डेनमार्क और बांग्लादेश के मत्स्य बीज बदलेंगे तकदीर

पिथौरागढ़ जिले में विदेश से आयातित मत्स्य बीजों का प्रयोग सफल हो रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 19 Jul 2021 05:52 PM (IST) Updated:Mon, 19 Jul 2021 05:52 PM (IST)
डेनमार्क और बांग्लादेश के मत्स्य बीज बदलेंगे तकदीर
डेनमार्क और बांग्लादेश के मत्स्य बीज बदलेंगे तकदीर

संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़ : पर्वतीय क्षेत्रों में विदेश से आयातित मत्स्य बीजों का प्रयोग सफल हो रहा है। डेनमार्क और बांग्लादेश की मछलियों को उत्तराखंड का पानी रास आ गया है। प्रयोग सफल होने से आने वाले दिनों में जिले में नील क्रांति के नई ऊंचाइयों पर पहुंचने की उम्मीद बढ़ रही है।

सीमांत जिले के किसानों को मछली पालन से जोड़ने की मुहिम अब रंग लाती दिख रही है। किसान अभी तक परंपरागत मछलियों का ही पालन कर रहे हैं। इससे उत्पादन को अपेक्षित गति नहीं मिल रही थी। इसे देखते मत्स्य पालन विभाग ने नए प्रयोग करने का फैसला लिया था। पिछले वर्ष डेनमार्क से रेनबो ट्राउट और बांग्लादेश से पंगास प्रजाति की मछलियों के बीज मंगाए गए। किसानों ने इन बीजों से एक वर्ष में ही अच्छा खासा उत्पादन कर लिया। बीते वर्ष जहां जिले में मत्स्य कारोबार 25 टन के आसपास था, इस वर्ष यह 31 टन तक पहुंच गया। इस वर्ष के अंत तक उत्पादन 40 टन के पार पहुंचने की उम्मीद है। ये दोनों ही प्रजातियां ठंडे पानी की मछलियां हैं। मत्स्य पालन विभाग अब जनपद में ही मत्स्य बीज तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराने की तैयारियां कर रहा है। इसके लिए जरू री मशीनें पिथौरागढ़ पहुंच गई हैं। आने वाले दिनों में मत्स्य पालन जिले के लोगों की आमदनी में अच्छा खासा इजाफा करेगा। इस वर्ष आठ लाख मत्स्य बीजों का वितरण करेगा विभाग मत्स्य पालन विभाग इस वर्ष सीमांत जिले में विभिन्न प्रजाति के आठ लाख मत्स्य बीज वितरित करेगा। इनमें छह लाख बीज निजी उत्पादकों को दिए जाएंगे, जबकि शेष बड़ालू, बड़ाबे और झलतोला में बनी झीलों में छोड़े जाएंगे। जिले में इस समय 675 किसान मत्स्य पालन कारोबार से जुड़े हैं। कनालीछीना विकास खंड का डुंगरी गांव मत्स्य पालन का माडल विलेज बन चुका है। गांव का लगभग हर परिवार मत्स्य पालन कर रहा है। गांव में उत्पादित होने वाली मछली की डिमांड इतनी ज्यादा है कि यह बाजार तक नहीं पहुंच पाती। मछली के शौकीन लोग गांव पहुंचकर मछली खरीद लेते हैं।

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वर्जन

डेनमार्क और बांग्लादेश से मंगाए मत्स्य बीजों का प्रयोग सीमांत जिले में सफल रहा। दोनों ही प्रजातियों से अच्छा उत्पादन हुआ है। ये दोनों प्रजातियां पर्वतीय जिलों के लिए मील का पत्थर साबित होंगी।

-रमेश चलाल, ज्येष्ठ मत्स्य निरीक्षक, पिथौरागढ़

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