रोजी पर भारी पड़ी 'मौसम' की मार

जागरण संवाददाता, कोटद्वार : तूफान आया और आम-लीची की फसल बर्बाद कर गया। काश्तकारों को हुए नुकसान का म

By Edited By: Publish:Sat, 30 May 2015 04:22 PM (IST) Updated:Sat, 30 May 2015 04:22 PM (IST)
रोजी पर भारी पड़ी  'मौसम' की मार

जागरण संवाददाता, कोटद्वार : तूफान आया और आम-लीची की फसल बर्बाद कर गया। काश्तकारों को हुए नुकसान का मुआवजा भी मिला, लेकिन मौसम की यह मार उन परिवारों पर भारी पड़ी, जिनकी रोजी-रोटी इसी फसल की बदौलत चलती थी।

कोटद्वार क्षेत्र में आम-लीची के बगीचे काफी अधिक हैं। क्षेत्र में भले ही कृषि भूमि लगातार कम हो रही हो, लेकिन आम-लीची की पैदावार आज भी क्षेत्र में काफी अधिक है। ग्रास्टनगंज स्थित उद्यान विभाग के खाम गार्डन की बात करें तो यहां पैदा होने वाले आम-लीची की डिमांड दिल्ली, चंडीगढ़ तक है। इस गार्डन में आम-लीची के दर्जनों पेड़ हैं। इस वर्ष बगीचे में करीब 90 क्विंटल लीची के उत्पादन का अनुमान था, लेकिन आंधी ने करीब साठ फीसद फसल बरबाद कर दी।

आंधी से हुए इस नुकसान का खामियाजा उन परिवारों की उठाना पड़ रहा है, जिनकी कुछ महीनों की रोटी इसी बगीचे से चलती थी। दरअसल, प्रतिवर्ष गर्मियों के सीजन में इस बगीचे को ठेके पर लेने वाला ठेकेदार फसल तोड़ने के लिए क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं को और पैकिंग के लिए क्षेत्र की महिलाओं को काम पर रखता है। गत वर्ष तक आम-लीची के सीजन में करीब 40 युवकों को फसल तोड़ने व करीब 90 महिलाओं की फसल की पैकिंग के लिए रखा जाता था। फसल तोड़ने वाले युवकों के लिए प्रतिदिन साढ़े तीन सौ रुपये प्रति युवक व पैकिंग करने वाली महिलाओं के लिए 180 रुपये प्रति महिला मानदेय तय था। फसल तोड़ने का कार्य करीब दो माह तक चलता था, जिसमें शुरूआती 20-25 दिन लीची तोड़ी जाती थी व उसके बाद आम की फसल टूटती थी। वर्तमान में जहां 40 युवकों के स्थान पर आठ-दस युवक फसल तोड़ रहे हैं, वहीं 80-90 महिलाओं के स्थान पर मात्र 15 महिलाएं पैकिंग में लगी हैं। सिर्फ खाम गार्डन ही नहीं, क्षेत्र के तमाम बगीचों की यही स्थिति है।

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