गंगोत्री धाम में सूर्य कुंड की है विशेष महत्ता, यहां सूर्य को अर्घ्‍य देते हुए आगे बढ़ती है भागीरथी की धारा

गंगोत्री धाम में सूर्य कुंड की विशेष महत्ता है। भागीरथी की धारा यहां सूर्यदेव को अर्घ्‍य देते हुए ही आगे बढ़ती है। पुराणों में भी इस कुंड का माहात्म्य बताया गया है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sat, 28 Sep 2019 01:56 PM (IST) Updated:Sat, 28 Sep 2019 01:56 PM (IST)
गंगोत्री धाम में सूर्य कुंड की है विशेष महत्ता, यहां सूर्य को अर्घ्‍य देते हुए आगे बढ़ती है भागीरथी की धारा
गंगोत्री धाम में सूर्य कुंड की है विशेष महत्ता, यहां सूर्य को अर्घ्‍य देते हुए आगे बढ़ती है भागीरथी की धारा

उत्‍तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री धाम में सूर्य कुंड की विशेष महत्ता है। भागीरथी (गंगा) की धारा यहां सूर्यदेव को अर्घ्‍य देते हुए ही आगे बढ़ती है। पुराणों में भी इस कुंड का माहात्म्य बताया गया है। इसी कुंड के निकट बनी है हिमालय के प्रसिद्ध फोटोग्राफर स्वामी सुंदरानंद की आर्ट गैलरी। जिसने सूर्य कुंड की रौनक भी बढ़ा दी है। आर्ट गैलरी के दीदार को गंगोत्री आने वाले पर्यटक सूर्य कुंड दिव्यता से भी परिचित हो रहे हैं।

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से सौ किमी दूर समुद्रतल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है सुप्रसिद्ध गंगोत्री धाम। मान्यता है कि गंगोत्री में एक शिला पर बैठकर राजा भगीरथ ने 5500 वर्षों तक घोर तप किया था। इस शिला को भगीरथ शिला नाम से जाना जाता है। इस शिला से सौ मीटर के फासले पर राजा भगीरथ ने सूर्यदेव को अर्घ्‍य दिया था। भागीरथी की धारा आज भी इसी स्थान पर सूर्य को अर्घ्‍य देते हुए कुंड में गिरती है। इसी कारण इसे सूर्य कुंड कहा गया है। 

बताते हैं कि इस कुंड में एक शिवलिंग भी है। गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित एवं गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष सुरेश सेमवाल बताते हैं कि गंगोत्री धाम में सूर्य कुंड विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस कुंड के पास भागीरथी की धारा पूर्व दिशा की ओर गिरती है। बताया कि स्वामी सुंदरानंद की आर्ट गैलरी भी सूर्य कुंड के पास ही है। इसलिए आर्ट गैलरी के अवलोकन को पहुंचने वाले अधिकांश पर्यटक व यात्री सूर्य कुंड का भी दीदार कर रहे हैं।

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गौरीकुंड तक पहुंचना है मुश्किल 

पुराणों के अनुसार जब गंगा स्वर्ग से उतरी तो भगीरथ शिला से 500 मीटर की दूरी पर स्थित गौरीकुंड में उसे भगवान शिव ने अपनी जटाओं में धारण किया। आज भी वहां पर एक पत्थर का एक शिवलिंग है। आज भी भागीरथी इस शिवलिंग की परिक्रमा करती है। इस शिवलिंग के दर्शन शीतकाल में तब होते हैं, जब गंगा का जलस्तर घट जाता है। यहां तक पहुंचना भी काफी मुश्किल है। गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव राजेश सेमवाल बताते हैं कि रामेश्वरम में गौरीकुंड के बाद का गंगा जल नहीं चढ़ाया जाता, जो लोग रामेश्वरम में गंगा जल लेकर जाते हैं, वे गौरीकुंड से पहले का गंगा जल भरते हैं।

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