हाई कोर्ट के फैसले के अधीन रहेंगे पुलिस कर्मियों के प्रमोशन, 17 मार्च को होगी अगली सुनवाई

पुलिस विभाग की हाल में जारी पुलिस सेवा नियमावली 2018 (संशोधित 2019) को चुनौती देती याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने राज्‍य सरकार को निर्देश दिए हैं कि सभी प्रमोशन याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगे। अगली सुनवाई शीतावकाश के बाद 17 मार्च के लिए नियत की है।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Thu, 14 Jan 2021 07:26 PM (IST) Updated:Thu, 14 Jan 2021 07:26 PM (IST)
हाई कोर्ट के फैसले के अधीन रहेंगे पुलिस कर्मियों के प्रमोशन, 17 मार्च को होगी अगली सुनवाई
पुलिसकर्मी सिपाही के पद पर भर्ती होते है बिना पदोन्नति के रिटायर भी हो जाते हैं।

जागरण संवाददाता, नैनीताल : हाई कोर्ट ने उत्तराखंड पुलिस विभाग की हाल में जारी पुलिस सेवा नियमावली 2018 (संशोधित 2019) को चुनौती देती याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने राज्‍य सरकार को निर्देश दिए हैं कि सभी प्रमोशन याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगे। इस मामले में अगली सुनवाई शीतावकाश के बाद 17 मार्च के लिए नियत की है।

गुरुवार का मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ में कांस्टेबल सत्येंद्र कुमार व अन्य की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया है कि इस सेवा नियमावली में पुलिस कांस्टेबल (आम्र्ड फोर्स) को पदोन्नति के अधिक मौके दिए हैं। जबकि सिविल व इंटेलीजेंस को पदोन्नति के लिये कई चरणों से गुजरना होगा। उच्च अधिकारियों द्वारा उप निरीक्षक से निरीक्षक व अन्य उच्च पदों पर पदोन्नति निश्चित समय पर केवल डीपीसी द्वारा वरिष्ठता-ज्येष्ठता के आधार पर की जाती है। मगर, पुलिस विभाग की रीढ़ कहे जाने वाले सिपाहियों को पदोन्नति के लिए अलग-अलग प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। विभागीय परीक्षा देनी पड़ती है। पास होने के बाद पांच किमी की दौड़ पूरी करनी होती है। इन प्रक्रियाओं को पास करने पर सेवा अभिलेखों के परीक्षण के बाद सिपाहियों की पदोन्नति होती है।

याचिका में कहा गया कि उच्चाधिकारियों द्वारा निचले स्तर के कर्मचारियों के साथ दोहरा मानक अपनाया जाता है। जिस कारण 25 से 30 वर्ष की संतोषजनक सेवा के बाद भी सिपाहियो की पदोन्नति नहीं हो पाती है। अधिकांश पुलिसकर्मी सिपाही के पद पर भर्ती होते है बिना पदोन्नति के रिटायर भी हो जाते हैं। इसकी वजह निचले स्तर के कर्मचारियों की पदोन्नति के लिए समय अवधि निर्धारित नही करना है। यह नियमावली समानता के अवसर का भी उल्लंघन है।

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