उत्तराखंड में लहलहा रही अमेरिकन सेब की फसल, मुक्तेश्वर के युवक ने दो लाख की कमाई को 20 लाख में बदला

बंजर खेत। डेवढ़ी पर ताले। गांव वीरान। घर छोड़ महानगरों में बैठे युवा। करीब दस वर्ष पहले तक यही तस्वीर रही मुक्तेश्वर के ग्रामीण क्षेत्रों की। खेती से जुड़ाव कटता रहा।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 14 Sep 2020 11:33 AM (IST) Updated:Mon, 14 Sep 2020 11:33 AM (IST)
उत्तराखंड में लहलहा रही अमेरिकन सेब की फसल, मुक्तेश्वर के युवक ने दो लाख की कमाई को 20 लाख में बदला
उत्तराखंड में लहलहा रही अमेरिकन सेब की फसल, मुक्तेश्वर के युवक ने दो लाख की कमाई को 20 लाख में बदला

नैनीताल, किशोर जोशी : बंजर खेत। डेवढ़ी पर ताले। गांव वीरान। घर छोड़ महानगरों में बैठे युवा। करीब दस वर्ष पहले तक यही तस्वीर रही मुक्तेश्वर के ग्रामीण क्षेत्रों की। खेती से जुड़ाव कटता रहा। खुशहाली के श्रोत सेब भी रूठ से गए। रही सही कसर प्राकृतिक आपदा ने पूरी कर दी, लेकिन अब यहां अमेरिकी विधि और विदेशी प्रजाति के सुर्ख लाल सेब से बागवानों की रंगत ही निखर आई। एक एकड़ में पहले जहां दो से तीन लाख की बमुश्किल आय होती थी, वहीं अब 20 लाख तक की कमाई हो रही।

यहां का समय 2015 से बदलना शुरू हुआ। सरगाखेत निवासी गौरव शर्मा तब मल्टीनेशनल कंपनी छोड़ सुकून की तलाश में गांव लौटे। पहले पारंपरिक खेती में हाथ आजमाया। बात नहीं बनी। 2017 में बागवानी का रुख किया। अमेरिकन तकनीक रूट स्टॉक विधि से तैयार अमेरिकी रेड फ्यूजी, रेड चीफ, डे बर्न जैसी बौनी प्रजाति के एक हजार पौधे उच्च घनत्व (हाई डेंसिटी फार्मिंग) विधि से एक एकड़ में लगाए। तीन साल बाद आज वह 20 लाख तक की आमदनी कर रहे हैं।

जिला उद्यान अधिकारी नैनीताल भावना जोशी ने बताया कि मुक्तेश्वर के धारी में उत्साही युवा उच्च घनत्व वाली तकनीक से सेब की खेती कर रहे हैं। यह सराहनीय प्रयास है। विभाग भी उन्हें प्रोत्साहित कर रहा है। इससे पलायन रुकेगा और खाली पड़ी जमीन भी आबाद होगी।

12 प्रजातियों में तीन ही टिकीं

गौरव ने शुरुआत में अमेरिकन सेब की 12 प्रजातियों के पौधे लगाए। इनमें से बस तीन रेड फ्यूजी, रेड चीफ, डे बर्न को यहां की आबोहवा भाई। ऐसे में उन्होंने दोबारा पौधे मंगाकर रोपे। दूसरे साल ही फल लग गया। हालांकि देसी सेब के तैयार होने में पांच से छह साल लगता है। गौरव बताते हैं कि तीसरे साल से प्रति पेड़ 15 से 20 किलो फल मिलने लगा है। इस बार सौ पेटी सेब दिल्ली, एनसीआर, मुंबई समेत अन्य शहरों में भेजा है।

रूट स्टॉक ग्राफ्टिंग

जड़ और सेब के पौधे के निचले हिस्से के मध्य अनुवांशिक रूप से अलग गुणों वाले भाग की कलम तैयार करते हैं। इसे ही रूट स्टॉक ग्राफ्टिंग कहते हैं। रूट स्टॉक दो प्रकार के होते हैं सीडलिंग व क्लोनल। सीडलिंग रूट स्टॉक बीज से तैयार किया जाता है। क्लोनल रूट स्टॉक में मदर रूट स्टॉक के सभी गुण होते हैं।

ऐसे समझिए कमाई का फार्मूला

गौरव ने सेब के पौधे हिमाचल प्रदेश के शिमला व बिलासपुर से मंगाए। उच्च घनत्व की सघन बागवानी में एक एकड़ में एक हजार पौधे लगाए। हालांकि पहले पारंपरिक विधि से मात्र दो से ढाई सौ पौधे ही लगाए जाते थे। नई विधि से तैयार एक पेड़ सीजन में औसत 20 किलो फल दे रहा है। मौजूदा समय में सौ रुपये प्रति किलो कीमत है। एक पेड़ से करीब दो हजार रुपये तक की आय। इस अनुपात से एक हजार पेड़ से सालाना करीब 20 लाख की कमाई हो रही है।

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