अर्थशास्त्र के गुरु ने जल प्रबंधन से बंजर भूमि में उगाया सोना, कर रहे इतनी कमाई

कंकराड़ी गांव के दलवीर सिंह चौहान ने जल प्रबंधन के बूते अपनी ढलानदार असिंचित भूमि को सोना उगलने वाली बना दिया। इससे वह हर वर्ष 3.5 लाख रुपये से अधिक की कमाई कर लेते हैं।

By BhanuEdited By: Publish:Tue, 29 May 2018 11:54 AM (IST) Updated:Thu, 31 May 2018 05:11 PM (IST)
अर्थशास्त्र के गुरु ने जल प्रबंधन से बंजर भूमि में उगाया सोना, कर रहे इतनी कमाई
अर्थशास्त्र के गुरु ने जल प्रबंधन से बंजर भूमि में उगाया सोना, कर रहे इतनी कमाई

उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से नौ किमी दूर स्थित कंकराड़ी गांव के दलवीर सिंह चौहान ने जल प्रबंधन के बूते अपनी ढलानदार असिंचित भूमि को सोना उगलने वाली बना दिया। टपक खेती व माइक्रो स्प्रिंकलर और मेहनत की तकनीक से वह इस 0.75 हेक्टेयर भूमि पर पिछले 17 साल से सब्जी उत्पादन कर रहे हैं। इससे दलवीर हर वर्ष 3.5 लाख रुपये से अधिक की कमाई कर लेते हैं।

दलवीर सिंह ने वर्ष 1994 में गढ़वाल विवि श्रीनगर से अर्थशास्त्र में एमए करने के बाद वर्ष 1996 में बीएड किया। सामान्य किसान परिवार से ताल्लुक रहने वाले दलवीर पर भाई-बहनों में सबसे बड़ा होने के कारण परिवार चलाने की जिम्मेदारी भी थी। इसलिए उन्होंने गांव के निकट मुस्टिकसौड़ में एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। लेकिन, स्कूल से मिलने वाला मानदेय परिवार चलाने के लिए नाकाफी था। 

वर्ष 2001 में उत्तरकाशी के उद्यान अधिकारी कंकराड़ी गांव पहुंचे तो उन्होंने दलवीर को आंगन के आसपास नकदी फसलों के उत्पादन को प्रेरित किया। दलवीर ने डरते हुए पहले वर्ष एक छोटे-से खेत में छप्पन कद्दू लगाए। घर के नल से पानी भर कर एक-एक पौध की सिंचाई की। संयोग देखिए कि तीन माह के अंतराल में उनके 45 हजार रुपये के छप्पन कद्दू बिक गए। 

नौकरी छोड़ प्रगतिशील किसान बने

खेती से लाभ होते देख दलवीर ने प्राइवेट स्कूल की नौकरी छोड़कर सब्जी उत्पादन शुरू कर दिया। पानी के इंतजाम के लिए वर्ष 2008 में एक लाख रुपये की विधायक निधि से दो किमी लंबी लाइन मुस्टिकसौड़ के एक स्रोत से जोड़ी। वहां भी पानी कम होने के कारण घर के पास ही एक टैंक बनाया। इसी बीच कृषि विज्ञान केंद्र चिन्यालीसौड़ में दलवीर ने खेती के साथ जल प्रबंधन की तकनीक सीखी। 

फिर वर्ष 2008 में ही सिंचाई के लिए टपक खेती अपनाई। इसके लिए सिस्टम लगाने में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने दलवीर की मदद की। सूखी भूमि पर जब लाखों रुपये की आमदनी होने लगी तो दलवीर ने वर्ष 2011 में माइक्रो स्प्रिंकलर की तरकीब सीखी। 

इसका उपयोग दलवीर ने गोभी, पालक, राई व बेमौसमी सब्जी उत्पादन के लिए बनाए गए पॉली हाउस में किया। आज इन्हीं तकनीकों और अपनी मेहनत के बूते दलवीर जिले के प्रगतिशील किसानों की सूची में हैं। 

घर ही बना बाजार

दलवीर की खेती में खास बात यह है कि सब्जी विक्रेता सब्जी लेने के लिए सीधे उनके गांव कंकराड़ी पहुंचते हैं। इसलिए दलवीर के सामने बाजार का संकट भी नहीं है।

कम पानी में बेहतर उद्यानी का गुर सिखा रहे दलवीर 

दलवीर की मेहनत को देखने और कम पानी में अच्छी उद्यानी के गुर सीखने के लिए जिले के 45 गांवों के ग्रामीणों को कृषि विभाग व विभिन्न संस्थाएं कंकराड़ी का भ्रमण करा चुकी हैं। दलवीर जिले के 30 से अधिक गांवों में कम पानी से अच्छी उद्यानी का प्रशिक्षण भी दे चुके हैं। इसी काबिलियत के बूते दलवीर को 'कृषि पंडित', 'प्रगतिशील किसान' सहित कई राज्यस्तरीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं। 

ऐसी होती है टपक खेती 

कम पानी से अच्छी किसानी करने का वैज्ञानिक तरीका टपक खेती है। इसमें पानी का 90 फीसद उपयोग पौधों की सिंचाई में होता है। इसके तहत पानी के टैंक से एक पाइप को खेतों में जोड़ा जाता है। उस पाइप पर हर 60 सेमी की दूरी पर बारीक-बारीकछेद होते हैं। जिनसे पौधों की जड़ के पास ही पानी की बूंदें टपकती हैं। इस तकनीक को ड्रॉप सिस्टम भी कहते हैं। 

70 फीसद पानी का उपयोग

माइक्रो स्प्रिंकलर एक फव्वारे का तरह काम करता है। इसके लिए टपक की तुलना में टैंकों में कुछ अधिक पानी की जरूरत होती हैं। इस तकनीक से खेती करने में 70 फीसद पानी का उपयोग होता है। जबकि, नहरों व गूल के जरिये सिंचाई करने में 75 फीसद पानी बरबाद हो जाता है। 

दलवीर की बागवानी 

ब्रोकली, टमाटर, आलू, छप्पन कद्दू, शिमला मिर्च, पत्ता गोभी, बैंगन, फ्रासबीन, फूल गोभी, राई, पालक, खीरा, ककड़ी के अलावा आडू़, अखरोट, खुबानी, कागजी नींबू आदि।

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