) Updated:Wed, 13 Sep 2017 07:54 PM (IST)
चिंतन व सृजन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित
चिंतन व सृजन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

मुक्तिबोध ने अस्मिता व अभिव्यक्ति के प्रश्नों पर किया गहराई से मंथन : प्रो. झा

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : उत्तर बंगाल के हिंदी विभाग के तत्वावधान में मुक्तिबोध जन्म शताब्दी के मौके पर बुधवार को मुक्तिबोध : 'चिंतन व सृजन' विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। उक्त संगोष्ठी का उद्घाटन एनबीयू कला, वाणिज्य व विधि संकाय की डीन प्रोफेसर संचारी रॉय मुखर्जी ने किया। उक्त संगोष्ठी में शामिल होने के लिए कोलकाता से पधारी 'मुक्तांचल' साहित्य पत्रिका की संपादक डॉ. मीरा सिन्हा ने संगोष्ठी के विषय चयन की प्रशंसा करते हुए कहा कि मुक्तिबोध पर बात करने के लिए उनके सृजन के साथ चिंतन पक्ष पर भी बात करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध ने अपने समय का निरक्षण किया, तथा फिर उसे अभिव्यक्त किया।

वहीं एनबीयू हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर मनीषा झा ने उक्त संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि मुक्तिबोध ने अपने साहित्य में अस्मिता व अभिव्यक्ति के प्रश्नों पर गहराई से मंथन किया है, तो युग-परिवेश के संदर्भो पर भी सोचा है। उनकी दृष्टि में सौंदर्य शास्त्र का प्रश्न महत्वपूर्ण है। अपने युग परिवेश में व्याप्त भ्रष्टाचार, पूंजीवादी व्यवस्था को शोषण, मूल्यहीनता का अनुभव उन्होंने ज्ञानात्मक संवेदना के स्तर पर किया है।

डॉ सुनील द्विवेदी ने कहा कि मुक्तिबोध की सिद्धांतों को समझने के लिए उनके युग विशेष कर आजादी के बाद के अंतरविरोध को समझना होगा।

संगोष्ठी के दूसरे सत्र में कूचबिहार पंचानन बर्मा विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के असिसटेंट प्रोफेसर डॉ सुशील कुमार 'सुमन' हमारा समय और मुक्तिबोध विषय पर अपनी बातें रखीं। उन्होंने मुक्तिबोध की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए कबीर व प्रेमचंद से उनको प्रेरित बताया। कालियागंज कॉलेज से आए डॉ धनंजय कुमार ने मुक्तिबोध की कविता व कहानियों पर चर्चा करते हुए उन्हें निराला के आत्मसंघर्ष की परंपरा का साहित्यकार बताया। एनबीयू के हिंदी विभाग के असिसटेंट प्रोफेसर मनोज विश्वकर्मा ने इस विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि मुक्तिबोध क्रांति की बातें करते थे, लेकिन क्रांति अकेले नहीं हो सकती। उक्त संगोष्ठी के मौके पर हिंदी विभाग के शोध छात्र प्रदीप ठाकुर तथा सरोज लामा ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस मौके पर सिलीगुड़ी के चर्चित साहित्यकार डॉ भीखी प्रसाद 'विरेंद्र', देवेंद्र नाथ शुक्ल, बागडोगरा कॉलेज की शिक्षिका डॉ शशी शर्मा, सुशील मिश्र, प्रेमचंद महाविद्यालय के गोविंद यादव, परिमल मित्र स्मृति महाविद्यालय के डॉ विनय कुमार पटेल, अरविंद साह के अलावा धीरज केशरी, भरत सिंह, कौशल मिश्र समेत अन्य हिंदी प्रेमी उपस्थित रहे।

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