दयारा बुग्याल का हुआ ईको फ्रेंडली ट्रीटमेंट

हिमालय की गोद में फैले औषधीय पौधों और मखमली घास से लकदक मैदान को बचाने की कवायद शुरू हो गई है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 13 Jun 2020 02:59 AM (IST) Updated:Sat, 13 Jun 2020 06:15 AM (IST)
दयारा बुग्याल का हुआ ईको फ्रेंडली ट्रीटमेंट
दयारा बुग्याल का हुआ ईको फ्रेंडली ट्रीटमेंट

जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी: हिमालय की गोद में फैले औषधीय पौधों और मखमली घास से लकदक मैदानों (बुग्याल) को बचाने के लिए उत्तरकाशी जिले में अभिनव प्रयोग हुआ है। इसकी शुरुआत समुद्रतल से 10500 फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल से हुई। यहां करीब 600 मीटर कटाव क्षेत्र में जूट व नारियल के रेशों से तैयार जाल (केयर नेट), बांस के खूंट और पिरुल (चीड़ की पत्ती) के रोल से चेक डैम बनाकर ट्रीटमेंट किया गया। इसके अलावा जाल के बीच में बुग्याली प्रजाति के पौधों का रोपण भी किया गया। उत्तरकाशी वन विभाग के प्रभागीय वनाधिकारी संदीप कुमार कहते हैं कि यह ट्रीटमेंट सौ फीसद ईको फ्रेंडली है। देश में पहली बार इस तकनीकी से बुग्यालों का संरक्षण किया गया है।

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 50 किमी दूर दयारा बुग्याल 30 वर्ग किमी क्षेत्र फैला हुआ है। दरअसल, बीते कुछ वर्षों में प्राकृतिक कारणों और मानवीय हस्तक्षेप के चलते बुग्यालों में भूस्खलन की रफ्तार बढ़ी है। जिससे उनके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। ऐसे में सरकार बुग्यालों के संरक्षण पर विशेष ध्यान दे रही है। हालांकि, दयारा बुग्याल में यह प्रयोग एकदम नया है। इसके लिए जूट व नारियल के रेशों से तैयार केयर नेट देहरादून स्थित कयर बोर्ड ऑफ इंडिया, चेक डैम बनाने को पिरुल डुंडा (बाड़ाहाट) और बांस के खूंट कोटद्वार से मंगवाए। जून के पहले सप्ताह में ट्रीटमेंट का कार्य पूरा हो चुका है और इससे स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिला है।

डीएफओ संदीप कुमार ने बताया कि बुग्याल के ट्रीटमेंट को विशेषज्ञों की सलाह से केयर नेट बिछाया गया केयर चेक डैम बनाए गए। ट्रीटमेंट के दौरान ध्यान रखा गया कि इससे बुग्याल को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे। यह कार्य रैथल, बार्सू सहित स्थानीय लोगों ने किया। पिरुल के रोल भी डुंडा और बाड़ाहाट की महिलाओं ने ही तैयार किए।

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