हाड कंपा देने वाले हिमालय में जारी है प्राणों की साधना

हिमालय में अब फिर से पुराने दौर की वापसी हो रही है। यहां की कठिनाइयों से लड़कर फिर से सााधु यहां का रुख कर जीवन जीने के लिए साधना कर रहे हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Tue, 05 Dec 2017 02:44 PM (IST) Updated:Tue, 05 Dec 2017 10:52 PM (IST)
हाड कंपा देने वाले हिमालय में जारी है प्राणों की साधना
हाड कंपा देने वाले हिमालय में जारी है प्राणों की साधना

उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: गंगोत्री घाटी में इन दिनों अनेक साधु-सन्यासी प्राणों को साधने में लीन हैं। कोई ध्यान में मगन है, तो कोई योग में। कोई मौन साधना में है, तो कोई कठिन तप में। बर्फीले बियावान की हाड कंपा देने वाली ठंड में भी इन साधकों की साधना अनवरत जारी रहती है। समुद्रतल से 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तपोवन में भी कुछ साधु साधना करते देखे जा रहे हैं। साधकों की बढ़ती संख्या एक नया संकेत है। 

हिमालय सदियों से साधना का केंद्र रहा है। आस्था, योग और अध्यात्म की अविरल गंगा यहीं से बहती है। गुफाओं-कंदराओं में साधुओं के कठिन तप से जुड़े किस्से और कुछ साक्ष्य आज भी रोमांचित करते हैं। यहां आज भी अनेक प्राचीन गुफाएं मौजूद हैं, जहां ऋषि-मुनियों ने घोर तप किया। 1980-90 तक भी यहां अनेक साधक देखे जाते थे, लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या इक्का-दुक्का तक सिमट गई। अब ऐसा लग रहा है कि वहींं दौर लौटने को है। 

गुजरे हुए दौर की वापसी का संकेत

गंगोत्री घाटी गंगोत्री धाम से लेकर गोमुख-तपोवन तक योग साधना के लिए प्रसिद्ध है। गंगोत्री और गंगा से जुड़ी आस्था को लेकर यात्राकाल में हर वर्ष हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं। लेकिन यात्रा के बाद शीतकाल में यहां केवल कुछ साधक ही रहते हैं। वह आश्रमों में नहीं, बल्कि गुफाओं और कंदराओं में रहकर साधना करते हैं। वह भी तब, जब अधिकतम तापमान भी शून्य से नीचे चला जाता है। ऐसे में पानी का इंतजाम भी बर्फ को पिघलाकर करना पड़ता है। इन कठिनाइयों के कारण ही धीरे-धीरे साधकों का यहां रुकना कम होता गया। लेकिन इस समय 45 साधुओं का यहां होना और घोर विषम परिस्थितियों व गला देने वाली ठंड में भी डटे रहकर साधना करना, गुजरे हुए दौर की वापसी का संकेत है। 

गंगोत्री घाटी में 45 साधु कर रहे साधना 

गंगोत्री घाटी की ही बात करें, तो यहां इस समय 45 साधक साधना में रत हैं। इनमें से कुछ नौ-दस वर्ष से यहां हैं। तीन साधु तो तपोवन में भी साधनारत देखे गए हैं। अधिक ऊंचाई पर होने के कारण तपोवन में हालात और भी कठिन होते हैं। तीनों ने चट्टानों की आड़ में अपनी कुटिया बनाई हुई है। इसमें जीवन यापन के लिए जरूरी सामान भी जुटा रखा है। इनमें से एक साधु बीते नौ साल से मौन साधना में लीन हैं।

उन्हें लोगों ने मौनी बाबा नाम दे दिया है। इसके अलावा गोमुख से चार किलोमीटर पहले भोजवासा में बाबा निर्मल दास अपने एक शिष्य के साथ तप कर रहे हैं। समुद्रतल से 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चीड़बासा में दाणी बाबा, पंक्षी गुफा में पंक्षी प्रकाश माई और गंगोत्री से पांच किलोमीटर गोमुख की ओर कनखू में एक साधु और दो साध्वी तपस्या में लीन हैं। गंगोत्री धाम के आसपास पांडव गुफा, फौजी गुफा, नंदेश्वर गुफा, राजा रामदास गुफा, अंजनी गुफा, वेदांता गुफा, शिव चेतना गुफा में भी साधु साधनारत हैं। 

गंगोत्री नेशनल पार्क के रेंज अधिकारी प्रताप सिंह पंवार ने बताया कि इस बार तपोवन में तीन, भोजवासा में एक, चीड़वासा में दो और कनखू में तीन साधुओं समेत गंगोत्री घाटी में करीब 45 साधु-संन्यासी साधना कर रहे हैं। 

वहीं एसपी उत्तरकाशी ददन पाल का कहना है कि गंगोत्री और उसके आसपास साधना के लिए रह रहे इन सभी साधु-संतों की स्थानीय अभिसूचना इकाई को जानकारी है।

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