टिहरी में जन ने संकल्प लिया और लहलहा उठा जंगल

जन और जंगल के रिश्ते को देखना हो तो टिहरी जिले के आगर गांव चले आइए। यहां ग्रामीणों ने तीन वर्ग किलोमीटर में बांज का जंगल उगा दिया।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Tue, 21 Mar 2017 10:49 AM (IST) Updated:Thu, 23 Mar 2017 02:50 AM (IST)
टिहरी में जन ने संकल्प लिया और लहलहा उठा जंगल
टिहरी में जन ने संकल्प लिया और लहलहा उठा जंगल
नई टिहरी, [मधुसूदन बहुगुणा]: नई टिहरी सरकारी अमले ने करोड़ों रुपये के कागज सींच दिए, लेकिन जंगल नहीं पनप पाए। जन ने संकल्प लिया और जंगल लहलहा उठा। जन और जंगल के रिश्ते को देखना हो तो टिहरी जिले के आगर गांव चले आइए। तीन वर्ग किलोमीटर में फैला बांज का वन गवाही दे रहा है कि जरूरत नीति से ज्यादा नीयत की है। यह प्रतिफल साल-दो साल नहीं, बल्कि 35 वर्षों के श्रम का है। यहां के बुजुर्ग गर्व से कहते हैं कि उनके बच्चों ने कभी गांव नहीं छोड़ा।
भिलंगना ब्लाक में जिला मुख्यालय नई टिहरी से 90 किलोमीटर दूर स्थित आगर गांव में 80 परिवार हैं। इसी गांव के सेवानिवृत्त शिक्षक गौर चंद याद करते हैं कि 1982 से पहले चारा-पत्ती के लिए महिलाओं को चार से पांच किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। गांव के बुजुर्गों को यह पीड़ा सालती थी कि अपना जंगल होता तो बहू-बेटियों की जिंदगी आसान हो जाती। 
गांव वालों ने एक बैठक बुलाई और तय किया कि अब और नहीं। इसके बाद लगातार कई बैठकें हुईं और मंथन का दौर चला। आम सहमति से कुछ कायदे तय किए गए। निर्णय लिया गया कि जंगल की देखरेख सामूहिक जिम्मेदारी होगी। इसके तहत जंगल को तीन भागों में बांटा गया। नियम बना कि प्रत्येक भाग को दो साल में एक बार खोला जाए। इस दौरान ग्रामीण सूखी लकड़ि‍यों को काटने के साथ जंगल की सफाई भी करेंगे।
ग्राम प्रधान विमला देवी बताती हैं कि साढ़े तीन दशक पहले लिए गए फैसले का अक्षरश: पालन हुआ और नतीजे सुखद रहे। आज ग्रामीणों को चारे और जलावन लकड़ी के लिए भटकना नहीं पड़ता। वह बताती हैं कि गर्मियों में अक्सर सूखने वाले जलस्रोतों पर अब वर्षभर पानी रहता है। बताया कि जंगल में मवेशियों का चरान-चुगान पूरी तरह प्रतिबंधित है। इसका सख्ती से पालन होता है। वह कहती हैं 'पहाड़ भले ही पलायन से कराह रहा हो, लेकिन आगर इस मार से मुक्त है।
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