वायदों के साथ जी रही वीरांगना

By Edited By: Publish:Sat, 26 Jul 2014 09:41 AM (IST) Updated:Sat, 26 Jul 2014 09:41 AM (IST)
वायदों के साथ जी रही वीरांगना

संदीप कुमार, काशीपुर

देश की सीमा पर जान गंवाने वाले वीर सपूत की वीरांगना अफसरों के वायदों के सहारे ही जी रही है। हाल यह है कि शहीद के नाम पर बनाए गए मार्ग पर लगे बोर्ड का नामो-निशान गायब हो चुका है। वहीं कुंडेश्वरी में शहीद द्वार बनाए जाने का सपना भी अब टूटता ही दिखाई दे रहा है। जनप्रतिनिधि और अफसरों को वह इसके लिए जिम्मेदार ठहराती हैं।

18 गढ़वाल रेंज में हवलदार के पद पर तैनात शहीद पदमराम कारगिल की जंग के दौरान द्रास सेक्टर में तैनात थे। 29 जून 1999 को पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लेते हुए वह दुश्मनों की गोली का शिकार हो गए थे। उनकी मौत के बाद राज्य सरकार और केंद्र सरकार से तमाम सहूलियतें उनकी पत्नी और बच्चों को दी गई हैं। मगर उनकी पत्नी भगवती देवी के हृदय में एक कसक अभी तक है उनके घर को जाने वाले रास्ते पर एक शहीद द्वार का निर्माण नहीं कराया जा सका है। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी यह इच्छा जनप्रतिनिधियों के साथ ही प्रशासनिक अफसरों के सामने भी रखी मगर आज तक इस पर ध्यान नहीं दिया गया। यही नहीं शहीद चौक से भीमनगर तक के मार्ग को शहीद पदमराम का नाम दिया गया था। यहां पर एक बोर्ड भी लगाया गया था, लेकिन आज उस बोर्ड का नामों निशान मिट गया है। भगवती देवी जब भी उस मार्ग से गुजरती हैं तो पति के सम्मान को पहुंच रही ठेस से उद्वेलित हो उठती हैं। उन्होंने बताया कि कई बार उन्होंने अधिकारियों से मार्ग का बोर्ड लगवाने और पत्थर लगवाने की मांग उठाई मगर आज तक इस पर गौर नहीं हो सका है। कारगिल की लड़ाई में यही के दूसरे जवान अमित नेगी ने भी जान गंवाई थी। उसके भाई सुमित नेगी ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा किए गए सभी वायदे तो पूरे कर दिए गए हैं। मगर उनकी भी मांग की है कि शहीद चौक से भीमनगर जाने वाले रास्ते पर एक शहीद द्वार बनाया जाए, क्योंकि शहीद पदम सिंह का घर भी इसी मार्ग पर है।

chat bot
आपका साथी