जिंदा को मृत और मृतक को जिंदा दिखाकर लाखों का घोटाला, जानिए कैसे हुआ गोलमाल

जिंदा व्यक्ति को मृत व मृतक को जिंदा दिखाकर भारतीय जीवन बीमा निगम से फर्जी तरीके से लाखों रुपये का गबन करने का मामला सामने आया है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 02 Jun 2019 05:20 PM (IST) Updated:Tue, 04 Jun 2019 11:52 AM (IST)
जिंदा को मृत और मृतक को जिंदा दिखाकर लाखों का घोटाला, जानिए कैसे हुआ गोलमाल
जिंदा को मृत और मृतक को जिंदा दिखाकर लाखों का घोटाला, जानिए कैसे हुआ गोलमाल

काशीपुर, अरविंद कुमार सिंह : चाहे एनएच घोटाला हो या खाद्यान्न घोटाला, यूएस नगर घोटालों की चर्चा में बना रहता है। अब जिंदा व्यक्ति को मृत व मृतक को जिंदा दिखाकर भारतीय जीवन बीमा निगम से फर्जी तरीके से लाखों रुपये का गबन करने का मामला सामने आया है। मामले की जांच के बाद भी राजनीतिक दवाब में मामले को दबा दिया गया। इसकी असलियत सूचना का अधिकार में सामने आई है। कार्रवाई नहीं की गई तो मामला हाईकोर्ट पहुंच गया। इससे संबंधित अफसरों में हड़कंप मचा हुआ है।
राज्य बहुउद्देशीय वित्त एवं विकास निगम की जनश्री बीमा योजना शुरू की गई थी। इसमें बीपीएल परिवार के किसी व्यक्ति की 60 साल की उम्र से पहले स्वाभाविक मौत होने पर मृतक के आश्रितों को 30 हजार और दुर्घटना में मौत होने पर 75  हजार रुपये का भुगतान करने का प्रावधान था। यह लाभ मौत होने के एक साल के अंदर दस्तावेज उपलब्ध कराने पर ही मिलता था। यह राशि भारतीय जीवन बीमा निगम की ओर से बैंक या डाकघर के मृतक के आश्रितों के खातों में ट्रांसफर किए जाते थे। यह योजना समाज कल्याण विभाग में चलती थी। बजट में केंद्र व राज्य का बराबर का हिस्सा होता था। ग्राम फिरोजपुर निवासी एक व्यक्ति ने अफसरों से सेटिंगकर फर्जी तरीके से वर्ष 2007 में गांव के ही 19 लोगों के नाम पर लाखों रुपये का भुगतान करा लिया। जिंदा लोगों को मृत व मृतक को जिंदा दिखाकर गबन किया। यही नहीं, दुर्घटना में मृत व्यक्ति को स्वाभाविक व स्वाभाविक मृत व्यक्ति को दुर्घटना में मौत दर्शाकर सरकार की आंखों में धूल झोंक दिया। पता होने पर उसने दो-तीन मृतक आश्रितों को ही कुछ रुपये देकर उनके मुंह बंद कर दिए थे। बाकी किसी भी आश्रित को भुगतान नहीं किया गया। खास बात यह है कि जिन व्यक्तियों के नाम से फर्जी तरीके सेे योजना का लाभ लिया गया तो उनके बैंक व डाकघर में खाते कैसे व किसनेे खुलवाए थेे। योजना का लाभ लेने के लिए दस्तावेजों पर मृतक के आश्रितों के हस्ताक्षर किसने किए, मृत्यु प्रमाण पत्र, परिवार रजिस्टर की नकल किसने तैयार किए। योजना का लाभ देने से पहले तहसील, बीडीओ व एसडीएम की रिपोर्ट लगाई जाती है। शिकायत पर तत्कालीन एसडीएम व समाज कल्याण विभाग के अफसरों ने जांच की, मगर मामले को दबा दिया गया।
राजनीतिक दबाव से घोटाले पर पर्दा डालने का प्रयास किया गया। अफसर भी कार्रवाई करने से बचते रहे। कार्रवाई न होने से फिरोजपुर निवासी व कांग्रेस अनुसूचित विभाग के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष जय सिंह गौतम ने वित्त निगम से सूचना का अधिकार में पिछले साल योजना में घोटाले में हुई कार्रवाई की सूचना मांगी। सूचना प्राप्त होने से अफसरों की कार्यशैली की हकीकत सामने आई। प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई है। गौतम ने कई बार एसडीएम व जिलाधिकारी को पत्र देकर कार्रवाई की मांग की। कार्रवाई न होने पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई। 24 अप्रैल 2019 को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने जिलाधिकारी से जवाब देने का आदेश दिया है। इससे संबंधित विभागों के अफसरों में बेचैनी बनी हुई है।

वर्ष 2008 की जांच रिपोर्ट के अनुसार 

1-सुरेश के पिता मटरु लाल को वर्ष 2007 में स्वाभाविक मौत दिखाकर 30 हजार रुपये लिए गए थे, जबकि मटरु की मौत इससे करीब 10 साल पहले ट्रेन से कटकर हो चुकी थी।
2-सुरेश के भाई नरेश के पिता मटरु लाल को ट्रेन से कटकर मौत होने को दर्शाकर 75 हजार रुपये हड़प लिए।
3-मुन्नी के पति प्रकाश की वर्ष 2007 में दुर्घटना में मौत दर्शाकर 75 हजार रुपये लिए गए थे, जबकि इससे दो साल पहले स्वाभाविक मौत हुई थी।
4-सोमवती के पति बाबू राम को दुर्घटना में मृत दिखाकर योजना का लाभ ले लिया, जबकि इनकी मौत वर्ष 2015 में हुई थी। दो माह बाद बाबू राम की स्वाभाविक मौत दिखाकर भुगतान करा लिया गया।
5-विनोद के पिता पूरन जिंदा है, जबकि इन्हें दुर्घटना में मौत दिखाकर लाभ ले लिया गया।
6-रामवती के पति सतपाल को स्वाभाविक मौत दिखाकर लाभ लिया गया, जबकि योजना का लाभ लेने से करीब सात साल पहले सतपाल की मौत हो चुकी थी।
7-प्रेमवती के पति नन्नू राम को स्वाभाविक मौत दिखाकर लाभ लिया गया, जबकि लाभ लेने से करीब आठ साल पहले मौत हो चुकी थी।
8-कालीचरन के पिता राम दयाल जिंदा है, मगर इन्हें मौत दर्शाकर भुगतान करा लिया गया।
9-पूरन के बेटा विनोद को दुर्घटना में मौत दिखाकर भुगतान करा लिया गया, जबकि विनोद जिंदा है।
नोट: योजना का लाभ आश्रितों को नहीं मिला, बल्कि फर्जी करने वाले लोगों ने लिया है।

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