दुर्लभ वनस्पतियों को बचाने में उत्तराखंड सबसे आगे, 29 समूहों का संरक्षण कर उत्तर भारत में बनाया रिकॉर्ड

उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र की मेहनत से राज्य ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यहां 29 वनस्पतियों के पूरे समूह का संरक्षण किया गया है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 12 Jul 2019 12:09 PM (IST) Updated:Sat, 13 Jul 2019 09:01 PM (IST)
दुर्लभ वनस्पतियों को बचाने में उत्तराखंड सबसे आगे, 29 समूहों का संरक्षण कर उत्तर भारत में बनाया रिकॉर्ड
दुर्लभ वनस्पतियों को बचाने में उत्तराखंड सबसे आगे, 29 समूहों का संरक्षण कर उत्तर भारत में बनाया रिकॉर्ड

हल्द्वानी, जेएनएन : उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र की मेहनत से राज्य ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यहां 29 वनस्पतियों के पूरे समूह का संरक्षण किया गया है। इन्हें बचाने के लिए मैदान से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक प्रोजेक्ट शुरू किए गए थे। उत्तर भारत में यह मुकाम पाने वाला उत्तराखंड पहला राज्य है। पूरे देश की बात करें तो केरल का रिकॉर्ड सबसे बेहतर है। हालांकि केरल व उत्तराखंड की भौगोलिक स्थितियों में काफी अंतर है।

प्रदेश में दुर्लभ व औषधीय वनस्पतियों का भंडार है। संरक्षण के अभाव में लगातार इनकी संख्या गिर रही थी। जिसके बाद वन अनुसंधान केंद्र ने सर्वे शुरू कर हिमालय, मैदानी, बंजर व जलीय औषधीय वनस्पतियों को बचाने के लिए प्रयास शुरू किए। जैव विविधता व पर्यावरण संतुलन में अहम भूमिका निभाने वाले राज्य में इसकी जरूरत भी थी। अलग-अलग जगह शुरू किए गए प्रोजेक्ट अब सफल होते जा रहे हैं। वनस्पतियों के 29 समूह संरक्षित हो चुके हैं। वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि रिसर्च में जुटे कर्मचारियों के अथक प्रयास से यह हो सका। अब जलवायु परिवर्तन से मैदानी व हिमालयी वनस्पतियों पर पडऩे वाले प्रभाव पर फोकस किया जा रहा है। 

इन समूहों का संरक्षण 

फाइकस, पाइन, पॉम, फर्न, कैक्टस, वाइल्ड क्लींबर्स, एरोमेटिक, टेनियन, गम, ग्रास, ओक, ओरचिड्स, ङ्क्षरगल, वाइल्ड मशरूम, ब्रह्म कमल, लिंचंस, मोस गार्डन, एल्पाइन, फ्लावर, बुरांश, एक्वेटिक, हिल फाइक्स, गिंकगो बाइलोबा (लिविंग फोजिल), साल, इंसेक्टीवरस प्लांट आदि।

समूहों में शामिल वनस्पतियां 

बरगद, पीपल, चीड़, बांज, बुरांश, गोंद, ब्रह्मकमल, नीलकमल, कस्तूरी कमल, संगध पौधे, पाम पौधे, पत्थरों में उगने वाले पौधे, बुग्याल एरिया के दुर्लभ फूल, सभी घास, जलीय के अलावा उन पौधों का संरक्षण किया गया है जो कीट से प्रभावित नहीं होते। 

हल्द्वानी से अंतिम गांव तक रिसर्च

वनस्पतियों के इन समूहों को बचाने के लिए वन विभाग को काफी मेहनत करनी पड़ी। हल्द्वानी से लेकर भारत के अंतिम गांव माणा तक रिसर्च किया गया। मुनस्यारी, देववन, हरिद्वार, गांजा, गोपेश्वर, केदारनाथ, मंडल, पिथौरागढ़, रानीखेत, लालकुआं समेत भौगोलिक परिस्थितियों के लिहाज से अलग-अलग जगहों पर रिसर्च किया गया है। 

कीड़ा जड़ी व धार्मिक महत्व पर काम 

वन अनुसंधान केंद्र ने हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाली कीड़ा जड़ी को पहली बार स्टडी में शामिल किया है। इसके अलावा धार्मिक महत्व के पौधे भी संरक्षित किए गए हैं। दुर्लभ वनस्पतियों के बचने पर देश-दुनियाभर के शोधार्थी उत्तराखंड पहुंच रिसर्च करेंगे। 

वनस्पतियों के पूरे समूह को संरक्षित करने का काम किया गया

संजीव चतुर्वेदी, वन संरक्षक अनुसंधान ने बताया कि योजनाबद्ध तरीके से वनस्पतियों के पूरे समूह को संरक्षित करने का काम किया गया। 29 प्रजातियां मैदान से लेकर हिमालयी क्षेत्र तक पाई जाती हैं। पर्यावरण संरक्षण व भविष्य में रिसर्च के लिहाज से इन्हें बचाना बेहद जरूरी है। यह उपलब्धि टीम वर्क का नतीजा है।

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